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संपादकीय

आखिर ऐसा क्या है शरिया कानून में, जिसकी वजह से खौफज़दां हैं अफ़गान की महिलाएं?- भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक

September 02, 2021 08:01 PM

अफगानिस्तान पर कब्जा करने के तुरंत बाद सबसे पहली घोषणा तालिबान ने की है कि वे इस्लाम की शरिया कानूनी प्रणाली की सख़्त व्याख्या के अनुसार अफगानिस्तान पर शासन करेंगे। इसके साथ ही देश में अमेरिकी नेतृत्व वाली गठबंधन सेना की उपस्थिति को करीब दो दशक बाद खत्म कर दिया गया । एक प्रेस वार्ता में तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि मीडिया और महिलाओं के अधिकारों जैसे मसलों से इस्लामी कानून के ढांचे के तहत निपटा जाएगा। हालांकि तालिबान ने अभी तक यह नहीं बताया कि व्यवहार में इसके क्या मायने होंगे। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई जिन्हें पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा की वकालत करने के चलते तालिबान ने 15 साल की उम्र में गोली मार दी थी, उन्होंने चेतावनी दी है कि शरिया कानून की तालिबान की व्याख्या अफगानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए घातक हो सकती है। मलाला ने बताया, मुझे अफगानिस्तान में महिला अधिकार कार्यकतार्ओं सहित कुछ कार्यकतार्ओं से बात करने का अवसर मिला. उन्हें अपने आगे के जीवन को लेकर भरोसा नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा, उनमें से कई लोग 1996-2001 के बीच देश में में जो हुआ था, उसे याद कर रहे हैं और वे अपनी सुरक्षा, अपने अधिकारों और स्कूल जाने के अधिकार को लेकर बहुत चिंतित हैं। पहले जब तालिबान सत्ता में थे, तब महिलाओं को काम करने या शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं थी। आठ साल की उम्र से लड़कियों को बुर्का पहनना पड़ता था। यही नहीं, महिलाओं को बाहर जाने की अनुमति तभी थी, जब उनके साथ कोई पुरुष संबंधी होते थे।  इन नियमों की अवहेलना करने पर महिलाओं को सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे जाते थे। आइये समझते हैं कि शरिया क्या है? शरिया कानून इस्लाम की कानूनी व्यवस्था है, इसे इस्लाम की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक कुरआन और इस्लामी विद्वानों के फैसलों यानी फतवों, इन दोनों को मिलाकर तैयार किया गया है। शरिया का शाब्दिक अर्थ- पानी का एक स्पष्ट और व्यवस्थित रास्ता। शरिया कानून जीवन जीने का रास्ता बताता है। सभी मुसलमानों से इसका पालन करने की उम्मीद की जाती है, इसमें प्रार्थना, उपवास और गरीबों को दान करने का निर्देश दिया गया है। इसका उद्देश्य मुसलमानों को यह समझने में मदद करना है कि उन्हें अपने जीवन के हर पहलू को खुदा की इच्छा के अनुसार कैसे जीना है। शरिया कानून अपराधों को दो सामान्य श्रेणियों में विभाजित करता है- 'हद' और 'तजीर'। शरिया किसी मुसलमान के दैनिक जीवन के हर पहलू के बारे में व्यवस्था देता है। उदाहरण के लिए, काम के बाद अपने सहयोगियों द्वारा पब में बुलाए जाने पर सोच में डूबा कोई मुसलमान सलाह के लिए शरिया विद्वान के पास जा सकता है ताकि यह तय हो सके कि वह अपने धर्म के कानूनी ढांचे के भीतर व्यवहार करे।  
दैनिक जीवन के अन्य क्षेत्रों, मसलन पारिवारिक कानून, वित्त और व्यवसाय के लिए मार्गदर्शन के लिए भी कोई मुसलमान शरिया कानून का रुख कर सकता है। यह भी सच है कि शरिया कानून अपराधों को दो सामान्य श्रेणियों में विभाजित करता है- पहला, 'हद', जो गंभीर अपराध हैं और इसके लिए अपराध तय किए गए हैं और दूसरा, 'तजीर' अपराध होता है, इसकी सजा न्याय करने वाले के विवेक पर छोड़ दी गई है। हद वाले अपराधों में चोरी शामिल है, इसके लिए अपराधी के हाथ काटकर दंड दिया जा सकता है, वहीं व्यभिचार करने पर पत्थर मारकर मौत की सजा दी जा सकती है। कुछ इस्लामी संगठनों का तर्क है कि 'हद' अपराधों के लिए दंड मांगने पर इसके नियमों में सुरक्षा के कई उपाय तय हैं, इसके लिए दंड तय करने से पहले काफी ठोस सबूत की जरूरत होती है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने पत्थर मारकर मौत की सजा देने का विरोध किया है। उसका कहना है: यह दंड यातना या अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक सजा तय करता है. इसलिए यह साफ तौर पर प्रतिबंधित है। हालांकि सभी मुस्लिम देश हद अपराधों के लिए ऐसे दंड नहीं देते, सर्वेक्षणों की मानें तो ऐसे अपराधों के लिए कठोर दंड देने को लेकर मुसलमानों की राय बहुत बंटी हुई है। क्या धर्मांतरण के लिए फांसी दी जा सकती है? धर्म को छोड़ना, मुसलमानों के बीच एक बहुत ही विवाद का मसला है, विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकांश इस्लामी विद्वानों की राय है कि इसके लिए सजा मौत है। हालांकि मुस्लिम विचारकों का एक अल्पसंख्यक तबका (खासकर पश्चिमी देशों से जुड़े लोगों का) मानता है कि आधुनिक दुनिया की वास्तविकता का अर्थ यह है कि इसके लिए दंड अल्लाह पर छोड़ देना चाहिए, ऐसे लोगों की यह भी राय है कि धर्मत्याग से इस्लाम को कोई खतरा नहीं है। कुरआन स्वयं घोषणा करता है कि धर्म में कोई बाध्यता नहीं होती। गर हम फैसलों की बात करें तो किसी भी कानूनी प्रणाली की तरह शरिया भी काफी जटिल है, इसका लागू होना पूरी तरह से जानकारों के गुण और उनकी शिक्षा पर निर्भर करता है। इस्लामी कानूनों के जज मार्गदर्शन और निर्णय जारी करते हैं। मार्गदर्शन को फतवा कहा जाता है, इसे औपचारिक कानूनी निर्णय माना जाता है।
शरिया कानून के पांच अलग-अलग स्कूल हैं, चार सुन्नी सिद्धांत हैं- हनबली, मलिकी, शफी और हनफी और एक शिया सिद्धांत है जिसे शिया जाफरी कहा जाता है। पांचों सिद्धांत, इस बात में एक-दूसरे से अलग हैं कि वे उन ग्रंथों की व्याख्या कैसे करते हैं जिनसे शरिया कानून निकला है।

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