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संपादकीय

देश में बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर दो बच्चों की नीति की अनिवार्यता पर बहस जरूरी

April 24, 2021 08:16 AM

पिछले कुछ अर्से से देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, आवास, रोजगार पर बढ़ते दबाव को देखते हुए दो बच्चों की नीति अनिवार्य करने की मांग में तेजी आई है। हालाँकि विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को चीन से सबक लेते हुए इस मुद्दे पर कोई निर्णय लेना चाहिये। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 के नवीनतम आँकड़ों से यह प्रमाणित होता है कि परिवार नियोजन के संबंध में भारत में सुधार हुआ है एवं बच्चों के जन्म की औसत दर में भी गिरावट देखी गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे यह साबित होता है कि देश की आबादी स्थिर है एवं जनसंख्या विस्फोट का डर एवं दो बच्चों की अनिवार्य नीति गुमराह करने वाली है। अब सोचना यह है कि भारत जैसे देश के लिये दो बच्चों की नीति अपनाना किस हद तक तार्किक है एवं इस संबंध में भारत को चीन से क्या सीख लेनी चाहिये। याद रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2019 में स्वतंत्रता दिवस पर भाषण के दौरान देश से जनसंख्या नियंत्रण हेतु अपील की थी। प्रधानमंत्री ने कहा था कि देश में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति भविष्य की पीढ़ियों के लिये विभिन्न समस्याएँ उत्पन्न करेगी। जो लोग छोटे परिवार की नीति का पालन करते हैं वे भी विकास में योगदान करते हैं।

नीति आयोग ने बाद में इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर के परामर्श हेतु विभिन्न हितधारकों को आमंत्रित किया किंतु आगे चलकर इसे रद्द कर दिया गया। वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री ने महिलाओं के लिये विवाह की उम्र को संशोधित करने के संबंध में एक संभावित निर्णय के बारे में बात की थी, जिसे कई लोग जनसंख्या को नियंत्रण करने के अप्रत्यक्ष प्रयास के रूप में देखते हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 रिपोर्ट का पहला भाग जिसे कुछ समय पूर्व ही सार्वजनिक किया गया था, 17 राज्यों और 5 केंद्रशासित प्रदेशों के आँकड़ो को दशार्ता है। अंतर्राष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन जनसंख्या परिषद  द्वारा इन आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत के 17 में से 14 राज्यों में कुल प्रजनन दर (प्रति महिला जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या) में कमी आई है या प्रति महिला प्रजनन दर 2-1 या उससे कम है। इसका अर्थ यह हुआ कि अधिकांश राज्यों ने प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन अर्थात प्रति महिला जन्म लेने वाले बच्चों की औसत संख्या, जिसकी एक आबादी खुद को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पूरी तरह से बदल सकती है। यह डेटा दशार्ता है कि दो बच्चे से संबंधित धारणा गलत और मिथक है। हालाँकि परिवार स्वास्थ्य कार्यक्रम व्यक्तियों के अधिकार और सम्मान को बनाए रखने हेतु आवश्यक है। वर्ष 2005 और 2016 के मध्य आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 3 एवं राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 के दौरान 22 में से 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में गर्भनिरोधक के आधुनिक तरीकों के इस्तेमाल में गिरावट देखी गई थी। जबकि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 में 12 में से 11 राज्यों में जहाँ इन गर्भनिरोधकों का उपयोग पहले कम या उसमें अब वृद्धि देखी गई। यह देखा गया है कि प्रति परिवार दो बच्चों के संबंध में कोई राष्ट्रीय नीति नहीं है। इस मामले में नवंबर 2019 में राज्यसभा में एक विधेयक पेश किया गया था, जिसमें छोटे परिवारों के लिये प्रोत्साहन का प्रस्ताव रखा गया था। विभिन्न राज्यों में दो बच्चों से संबंधित नीति: 2019 तक की स्थिति के तहत कई फैसले लिए गये इनमें असम , राजस्थान ,मध्य प्रदेश, तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड और कर्नाटक के नाम शामिल हैं। दो बच्चों से संबंधित राष्ट्रनीति के तहत 13 अगस्त, 2018 को दो बच्चों से संबंधित राष्ट्र नीति को लागू करने हेतु राष्ट्रपति को याचिका सौंपी गई।

15 अगस्त, 2019 को स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जताई थी। 10 जनवरी, 2020 को सर्वोच्च न्यायालय ने जनसंख्या नियंत्रण कानून वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। 18 जनवरी, 2020 को आर एस एस के संघ संचालक मोहन भागवत द्वारा जनसंख्या नियंत्रण का मुद्दा उठाया गया। सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका में कहा गया था कि क्या भारत में सिर्फ दो बच्चे पैदा करने वाला कानून पास हो सकता है? क्या भारत सरकार चीन की तरह वन चाइल्ड पॉलिसी लेकर आ सकती है? हालाँकि इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि यह संसद के हस्तक्षेप का क्षेत्र है।

ऐसा नहीं है कि दो बच्चों की राष्ट्र नीति के सभी पहलू अच्छे हैं इसके कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, वर्ष 2040 तक भारत में बुजुर्गों की आबादी 16 फीसदी तक पहुँच जाएगी। वर्ष 2050 तक यह संख्या 33 करोड़ पार कर जाएगी और विशेषज्ञों द्वारा आशंका जताई जा रही है कि अगर दो बच्चों की राष्ट्र नीति नहीं अपनाई गई तो इन आँकड़ों में और अधिक वृद्धि हो सकती है। अब दूसरी ओर दो बच्चों की राष्ट्र नीति के सकारात्मक पहलू भी हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की आबादी वर्ष 2027 तक 158 करोड़ हो जाएगी, जो फिलहाल 131 करोड़ है। वहीं चीन की जनसंख्या वर्ष 2027 में 153 करोड़ हो जाएगी। इस प्रकार भारत वर्ष 2027 तक विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। गौरतलब है कि जनसंख्या बढ़ने से बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, निम्न स्वास्थ्य स्तर और प्रदूषण जैसी समस्याओं में वृद्धि होगी। मगर यह भी सच है कि वर्ष 1979 में चीन द्वारा एक बच्चे की राष्ट्र नीति को लाने से 40 करोड़ बच्चे कम पैदा हुए लेकिन कामगार आबादी में तेजी से गिरावट हुई। इससे वहाँ वृद्ध जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई एवं बुजुर्ग पीढ़ी को सहारा देने के लिये युवा आबादी में कमी आने लगी। इसे देखते हुए चीन ने अपनी नीति को बदलते हुए वर्ष 2016 में एक बच्चे की राष्ट्र नीति को वापस ले लिया एवं दो बच्चों की इजाजत दे दी। भारत में जनसंख्या संबंधी कैसी नीति होनी चाहिये, इस पर राष्ट्रव्यापी बहस की आवश्यकता है।

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