मौजूदा कोविड -19 महामारी के दौरान हमने देखा है कि कैसे सोशल मीडिया के जरिए आम नागरिक एक दूसरे की सहायता कर सकते हैं एवं संकट से निपटने में आधुनिक सरकारी प्रयासों के पूरक हो सकते हैं। दुनिया भर में सोशल मीडिया लोगों के लिये सरकार के कामकाज में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने एवं आवाज उठाने के लिये एक बेहतर प्लेटफॉर्म बनकर उभरा है। इसके जरिये समकालीन मुद्दों पर चर्चा करना, किसी घटना के कारण एवं परिणामों पर चर्चा और नेताओं को जवाबदेह ठहराना आसान हो गया है। हालाँकि इसकी अनिश्चित प्रकृति, अफवाहों को हवा देना, गलत समाचारों के प्रसार में इसकी भूमिका के कारण, सोशल मीडिया किसी खास एजेंडा को प्रसारित करने, कुछ विशेष वर्गों को लक्षित करने, चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने एवं लोकतंत्र के मूल्यों से समझौता करने की दिशा की तरफ भी ले जाता है। सोशल मीडिया को इस तरह से विनियमित करने की आवश्यकता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अल्पसंख्यकों के हित, कानून और व्यवस्था के बीच संतुलन बनाए तथा शासन में नागरिकों की भागीदारी को बढ़ावा दे।
गर हम डिजिटल लोकतंत्र की बात करें तो हम जानते हैं कि लोकतांत्रिक मूल्य तभी विकसित हो सकते हैं जब लोगों को प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो। इस तरह सोशल मीडिया स्वतंत्रता के इन मंचों के माध्यम से डिजिटल लोकतंत्र की अवधारणा को मजबूत करता है। यह भी सच है कि सोशल मीडिया एक ऐसे प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करता है जहां अजेय प्रतीत होने वाली सरकारों पर भी सवाल उठाया जा सकता है, उनकी जवाबदेही तय कर सकता है एवं लोगों के एक-एक वोट द्वारा परिवर्तन ला सकता है। यह आम जनता की आवाज को मजबूत करता है। सोशल मीडिया में लोगों तक सूचना पहुंचाने की शक्ति है। ट्यूनीशिया जैसे देशों में सोशल मीडिया ने 'अरब स्प्रिंग' में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे मुक्ति पाने के लिये एक तकनीक के रूप में इस्तेमाल किया गया था। इस में कोई दो राय नहीं कि सोशल मीडिया के जरिये आम नागरिक एक दूसरे से बेहतर ढंग से जुड़े रहते हैं। या यूं कहें कि नागरिक जुड़ाव के लिये सोशल मीडिया के निहितार्थ बहुत गहरे हैं क्योंकि बहुत से लोग इन प्लेटफार्मों पर समाचारों पर चर्चा एवं समकालीन मुद्दों पर बहस करते हैं। इस तरह लोग अपने तरह के लोगों से जुड़ते हैं एवं उनमें एक समुदाय की भावना मजबूत होती है। अब दूसरी ओर गर हम इसके लोकतंत्र पर नकारात्मक प्रभावों की ओर गौर करें तो वे भी भयानक हैं। सबसे पहले बात करते हैं राजनीतिक ध्रुवीकरण की। जी हां सोशल मीडिया की सबसे आम आलोचनाओं में से एक यह है कि यह 'ईको चेंबर' बनाता है जहां लोग केवल उन दृष्टिकोणों से चीजों एवं घटनाओं को देखते हैं, जिनसे वे सहमत होते हैं और जिनसे असहमत होते हैं उन्हें सिरे से खारिज कर देते हैं। चूंकि अभूतपूर्व संख्या में लोग अपनी राजनीतिक ऊर्जा को इस माध्यम से प्रसारित करते हैं, इसके उपयोग से अप्रत्याशित तरीकों से ऐसे सामाजिक परिणाम सामने आ रहे हैं जिनकी कभी उम्मीद नहीं की गई थी। गूगल ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट के अनुसार, राजनीतिक दलों ने पिछले दो सालों में ज्यादातर चुनावी विज्ञापनों पर करीब 80 करोड़ डॉलर (5,900 करोड़ रुपये) खर्च किये हैं। इसके जरिये नफरत एवं सांप्रदायिकता से भरे भाषणों को आसानी से फैलाया जा सकता है। ऐसा भी माना जाता है कि वर्ष 2016 के अमेरिकी के चुनाव के दौरान रूसी संस्थाओं ने सोशल मीडिया को सूचना के हथियार के रूप में उपयोग किया एवं सार्वजनिक रूप से लोगों की भावनाओं को प्रभावित करने के लिये फेसबुक पर नकली पेज बनकर प्रचार किया। इस तरह सोशल मीडिया को राष्ट्र, राज्य एवं समाज को विभाजित करने के इरादे से साइबर युद्ध के लिये उपयोग किया जा सकता है। सोशल मीडिया लोगों को अपनी बात रखने का पर्याप्त मौका देता है। कभी-कभी जिसका इस्तेमाल किसी के द्वारा अफवाह फैलाने और गलत सूचना फैलाने के लिये भी किया जा सकता है। सोशल मीडिया नीति निमार्ताओं की जनमत के बारे में धारणा को प्रभावित करता है। ऐसा इसलिये है क्योंकि ऐसा भी माना जाता है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जीवन के हर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन हर कोई इस प्लेटफॉर्म का समान रूप से उपयोग नहीं कर रहा है।
हालांकि पिछले कुछ समय से केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने सोशल मीडिया की स्वतंत्रता का दुरोपयोग न हो इसके लिए कानून बनाने की भी बात की है। आलोचक इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर आघात कह रहे हैं तो सरकारें इसे फेक न्यूज, अफवाह फैलाने और देश विरोधी प्रोपेगेंडा चलाने पर रोक लगाने का तर्क दे रही हैं। कुल मिला कर अगर लोकतंत्र पर सोशल मीडिया के प्रभाव के बारे में कोई सच्चाई है तो वह यह है कि यह मानवीय गुणों, सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों गुणों, को बढ़ावा देता है। अपने सबसे अच्छे रूप में यह हमें खुद को व्यक्त करने और खुद को बेहतर बनाने का मौका देता है। सबसे बुरी स्थिति में यह लोगों को गलत सूचना फैलाने और लोकतंत्र के मूल्यों को नष्ट करने के रास्ते खोलता है।