दर्पण न्यूज़ सर्विस
नई दिल्ली, 19 सितंबर -प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई संसद में कामकाज के पहले दिन ही नया इतिहास रच दिया। उन्होंने संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए 'नारी शक्ति वंदन कानून' बनाने की वकालत कर देश की आधी आबादी यानी महिलाओं का दिल जीतने की पूरी कोशिश की। बाद में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने यह विधेयक संसद के पटल पर पेश किया। चूंकि, सरकार के पास लोकसभा में बहुमत है, और विपक्षी दलों के सहयोग के कारण यह राज्यसभा से भी पास हो सकता है, लिहाजा इसके पास होने और कानून बनने में कोई संशय नहीं रह गया है। लेकिन बड़ा प्रश्न यह है कि क्या यह कानून मोदी सरकार की सत्ता में तीसरी बार वापसी का कारण बनेगा? क्या यह कानून 2024 में 'गेम चेंजर' साबित होगी?
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पूरे कार्यकाल में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए अनेक कदम उठाए हैं। महिलाओं के लिए लगभग 11 करोड़ इज्जत घरों (शौचालयों) का निर्माण करना, जनधन खातों के माध्यम से महिलाओं के लिए रोजगार के लिए सस्ता कर्ज उपलब्ध कराना, 34 प्रतिशत घरों को उज्जवला योजना का लाभ मिलना, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना, प्रधानमंत्री आवास के अंतर्गत गरीबों को मिलने वाले घरों की रजिस्ट्री घर की महिलाओं के नाम कराना, 80 करोड़ लोगों के लिए राशन उपलब्ध कराना जैसे अनेक कार्यों से मोदी ने महिलाओं के दिल में अपनी जगह बनाने की कोशिश पहले से ही करते रहे हैं।
भाजपा को कितना वोट देती हैं महिलाएं
भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद एक सर्वे कराया था। इस सर्वे में यह तथ्य सामने आया था कि पीएम नरेंद्र मोदी को पहली बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए उसे 33 प्रतिशत पुरुषों और 29 प्रतिशत महिला मतदाताओं का साथ मिला था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 37 प्रतिशत से कुछ अधिक वोट मिला था। अंतिम आंकड़ों में यह सामने आया है कि महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में मोदी सरकार को ज्यादा वोट किया है।
यूपी में भी महिलाओं का समर्थन बढ़ा2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। चुनाव के बाद सीएसडीएस के एक सर्वे में यह तथ्य सामने आया था कि पिछले चुनाव के मुकाबले पांच प्रतिशत ज्यादा पुरुषों ने भाजपा को वोट दिया था, जबकि 13 प्रतिशत ज्यादा महिलाओं ने योगी आदित्यनाथ सरकार को वोट दिया था। इसका बड़ा कारण योगी सरकार का महिलाओं को सुरक्षा सुनिश्चित कराना था।
2024 में भी मिल सकता है बड़ा समर्थनसंसद-विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण मिलने का मामला जब से सामने आया है, समाज के हर वर्ग में इसका जबरदस्त स्वागत किया जा रहा है। इसे देखते हुए लग रहा है कि सरकार को इस कानून के कारण 2024 के लोकसभा चुनावों में बड़ा लाभ मिलेगा। हालांकि, यह मुद्दा कितना बड़ा होगा और क्या केवल इसके दम पर सरकार सत्ता में वापसी करने में सफल रहेगी, इसको लेकर अभी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।
जाहिर है भाजपा से जुड़ी तमाम महिला नेताओं में इसे लेकर बहुत ही सकारात्मक प्रतिक्रिया है। दिल्ली भाजपा की सचिव सारिका जैन ने अमर उजाला से कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कार्य ऐतिहासिक है। इसके कारण अब महिलाओं को संसद-विधानसभाओं में बड़ी भागीदारी मिलेगी और समाज में उन्हें ज्यादा प्रभावी भूमिका मिलेगी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही कारण यह कानून बनने का रास्ता साफ हुआ है, अन्यथा देश की महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती।
महिला आरक्षण बिल वर्ष 1996 से ही अधर में लटका हुआ है. उस समय एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था लेकिन ये पारित नहीं हो सका था. यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था.
बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था. इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था. लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था.
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था. कई दलों के सहयोग से चल रही वाजपेयी सरकार को इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा.
वाजपेयी सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2003-2004 में भी पारित कराने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुई.
बीजेपी सरकार जाने के बाद 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आई और डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने.
यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया. वहां यह बिल नौ मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ. बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था.
यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया. इसका विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल शामिल थीं.
ये दोनों दल यूपीए का हिस्सा थे. कांग्रेस को डर था कि अगर उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार ख़तरे में पड़ सकती है.
साल में 2008 में इस बिल को क़ानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया था. इसके दो सदस्य वीरेंद्र भाटिया और शैलेंद्र कुमार समाजवादी पार्टी के थे.
इन लोगों ने कहा कि वे महिला आरक्षण के विरोधी नहीं हैं. लेकिन जिस तरह से बिल का मसौदा तैयार किया गया, वे उससे सहमत नहीं थे. इन दोनों सदस्यों ने सिफ़ारिश की थी कि हर राजनीतिक दल अपने 20 फ़ीसदी टिकट महिलाओं को दें और महिला आरक्षण 20 फ़ीसदी से अधिक न हो.
साल 2014 में लोकसभा भंग होने के बाद यह बिल अपने आप ख़त्म हो गया. लेकिन राज्यसभा स्थायी सदन है, इसलिए यह बिल अभी जिंदा है.
अब इसे लोकसभा में नए सिरे से पेश किया गया है. अगर लोकसभा इसे पारित कर दे, तो राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद यह क़ानून बन जाएगा. अगर यह बिल क़ानून बन जाता है तो 2024 के चुनाव में महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण मिल जाएगा.
इससे लोकसभा की हर तीसरी सदस्य महिला होगी.