- CJM कोर्ट में नहीं चली आशीष मिश्रा के वकील की दलील, जमानत अर्जी खारिज
लखीमपुर कांड के मुख्य आरोपी और केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा (Ajay Mishra Teni) के बेटे आशीष मिश्रा (Ashish Mishra) को एक और झटका लगा है. सीजेएम कोर्ट (CJM Court) ने आशीष मिश्रा की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया. आशीष मिश्रा के वकील ने उसके घटना स्थल पर मौजूद नहीं होने को आधार बनाते हुए जमानत अर्जी दाखिल की थी. इसके खारिज होने के बाद वकील अब जिला जज की अदालत में जमानत अर्जी डालने की तैयारी कर रहे हैं.
लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में तीन अक्टूबर को हिंसक झड़प में चार किसान, स्थानीय पत्रकार और एक भाजपा कार्यकर्ता सहित आठ लोगों की मौत हो गई थी. इस मामले में आशीष मिश्रा को मुख्य आरोपी बनाया गया. एफआईआर में आशीष मिश्रा को ही थार जीप का चालक बताते हुए किसानों को कुचले जाने का आरोप था. आशीष मिश्रा ने इसे गलत बताते हुए वहां मौजूद नहीं होने की बात कही थी.
एफआईआर दर्ज होने के बाद एसआईटी ने केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्रा को पूछताछ के लिए समन भेजकर बुलाया गया और शनिवार की देर रात गिरफ्तार कर लिया. एसआईटी को आशीष मिश्रा से पूछताछ करने के लिए सीजेएम कोर्ट से तीन दिन की रिमांड भी मिल गई. वहीं बुधवार को आशीष मिश्रा के वकील की ओर से उसकी जमानत को लेकर अर्जी दाखिल की गई. इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने जमानत अर्जी को खारिज कर दिया. इसके खारिज होने के बाद वकील अब जिला जज की अदालत में जमानत अर्जी डालने की तैयारी कर रहे हैं.
- PM मोदी ने लॉन्च किया 100 लाख करोड़ का मास्टर प्लान, मिलेगी विकास को गति; जानें इसके बारे में सब कुछ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी के लिए समग्र योजना को संस्थागत रूप देकर विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी के मुद्दे के समाधान को लेकर पीएम गतिशक्ति- राष्ट्रीय मास्टर प्लान की शुरुआत की। देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए 100 लाख करोड़ रुपये की गतिशक्ति योजना से लाखों रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इतना ही नहीं, यह योजना प्रधानमंत्री मोदी की 'आत्मनिर्भर भारत' की दृष्टि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इस प्लान का मकसद महत्वाकांक्षी रूप से 1.5 ट्रिलियन डॉलर की राष्ट्रीय इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन के तहत परियोजनाओं को अधिक शक्ति व गति देने और 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था प्राप्त करने के लक्ष्य को बढ़ावा देना है।
इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा हम अगले 25 वर्षों के लिए नींव रख रहे हैं। यह राष्ट्रीय मास्टर प्लान 21वीं सदी की विकास योजनाओं को 'गतिशक्ति' देगा और इन योजनाओं को समय पर पूरा करने में मदद करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को गति शक्ति योजना का ऐलान किया था। बता दें कि इससे पहले इसे देश के बुनियादी ढांचे के परिदृश्य के लिए एक महत्वपूर्ण पहल बताते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने कहा था कि गतिशक्ति परियोजना विभागीय रुकावटों को खत्म कर देगी और प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में हितधारकों के लिए समग्र योजना को संस्थागत रूप देगी।
16 केंद्रीय मंत्रालय का ग्रुप
'महाअष्टमी के पावन अवसर नई दिल्ली के प्रगति मैदान में सुबह 11 बजे पीएम 'गति शक्ति' लॉन्च इवेंट हुआ। लॉन्चिंग इवेंट में मौजूद प्रधानमंत्री मोदी ने रिमोट बटन दबाकर योजना की शुरुआत करने से पहले गति शक्ति मास्टर प्लान और प्रगति मैदान में नए प्रदर्शनी परिसर के मॉडल की समीक्षा की। महत्वाकांक्षी योजना में 16 केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों द्वारा नियोजित और शुरू की गई ढांचागत पहलों को एकजुट करने के लिए एक केंद्रीकृत पोर्टल की परिकल्पना की गई है।
इन 6 स्तंभों पर आधारित है यह योजना
सभी विभागों को एक केंद्रीकृत पोर्टल के माध्यम से एक-दूसरे की परियोजनाओं का पता चलेगा और मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी लोगों, वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान के लिए एकीकृत और निर्बाध कनेक्टिविटी प्रदान करेगी। पीएमओ ने कहा कि गतिशक्ति परियोजना व्यापकता, प्राथमिकता, अनुकूलन, समकालीन और विश्लेषणात्मक तथा गतिशील होने के छह स्तंभों पर आधारित है। यह बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा करेगा, रसद लागत में कटौती करेगा, आपूर्ति श्रृंखला में सुधार करेगा और स्थानीय वस्तुओं को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना देगा।
यह देखते हुए कि विभिन्न विभागों के बीच समन्वय की कमी सहित कई मुद्दों से देश में दशकों से बुनियादी ढांचे का निर्माण प्रभावित हुआ, पीएमओ ने भूमिगत केबल बिछाने, गैस पाइपलाइन जैसी गतिविधियों के लिए अन्य एजेंसियों द्वारा खोदी जा रही नव-निर्मित सड़कों का उदाहरण दिया। पीएमओ ने कहा, ''इससे न केवल बड़ी असुविधा होती है बल्कि यह एक फिजूलखर्ची भी है।'' साथ ही कहा कि समन्वय में सुधार के लिए उपाय किए गए हैं। अलग से योजना बनाने और डिजाइन करने के बजाय परियोजनाओं को अब एक सामान्य दृष्टि से डिजाइन और निष्पादित किया जाएगा और इसमें भारतमाला, सागरमाला और अंतरदेशीय जलमार्ग जैसे विभिन्न मंत्रालयों और राज्य सरकारों की बुनियादी ढांचा योजनाएं शामिल होंगी। पीएमओ ने कहा कि टेक्सटाइल क्लस्टर, फार्मास्युटिकल क्लस्टर, रक्षा गलियारा, इलेक्ट्रॉनिक पार्क, औद्योगिक गलियारा, फिशिंग क्लस्टर और एग्री जोन जैसे आर्थिक क्षेत्रों को कनेक्टिविटी में सुधार और भारतीय व्यवसायों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए कवर किया जाएगा।
बुनियादी ढांचों के विकास में बड़ा कदम
मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी लोगों, वस्तुओं और सेवाओं के परिवहन के एक साधन से दूसरे मोड में आवाजाही के लिए एकीकृत और निर्बाध संपर्क प्रदान करेगी। यह बुनियादी ढांचे की अंतिम गंतव्य कनेक्टिविटी की सुविधा और लोगों के लिए यात्रा के समय को भी कम करने में सहायक होगी। यह आगामी कनेक्टिविटी परियोजनाओं, अन्य व्यावसायिक केंद्रों, औद्योगिक क्षेत्रों और आसपास के वातावरण के बारे में लोगों और व्यावसायिक समुदाय की जानकारी प्रदान करेगी। निवेशकों को उपयुक्त स्थानों पर अपने व्यवसाय की योजना बनाने में भी मदद मिलेगी।
- सावरकर, गांधी, राजनाथ सिंह, सत्य, अर्धसत्य या असत्य- फ़ैक्ट चेक
गांधी और सावरकर
विनायक दामोदर सावरकर ने अंडमान की सेल्यूलर जेल में सज़ा काटते हुए अंग्रेजी हुक़ुमत के सामने जो मर्सी पिटिशन (दया याचिकाएँ) दायर कीं, क्या वो महात्मा गांधी के कहने पर लिखी और भेजी गई थीं?
अगर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के दावे को सच माना जाए तो बिल्कुल ऐसा ही हुआ था. ये दावा राजनाथ सिंह ने 12 अक्टूबर को सावरकर पर लिखी गई एक नई किताब के विमोचन के मौके पर किया था.
राजनाथ सिंह ने 'वीर सावरकर: द मैन हू कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन' नाम की किताब के विमोचन के समारोह में कहा, "सावरकर के ख़िलाफ़ झूठ फैलाया गया. कहा गया कि उन्होंने अंग्रेज़ों के सामने बार-बार दया याचिका दी, लेकिन सच्चाई ये है कि दया याचिका उन्होंने ख़ुद को माफ़ किए जाने के लिए नहीं दी थी, उनसे महात्मा गांधी ने कहा था कि दया याचिका दायर कीजिए. महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने दया याचिका दी थी."
इस बयान के बाद भारत में एक बहस छिड़ गई है. जहाँ एक तरफ विपक्षी पार्टियां इस बयान पर सरकार पर निशाना साध रही हैं, वहीं दूसरी ओर इतिहासकार भी इस बयान की सत्यता पर सवाल उठा रहे हैं.
बुधवार को विमोचन के वक़्त रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ इस पुस्तक के एक लेखक और सूचना आयुक्त उदय माहूरकर
नई किताब में ऐसा कोई ज़िक़्र नहीं
'वीर सावरकर: द मैन हू कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन' या 'वीर सावरकर: वह शख्स जो बंटवारे को रोक सकते थे' को उदय माहूरकर और चिरायु पंडित ने लिखा है.
उदय माहुरकर पत्रकार रह चुके हैं और फ़िलहाल भारत सरकार में सूचना आयुक्त के पद पर आसीन हैं.
बीबीसी ने उनसे पूछा कि क्या उनकी नई किताब में इस बात का ज़िक़्र है कि महात्मा गांधी के कहने पर वीर सावरकर ने अंग्रेज़ों के सामने दया याचिका दायर की. माहुरकर ने कहा, "नहीं, मेरी किताब में इसका ज़िक़्र नहीं है."
हमने उनसे जानना चाहा कि क्या वो अपनी किताब के भविष्य के संस्करणों में इस बात को शामिल करेंगे, तो उन्होंने कहा, "मैं इस बारे में तय करूँगा. आप मुझे ट्रैप (फँसाएं) न करें."
हमने माहूरकर से पूछा कि सावरकर पर किताब लिखते वक़्त उनके शोध में क्या राजनाथ सिंह के दावे वाली बात कहीं सामने आई?
इसके जवाब में उन्होंने कहा, "मैं ऐसा नहीं कह रहा हूँ कि मेरा सावरकर पर पूरा अध्ययन है. सावरकर के बारे में अभी भी कई तथ्य हैं जो लोगों को नहीं मालूम. सावरकर जी पर मेरा अध्ययन अभी पूरा नहीं हुआ है. मैं आगे जाकर दूसरी किताब भी लिख सकता हूँ और इस बात को शामिल भी कर सकता हूँ. मैं ये दावा नहीं करता कि मैं सावरकर के बारे में सब कुछ जानता हूँ."
माहूरकर ने इस बात के बारे में अपने साथी शोधकर्ताओं से बात करने के लिए कुछ समय माँगा और कुछ देर बाद बीबीसी से कहा, "वो बात सही है. बाबा राव सावरकर जो उनके भाई थे, वो गांधी जी के पास गए थे और गांधी जी ने उनको सलाह दी थी. किताब के अगले संस्करण में हम इस बात को शामिल करेंगे. गांधी जी से मिलने बाबा राव सावरकर के साथ आरएसएस के कुछ लोग भी गए थे. ये बात बाबा राव के लेखन में निकलती है."
क्या सावरकर विभाजन रोक सकते थे?
इस किताब का नाम काफ़ी दिलचस्प है- 'वीर सावरकर: द मैन हू कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन', जबकि सच ये है कि सावरकर उस व्यक्ति के तौर पर जाने जाते हैं जिन्होंने द्विराष्ट्र्वाद के सिद्धांत की बात सबसे पहले की.
मुस्लिम लीग ने 1940 के लाहौर अधिवेशन में मुसलमानों के लिए अलग देश की बात पहली बार कही थी, लेकिन सावरकर ऐसा पहले से कहते आ रहे थे. उन्होंने इससे तीन साल पहले 1937 में अहमदाबाद में साफ़ शब्दों में कहा था कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं और दोनों का हक़ इस भूमि पर एक बराबर नहीं है.
इससे और पहले उन्होंने अपनी किताब 'हिंदुत्व: हू इज़ अ हिन्दू' में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि राष्ट्र का आधार धर्म है और उन्होंने भारत को 'हिंदुस्थान' कहा. उन्होंने अपनी किताब में लिखा, "हिन्दुस्थान का मतलब हिन्दुओं की भूमि से है. हिन्दुत्व के लिए भौगोलिक एकता बहुत ज़रूरी है. एक हिन्दू प्राथमिक रूप से यहाँ का नागरिक है या अपने पूर्वजों के कारण 'हिन्दुस्थान' का नागरिक है.''
सावरकर ने 'हिन्दुत्व: हू इज़ अ हिन्दू' में लिखा है, ''हमारे मुसलमानों या ईसाइयों के कुछ मामलों में जिन्हें जबरन ग़ैर-हिन्दू धर्म में धर्मांतरित किया गया, उनकी पितृभूमि भी यही है और संस्कृति का बड़ा हिस्सा भी एक जैसा ही है, लेकिन फिर भी उन्हें हिन्दू नहीं माना जा सकता. हालाँकि हिन्दुओं की तरह हिन्दुस्थान उनकी भी पितृभूमि है, लेकिन उनकी पुण्यभूमि नहीं है. उनकी पुण्यभूमि सुदूर अरब है. उनकी मान्यताएं, उनके धर्मगुरु, विचार और नायक इस मिट्टी की उपज नहीं हैं.''
इस तरह सावरकर ने राष्ट्र के नागरिक के तौर पर हिंदुओं और मुसलमान-ईसाइयों को बुनियादी तौर पर एक-दूसरे से अलग बताया और पुण्यभूमि अलग होने के आधार पर राष्ट्र के प्रति उनकी निष्ठा को संदिग्ध माना.
भारत के विभाजन में भयावह हिंदू-मुस्लिम दंगों की बड़ी भूमिका थी. भारत का बँटवारा हिंदू-मुस्लिम एकता से ही रुक सकता था जिसकी कोशिश गांधी कर रहे थे, लेकिन उन्हें बुनियादी तौर पर एक दूसरे से अलग साबित करने में सावरकर ने बड़ी भूमिका निभाई थी.
क्या कहते हैं वीर सावरकर के वंशज?
रंजीत सावरकर वीर सावरकर के छोटे भाई डॉक्टर नारायण राव सावरकर के पोते हैं और मुंबई में 'स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक' से जुड़े हुए हैं. वे इस बात को नहीं मानते कि महात्मा गांधी के कहने पर वीर सावरकर ने दया याचिका दायर की थी.
राजनाथ सिंह के बयान के बारे में वे कहते हैं, "मुझे लगता है इसमें ज़बान फिसलने की बात हो सकती है. महात्मा गांधी ने अपने लेखों में याचिका दायर करने का समर्थन किया था. उन्होंने सावरकर बंधुओं की रिहाई पर दो लेख लिखे थे. गांधी ने कहा था कि हमारे बीच वैचारिक मतभेद हैं, लेकिन अगर सावरकर शांतिपूर्ण वार्ता के रास्ते पर आ रहे हैं तो हम उनका स्वागत करते हैं. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि सावरकर एक महान देशभक्त हैं और वे अंडमान में रहकर मातृभूमि से प्यार करने की क़ीमत चुका रहे हैं."
रंजीत सावरकर का कहना है कि वीर सावरकर की याचिकाएं सिर्फ़ अपने लिए नहीं बल्कि अन्य सभी राजनीतिक बंदियों के लिए थीं. वे कहते हैं कि उस समय के गृह मंत्री रेजिनॉल्ड क्रैडॉक ने वीर सावरकर की एक याचिका के बारे में लिखा है, "यह दया के लिए एक याचिका है, लेकिन इसमें कोई खेद या पश्चाताप नहीं है."
रंजीत कहते हैं, "सावरकर ने जो किया उसे गांधी का समर्थन था और उसमें उनकी स्वीकृति थी. मुझे लगता है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का मतलब यही था."
इतिहास से छेड़छाड़?
विवादित बयान के बारे में गांधी शांति प्रतिष्ठान के चेयरमैन और गांधी के गहन अध्येता कुमार प्रशांत कहते हैं, "ऐसा न तो पहले देखा है न सुना है क्योंकि न ऐसा हुआ, और न कहीं इसके बारे में लिखा गया."
वो कहते हैं, "ये लोग इतिहास के नए-नए पन्ने लिखने की कला में बहुत माहिर हैं. मैं अक्सर कहता हूँ कि जिन लोगों के पास अपने इतिहास नहीं होते, वे लोग हमेशा दूसरों के इतिहास को अपनी मुट्ठी में करने की कोशिश करते हैं. राजनाथ जी ने बहुत हल्की बात कर दी है."
कुमार प्रशांत का कहना है कि गांधी का सावरकर के माफ़ीनामे से कभी कोई रिश्ता नहीं रहा है. वो कहते हैं, "अगर माफ़ीनामे जैसी कोई चीज़ गांधी जी के जीवन में होती तो उन्होंने ख़ुद भी अमल किया होता इस पर. उन्होंने न तो कभी माफ़ीनामा लिखा और न ही किसी दूसरे सत्याग्रही के लिए माफ़ीनामे का रास्ता बताया, इसलिए इस बात में किसी भी तरह की सच्चाई और ईमानदारी नहीं है. ये बहुत छिछली चीज़ें हैं, लेकिन ये दौर ही ऐसा चल रहा है कि इस तरह की बातें हो रही हैं."
'गांधी की हत्या से जुड़े धब्बे को धोने की कोशिश'
वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बड़े नामों पर 'द आरएसएस: आइकन्स ऑफ़ द इंडियन राइट' नाम की किताब लिखी है.
वो कहते हैं कि सावरकर के ऊपर जो सबसे बड़ा विवाद है, वो महात्मा गांधी की हत्या से जुड़ा है. "उस मामले में सावरकर बरी हो गए, लेकिन उसके बाद बनाए गए कपूर कमीशन की रिपोर्ट में उन्हें पूरी तरह से दोषमुक्त नहीं माना गया और संदेह की सुई गांधी हत्याकांड में सावरकर के शामिल होने की ओर इशारा करती रही. यह सावरकर की विरासत का दाग़ है जिसे आज की सरकार धोने की कोशिश कर रही है."
साल 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के छठवें दिन विनायक दामोदर सावरकर को गांधी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने के शक़ में मुंबई से गिरफ़्तार कर लिया गया था. हालांकि उन्हें फ़रवरी 1949 में बरी कर दिया गया था.
मुखोपाध्याय कहते हैं, "राजनाथ सिंह का बयान कि गांधी जी के कहने पर सावरकर ने अंग्रेज़ों को माफ़ीनामा लिखा, उन पर लगे एक बड़े धब्बे को मिटाने की कोशिश है. अब एक ही चीज़ बचती है. कल कोई और नेता आएगा और कहेगा कि गोडसे ने भी गांधी जी के कहने पर बंदूक उठाई और उन्हें मार दिया."
उनका कहना है कि "हम इतिहास के मिथ्याकरण के समय में जी रहे हैं. हर दिन एक झूठ को बार-बार बोलकर उसे सत्य बना दिया जाता है."
मुखोपाध्याय के मुताबिक़ ये पूरा विवाद सुर्ख़ियों में इतिहास की बात करने की प्रवृत्ति को दर्शाता है. वो कहते हैं, "इतिहास की बात सुर्ख़ियों में नहीं हो सकती. इतिहास के बारे में विस्तार से बात करनी होती है. मुझे लगता है कि ये कह देना कि गांधी जी के कहने पर सावरकर ने माफ़ीनामा लिखा, ऐतिहासिक तौर पर ग़लत है."
'हिंदुत्व' शब्द के रचयिता
इतिहासकारों के मुताबिक़, सावरकर की राजनीतिक ज़िन्दगी को साफ़ तौर पर दो अलग-अलग चरणों में बांटा जा सकता है.
मुखोपाध्याय कहते हैं, "पहला दौर शुरू होता है बीसवीं सदी के पहले दशक में जब वो एक युवा राष्ट्रवादी थे. विलायत गए और राष्ट्रवादी आंदोलनों में शामिल हुए जिसकी वजह से उनको कालापानी की सज़ा हुई और उन्हें अंडमान के जेल में भेजा गया."
उनके अनुसार, अपने राजनीतिक जीवन के इस दौर में सावरकर ने 1857 के बारे में एक बहुत महत्वपूर्ण किताब लिखी "जिसमें उन्होंने 1857 की क्रांति को हिन्दू-मुसलमान एकता का एक अद्वितीय उदाहरण बताया" और कहा था कि "हिन्दू और मुसलमान इकट्ठे हुए इसलिए अंग्रेज़ी शासन को इतना बड़ा झटका लगा था".
मुखोपाध्याय कहते हैं कि सावरकर के राजनीतिक जीवन के दूसरे दौर में उनका अंडमान जेल में रहकर हृदय परिवर्तन होता है और वो अंग्रेज़ों से माफ़ी मांगते हैं.
वो कहते हैं, "उन्हें अंडमान जेल से तो छोड़ दिया गया, लेकिन नागपुर और पुणे की जेलों में रखा गया. चूँकि वो क्रांतिकारी राष्ट्रवाद का हिस्सा थे, इसलिए उनकी लगातार चल रही न्यायिक हिरासत के ख़िलाफ़ काफी राष्ट्रवादी नेताओं ने आवाज़ उठाई थी और उन्हें छोड़े जाने के लिए अर्ज़ी दी थी."
सेल्यूलर जेल में लिखी सावरकर की हस्तलिपि 'हिंदुत्व: हम कौन हैं' से प्रेरणा लेकर डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बनाया
लेकिन मुखोपाध्याय का कहना है कि जिस वजह से सावरकर आज तक विवाद में हैं, वो सेल्यूलर जेल में लिखी गई उनकी हस्तलिपि है जिसका नाम था 'हिंदुत्व: हम कौन हैं'. "इस दस्तावेज़ से प्रेरणा लेकर केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बनाया. हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा सावरकर के पहले से विकसित हो रही थी, लेकिन सावरकर को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने हिंदुत्व को अपनी किताब के ज़रिए कोडिफ़ाई किया. वही किताब हेडगेवार के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बनाने के लिए एक प्रेरक दस्तावेज़ बनी."
मुखोपाध्याय का मानना है कि सावरकर संगठन के नेता के रूप में अनुपयुक्त रहे और इसी वजह से वे कभी आरएसएस में शामिल नहीं हुए, "बल्कि वो आरएसएस के बहुत बड़े आलोचक थे".
वो कहते हैं, "1966 में अपनी मृत्यु तक उनके आरएसएस से बहुत ही ख़राब संबंध थे. सावरकर आरएसएस को एक महत्वहीन संगठन मानते थे. साथ ही वो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रितानी नीतियों के बड़े समर्थक थे. उन्होंने कहा कि हिंदुओं को ख़ुद को मज़बूत बनाने के लिए ब्रितानी फ़ौज में शामिल होना चाहिए. वो अपनी पूरी ज़िन्दगी में किसी अंग्रेज़ी शासन विरोधी आंदोलन में शामिल नहीं हुए. वो भारत छोड़ो आंदोलन तक में शामिल नहीं हुए."
ये अपने आप में एक विडंबना ही है कि जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनसंघ के सावरकर कभी सदस्य नहीं रहे, उसी संघ परिवार में उनका नाम बहुत इज़्ज़त और सम्मान के साथ लिया जाता है.
साल 2000 में वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्पति के आर नारायणन के पास सावरकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' देने का प्रस्ताव भेजा था जिसे नारायणन ने अस्वीकार कर दिया था.
ग़ैर-ज़रूरी शोर-शराबा?
इतिहासकार और वीर सावरकर की जीवनी के लेखक विक्रम संपत ने एक ट्वीट के ज़रिए कहा कि इस बयान पर मचा शोर-शराबा ग़ैर-ज़रूरी है और वो अपनी किताब और कई साक्षात्कारों में ये पहले ही कह चुके हैं कि 1920 में गांधी जी ने सावरकर बंधुओं को याचिका दायर करने की सलाह दी थी और अपनी पत्रिका 'यंग इंडिया' में एक लेख के ज़रिए उनकी रिहाई के बारे में बात की थी.
यंग इंडिया में गांधी ने जो लेख लिखा था उसका शीर्षक था "सावरकर बंधु" और उसमें कई बातों के साथ उन्होंने यह भी लिखा था कि "वे दोनों स्पष्ट रूप से कहते हैं कि वे ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता नहीं चाहते. इसके विपरीत, उन्हें लगता है कि अंग्रेज़ों के सहयोग से भारत की नियति सबसे अच्छी तरह से बनाई जा सकती है."
शम्सुल इस्लाम दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ा चुके हैं और 'सावरकर-हिन्दुत्व: मिथक और सच' नाम की किताब के लेखक हैं. इसी किताब के अंग्रेज़ी संस्करण का नाम है 'सावरकर अनमास्क्ड'.
वो कहते हैं कि सावरकर ने 1911 में सेल्यूलर जेल जाते ही पहले ही साल दया याचिका दायर की. उसके बाद उन्होंने साल 1913, 1914, 1918, 1920 में दया याचिकाएं दायर कीं.
इस्लाम कहते हैं, "दया याचिका दायर करना कोई गुनाह नहीं होता. ये क़ैदियों का अपनी शिकायत दर्ज कराने का एक अधिकार है. लेकिन सावरकर के माफ़ीनामे घुटने टेकने वाले हैं. बहुत से इंक़लाबी जिन्हें काला पानी में फांसी पर लटका दिया गया, पागल हो गए या जिन्होंने ख़ुदकुशी कर ली, उनमें भी किसी ने माफ़ीनामे नहीं लिखे."
इस्लाम के मुताबिक़ माफ़ीनामे सिर्फ़ चार लोगों ने लिखे जिनमें सावरकर, अरबिन्दो घोष के भाई बारिंद्र घोष, ऋषिकेश कांजीलाल और गोपाल शामिल थे.
वो कहते हैं, "ऋषिकेश कांजीलाल और गोपाल की याचिकाओं में कहा गया कि वे राजनीतिक क़ैदी हैं और उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए. ये बिल्कुल जायज़ याचिकाएं थीं जिनका तकनीकी नाम दया याचिका है. लेकिन सावरकर और बारिंद्र घोष की याचिकाएं शर्मनाक हैं."
शम्सुल इस्लाम के अनुसार हिन्दू महासभा और आरएसएस के कई लोगों ने सावरकर की जीवनी लिखी है, लेकिन उनमें ये कहीं भी ज़िक़्र नहीं है कि गांधी जी के कहने पर उन्होंने याचिकाएं दायर की थीं.
वो कहते हैं, "सबसे शर्मनाक माफ़ीनामा 14 नवम्बर 1913 का है और गांधी जी भारत की राजनीति में 1915 के अंत में आए. तो ये समझना बहुत ज़रूरी है कि गांधी के कहने की वजह से माफ़ीनामा लिखने की बात बिल्कुल अर्थहीन है."
इस्लाम के मुताबिक गांधी ने 'यंग इंडिया' में सावरकर के माफ़ीनामों पर एक लेख लिखा जिसमें कहा कि "सावरकर जैसे लोगों ने माफ़ीनामे लिख कर नैतिक बल भी खो दिया."
इस्लाम का मानना है कि इस तरह के विवादास्पद बयानों से गांधी का अपमान करने की कोशिश की जा रही है. वो कहते हैं, "ये लोग गांधी जी को घसीट कर नाथूराम गोडसे और सावरकर के बराबर ले आना चाहते हैं."
- मनमोहन सिंह की तबीयत बिगड़ी:पूर्व प्रधानमंत्री को बुखार और कमजोरी की शिकायत के बाद दिल्ली AIIMS में भर्ती कराया गया
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की तबीयत बिगड़ गई है। उन्हें बुखार और कमजोरी की शिकायत के बाद दिल्ली AIIMS में भर्ती कराया गया है। 88 साल के डॉ. सिंह का इलाज AIIMS के कार्डियो न्यूरो टावर में किया जा रहा है।
देर शाम AIIMS के डॉक्टरों ने बताया कि उनकी हालत अभी स्थिर है। उन्हें बुखार की वजह से भर्ती कराया गया है।
मनमोहन सिंह फिलहाल राजस्थान से राज्यसभा सदस्य हैं। वो 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। मनमोहन की जांच के लिए दिल्ली AIIMS में एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया है। इसे वहां के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया हेड कर रहे हैं।
मनमोहन सिंह इस साल 19 अप्रैल को कोरोना वायरस से भी संक्रमित हो गए थे। उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था। 10 दिन के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली थी।
दो बार हो चुकी है बाईपास सर्जरी
डॉ. मनमोहन सिंह को शुगर की भी बीमारी है। उनकी दो बाईपास सर्जरी भी हो चुकी है। पहली सर्जरी 1990 में ब्रिटेन में हुई थी, जबकि 2009 में एम्स में उनकी दूसरी बाईपास सर्जरी की गई थी। पिछले साल एक दवा के रिएक्शन और बुखार होने के बाद भी मनमोहन सिंह को एम्स में भर्ती कराया गया था।
वैक्सीन के दोनों डोज लने के बाद हुए थे कोरोना पॉजिटिव
मनमोहन इस साल 19 अप्रैल को कोरोना वायरस से भी संक्रमित हो गए थे। उनका इलाज दिल्ली AIIMS में चला था। खास बात ये थी कि पूर्व PM भारत बायोटेक की कोवैक्सिन की दोनों डोज ले चुके थे। उन्हें पहला शॉट 3 मार्च और दूसरा डोज 4 अप्रैल को दिया गया था।
- मेडिकल दाखिले से जुड़ी परीक्षा 'नीट' हो सकती है थोड़ी आसान, आकलन पैटर्न में बदलाव की तैयारी
परीक्षाओं से जुड़े छात्रों के तनाव को कम करने की कोशिशों के बीच सरकार अब मेडिकल में दाखिले से जुड़ी परीक्षा 'नीट' (नेशनल एलिजिबिलिटी एट्रेंस टेस्ट) की राह को भी आसान बना सकती है। इसमें इस पूरी परीक्षा के आकलन पैटर्न को बदला जा सकता है। जो विकल्प सुझाए गए हैं, उनमें बायोलाजी (जीव विज्ञान) और केमिस्ट्री (रसायन शास्त्र) विषयों के प्रदर्शन को प्राथमिकता देकर उसके आधार पर मेरिट तैयार करने और फिजिक्स (भौतिक विज्ञान) में सिर्फ न्यूनतम स्कोर रखने पर जोर दिया गया है। अभी इसे लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन जल्द ही कोई निर्णय हो सकता है।
बदलाव के पीछे दिए जा रहे ये तर्क
खास बात यह है कि नीट के आकलन पैटर्न में बदलाव के इन सुझावों के पीछे जो तर्क हैं, उसके मुताबिक मेडिकल की पढ़ाई में बायोलाजी और केमिस्ट्री से जुड़े ज्ञान की ही उपयोगिता ज्यादा है। ऐसे में छात्रों की योग्यता को भी इन्हीं दोनों विषयों में उनके प्रदर्शन के आधार पर परखा जाना चाहिए। रही बात फिजिक्स की, तो इसमें छात्रों के लिए सिर्फ न्यूनतम अंक हासिल करने की बाध्यता हो। यह सुझाव इसलिए भी अहम है क्योंकि नीट की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए आमतौर पर फिजिक्स एक कठिन विषय माना जाता है।
इन विषयों की होती है परीक्षा
इंजीनियरिंग में दाखिले से जुड़ी जेईई-मेंस और एडवांस जैसी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए मैथ्स (गणित) और फिजिक्स अहम विषय माने जाते हैं। मौजूदा समय में नीट के लिए बायोलाजी, केमिस्ट्री और फिजिक्स विषयों की परीक्षा होती है। हालांकि इसमें सबसे ज्यादा सवाल बायोलाजी से ही पूछे जाते हैं।
आसान होगी राह
सूत्रों के मुताबिक, अगर ऐसा हुआ तो नीट की तैयारी करने वाले छात्रों की राह पहले के मुकाबले आसान होगी। फिलहाल एनटीए (नेशनल टेस्टिंग एजेंसी) और स्वास्थ्य मंत्रालय के बीच इन पहलुओं पर मंथन चल रहा है। इसे लेकर क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों से भी सुझाव मांगे गए हैं।
परीक्षाओं को आसान बनाने की पहल
मालूम हो कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में परीक्षाओं को आसान बनाने की सिफारिश की गई है। इसके बाद ही शिक्षा मंत्रालय ने बोर्ड परीक्षाओं से जुड़े अहम बदलावों को लेकर पहल तेज की है जिसमें सोच आधारित सवालों की अधिकता होगी। साथ ही एक साथ पूरे पाठ्यक्रम की परीक्षा कराने के बाद इसे चैप्टर या यूनिट के हिसाब से कराने का प्रस्ताव है। फिलहाल सीबीएसई ने इस वर्ष से बोर्ड परीक्षाओं को दो हिस्सों में आयोजित कराने का फैसला लिया है। जिसमें आधे पाठ्यक्रम की एक साथ और आधे की एक साथ परीक्षा होगी। आने वाले दिनों में परीक्षा को आसान बनाने के लिए और भी कदम उठाए जाएंगे।
- अंतिम यात्रा में उमड़ा जन सैलाब: घर पहुंचा शहीद जसविंदर सिंह का पार्थिव शरीर, आखिरी दर्शन में रो पड़ा पूरा गांव
नायब सूबेदार जसविंदर सिंह का पार्थिव शरीर बुधवार को पंजाब के कपूरथला जिले के माना तलवंडी गांव में उनके आवास पर पहुंचा। 11 अक्तूबर को जम्मू और कश्मीर के पुंछ सेक्टर में एक आतंकवाद रोधी अभियान के दौरान जसविंदर सिंह शहीद हो गए थे। ऑपरेशन में एक जेसीओ और चार अन्य जवान भी शहीद हुए थे। पार्थिव शरीर सुबह 10 बजकर 50 मिनट पर पहुंचा।
गांव में पार्थिव शरीर पहुंचते ही कोहराम मच गया। सभी लोगों की आंखें नम हो गईं। मां और पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल है। भुलत्थ विधायक सुखपाल सिंह खैरा, एसजीपीसी अध्यक्ष बीबी जागीर कौर, डीसी दीप्ति उप्पल, एसपी रमणीस चौधरी, डीएसपी भुल्तथ अमरीक सिंह चाहल व अन्य प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी गांव में मौजूद हैं।
शहीद की पत्नी राज कौर ने बताया कि उनकी शहादत से एक दिन पहले बात हुई थी। उन्होंने मुझसे कहा था कि वह दो दिन बाद घर आएंगे और 15 दिन की छुट्टी ली थी। उन्होंने बहुत वीरता दिखाई थी इसलिए उन्हें सेना पदक दिया गया। वह चाहते थे कि हमारा बेटा सेना में भर्ती हो।
शहीद की मां मनजीत कौर ने कहा कि वह बहुत अच्छा था और परिवार चलाता था। लेकिन अब मुश्किल होगी। जसविंदर के साथ जिन लोगों की जान गई है, वे भी मेरे बेटे जैसे थे। हमारे पास न तो जमीन है और न ही संपत्ति। हम क्या करेंगे? जब मेरा पोता बड़ा हो जाएगा तो मैं उसे सेना में भर्ती के लिए भेजूंगी।
आखिरी कॉल में कहा था- ठीक ठाक हूं, खुश हूं
शहीद नायब सूबेदार जसविंदर सिंह की दो दिन पहले आखिरी बार फोन पर बड़े भाई राजिंदर सिंह से ही बातचीत हुई थी। पूर्व फौजी भाई ने बताया कि फोन पर जसविंदर ने कहा था कि ‘वह बिल्कुल ठीकठाक है और खुश है...’, पर सोमवार की सुबह साढ़े नौ बजे बजने वाली फोन की घंटी उसकी शहादत का पैगाम लेकर आई।
राजिंदर सिंह ने बताया कि आखिरी बार जसविंदर सिंह मई में पिता कैप्टन हरभजन सिंह के निधन पर गांव छुट्टी पर आया था, उसके बाद नवंबर की दो-तीन तारीख को उसने पिता के वरीना (निधन के बाद त्योहार से पहले की जाने वाली रस्म) के लिए छुट्टी पर आना था।
विधायक ने की केंद्रीय नौकरी की मांग
विधायक सुखपाल सिंह खैरा ने कहा कि केंद्र सरकार को शहीद जसविंदर सिंह के परिवार को एक करोड़ रुपये और एक सदस्य को केंद्रीय नौकरी देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि शहीद की शहादत का मूल्य नहीं चुकाया जा सकता है। राज्य सरकार की 50 लाख रुपये और सरकारी नौकरी शहादत के आगे नाकाफी है। उन्होंने कहा कि शहीद जसविंदर सिंह किसान परिवार से हैं, अब मोदी सरकार को समझ जाना चाहिए कि सिंघु बार्डर और सीमा पर तैनात किसान ही हैं न कि कोई आतंकवादी। इसलिए मोदी सरकार को अब तो तीनों काले कृषि कानून वापस ले जाने चाहिए।
- कोवैक्सिन को एक्सपर्ट पैनल ने दी मंजूरी, अभी कितनी दूर बच्चों की वैक्सीन
भारत बायोटेक की कोवैक्सिन (Bharat Biotech's Covaxin) को कुछ शर्तों के साथ मार्केटिंग की मंजूरी मिल गई है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल (Emergency Use) में लाया जा सकेगा। 2 से 18 साल के बच्चों व किशोरों को यह वैक्सीन दिए जाने पर अंतिम फैसला बाकी है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, कंपनी के दिए डेटा की जांच में कुछ दिन लगेंगे। सब कुछ ठीक रहने पर, ड्रग रेगुलेटर की तरफ से कोवैक्सिन को 2-18 एजग्रुप में आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी दे दी जाएगी।
ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से अप्रूवल के बाद टीकाकरण पर बनी राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समिति (NTA-GI) भी डेटा को परखेगी। उसके हरी झंडी दिखाने के बाद, कोवैक्सिन को बच्चों के टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा बना लिया जाएगा।
फाइनल अप्रूवल से पहले क्या होगा?
भारत बायोटेक को अपडेटेड प्रिस्क्राइबिंग इन्फॉर्मेशन, पैकेज इन्सर्ट, समरी ऑफ प्रॉडक्ट कैरेक्टिरिस्टिक्स और फैक्टशीट सबमिट करनी होगी। इसके अलावा रिस्क मैनेजमेंट के लिए एक विस्तृत प्लान देना होगा। मंजूरी के बाद कंपनी को पहले दो महीने हर 15 दिन पर प्रतिकूल प्रभावारों की जानकारी देनी होगी, उसके बाद हर महीने। टीकाकरण पर बनी राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समिति डेटा को परखने के बाद उसे राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल करने की मंजूरी देगी।
हमारे यहां बच्चों के लिए कौन-कौन सी वैक्सीन हैं?
ZyCoV-D (जायडस कैडिला)
- 12 साल या उससे ज्यादा उम्र के लोगों पर इस्तेमाल की मंजूरी मिल चुकी है। हालांकि इसे अभी टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है।
Covaxin (भारत बायोटेक)
- 2 साल या उससे ज्यादा उम्र वालों पर इस्तेमाल के लिए अप्रूव्ड। यह वैक्सीन भी टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है।
Corbevax (बायोलॉजिकल ई)
- 5 से 18 साल उम्र वाले बच्चों में ट्रायल की मंजूरी।
Covavax (सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया)
- 2 से 18 साल के बच्चों में ट्रायल के लिए अप्रूव्ड।
बड़ों की तरह बच्चों पर असरदार है Covaxin
बच्चों पर ट्रायल में Covaxin ने बड़ों जितना ही असर दिखाया है। इसका सेफ्टी और इम्युन रेस्पांस एक जैसा रहा है। हां इसके फेज 3 डेटा का अभी पीयर रिव्यू नहीं हुआ है जिसे लेकर कुछ एक्सपर्ट्स ने चिंता जताई है। अभी Covaxin को विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी मंजूरी नहीं मिली है। वैक्सीन को अप्रूवल मिलने के बाद भी उसे चरणबद्ध तरीके से उपलब्ध कराया जा सकता है। पहले को-मॉर्बिडिटी वाले बच्चों को वैक्सीन दी जा सकती है।
कोवैक्सिन को जल्द ही मिल जाएगा EUA
Covaxin से इतर, जायडस कैडिला की ZyCov-D को 12 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों पर आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी दी गई है। सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया Covavax का 7 से 11 साल के बच्चों पर फेज 2 और 3 ट्रायल कर रहा है। कोवैक्सीन को जल्द ही आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मिल सकती है।
- गति शक्ति नेशनल मास्टर प्लान की शुरुआत:PM मोदी ने कहा- आज का भारत समय पर प्रोजेक्ट पूरे कर रहा, 21वीं सदी में पुरानी सोच पीछे छोड़ रहा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज 'पीएम गति शक्ति नेशनल मास्टर प्लान' का शुभारंभ किया। 100 लाख करोड़ रुपए की इस योजना के तहत रेल और सड़क समेत 16 मंत्रालयों को डिजिटली कनेक्ट किया जाएगा। इससे इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्रोजक्ट्स में तेजी आएगी। इसके तहत शुरुआत में 16 ऐसे मंत्रालयों की पहचान की गई है जो बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का काम देखते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को गति शक्ति योजना का ऐलान किया था।
इससे विकास की गति होगी तेज
इस अवसर पर PM मोदी ने कहा कि आज दुर्गा अष्टमी है। पूरे देश में आज कन्या पूजन हो रहा है। आज देश की प्रगति को शक्ति देने का शुभ कार्य हो रहा है। यह 21वीं सदी के भारत के निर्माण को नई ऊर्जा देगा। विकास के रास्ते की रुकावट को दूर करेगा और भारत के विकास को गति देगा। एक पोर्टल से सभी योजनाओं की जानकारी मिलेगी। देसी हैंडीक्राफ्ट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखेंगे।
उन्होंने कहा कि पहले की सरकारों को लगता था कि जैसा चल रहा है, वैसा चलने दो आज का भारत समय पर प्रोजेक्ट को पूरा कर रहा है। सरकारी शब्द का मतलब पहले बिगड़ गया था, लोगों को लगता था कि सरकारी मतलब क्वालिटी खराब है। लेकिन अब भारत 21वीं सदी में पुरानी सोच पीछे छोड़ रहा हैं।
सरकारी विभागों में तालमेल की कमी
PM मोदी ने अपने संबोधन के दौरान कहा कि सरकारी विभागों के बीच आपसी तालमेल की कमी देखी जाती है। इस वजह से जो प्रोजेक्ट अर्थव्यवस्था को मजबूती देने वाले होते थे। वे ही कमजोर पड़ जाते थे। कई प्रोजेक्ट्स लटक जाते थे। मैं 2014 में जब प्रधानमंत्री बना तो देश में लाखों करोड़ों के प्रोजेक्ट अटके पड़े थे। हमने सारी रुकावटों को दूर करने का प्रयास किया।
उन्होंने आगे कहा कि कहीं सड़क बनने के बाद पानी की पाइपलाइन डालने के लिए उसे खोद दिया जाता है। कहीं सड़क विभाग डायवर्जन बना देता है, ट्रैफिक पुलिस कहती है उससे जाम लग रहा है। ऐसे कई उदाहरण हैं। इनका समन्वय करने में दिक्कत आती थी। इससे बजट की भी बर्बादी होती है।
पिछले 70 सालों की तुलना में तेजी से काम कर रहा भारत
प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले 70 सालों की तुलना में भारत तेजी से काम कर रहा है। पहली नेचुरल गैस पाइपलाइन 1987 में कमीशन हुई थी। फिर साल 2014 तक 27 साल में देश में 15 हजार किलोमीटर नेचुरल गैस पाइपलाइन बनी। आज देशभर में 16 हजार किलोमीटर से ज्यादा गैस पाइपलाइन पर काम चल रहा है। जितना काम 27 साल में हुआ, उससे ज्यादा काम हम उसके आधे समय में करने वाले हैं।
कहीं पोर्ट होते थे तो उनको कनेक्ट करने वाले रेल-सड़क मार्ग नहीं होते थे। इससे एक्सपोर्ट, लॉजिस्टिक कॉस्ट बढ़ी। ये आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में रुकावट है। एक स्टडी के मुताबिक, भारत में लॉजिस्टिक कॉस्ट जीडीपी का करीब 13% है। दुनिया के बड़े देशों में ऐसी स्थिति नहीं है।
वर्क इन प्रोग्रेस का बोर्ड बन गया था अविश्वास का प्रतीक
PM मोदी ने कहा कि टैक्स के पैसे को इस्तेमाल करते वक्त सरकार में भावना नहीं होती थी कि उसको बर्बाद ना होने दिया जाए। लोगों को भी लगने लगा कि ऐसा ही चलता रहेगा। हर जगह वर्क इन प्रोग्रेस लिखा दिखता था। लेकिन वह काम समय पर या कभी पूरा होगा या नहीं इसको लेकर कोई भरोसा नहीं था। वर्क इन प्रोग्रेस का बोर्ड अविश्वास का प्रतीक बन गया था। लेकिन अब ये सोच बदल रही है।
आने वाले 5 सालों में 200 से ज्यादा नए एयरपोर्ट, हेलीपैड और वाटर एयरडोम बनेंगे
प्रधानमंत्री ने बताया कि आने वाले 4-5 साल में देश में 200 से ज्यादा नए एयरपोर्ट, हेलीपैड और वाटर एयरडोम बनने जा रहे हैं। देश के किसानों, मछुआरों की आय बढ़ाने पर काम चल रहा है। 1 हजार किलोमीटर लंबे नए मेट्रो रूट पर काम चल रहा है। अब देश को विश्वास है कि भारत तेजी से काम कर सकता है।
गति शक्ति नेशनल मास्टर प्लान
प्रधानमंत्री गति शक्ति नेशनल मास्टर प्लान औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के साथ-साथ एयरपोर्ट, नई सड़कों और रेल योजनाओं समेत यातायात की व्यवस्था को दुरुस्त करना और इसके जरिए युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करना होंगे। इस डिजिटल मंच की मदद से विकास कार्यों को स्पीड देने की कोशिश होगी। इससे उद्योगों की कार्य क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी और स्थानीय विनिर्माताओं को बढ़ावा मिलेगा। इसके तहत 16 मंत्रालयों और विभागों ने उन सभी परियोजनाओं को जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम (GIS) मोड में डाल दिया है, जिन्हें 2024-25 तक पूरा किया जाना है।
गति शक्ति देश के लिए नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर का मास्टर प्लान होगा। यह इकोनॉमी को इंटीग्रेटेड पाथ-वे देगा। गति शक्ति सभी रोड़ों को और कठिनाइयों को हटाएगी। सामान्य आदमी के ट्रेवल टाइम में कमी होगी, मैन्युफैक्चरर्स को मदद होगी। अमृत काल के इस दशक में गति की शक्ति भारत के कायाकल्प का आधार बनेगी।
16 विभागों को योजना में किया जाएगा शामिल
इस योजना में रेलवे, सड़क व राजमार्ग, पेट्रोलियम और गैस, बिजली, दूरसंचार, नौवहन, विमानन व औद्योगिक पार्क बनाने वाले विभागों समेत केंद्र सरकार के 16 विभागों को शामिल किया जाएगा। केंद्र के सभी 16 विभागों के उच्च अधिकारियों का नेटवर्क प्लानिंग ग्रुप गठित किया जाएगा। इससे देश में विकास को गति देने में मदद मिलेगी।
प्रगति मैदान के नए कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन भी किया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले प्रगति मैदान के नए कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन किया। इसमें 4 हॉल बनकर तैयार हो चुके हैं। इनको पूरी तरह से बदल दिया गया है। इसमें 4800 कार एक साथ पार्क हो सकेगी। फिलहाल कुछ अंडरपास और टनल बन रही हैं, जिससे बाहर की सड़कों का ट्रैफिक कंट्रोल किया जा सकेगा।
- 'दुख भरे दिन बीते' लिख सोनिया के साथ वरुण गांधी का पोस्टर किया शेयर , कांग्रेस नेता पर पार्टी ने लिया एक्शन
हाल ही में सोशल मीडिया पर एक पोस्टर काफी वायरल हुआ था। इस पोस्टर में कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद वरुण गांधी की तस्वीर लगी थी। दोनों नेताओं की तस्वीर के साथ लिखा गया था, 'सुस्वागतम्..दु:ख भरे दिन बीते रे भईया, अब सुख आयो रे' इस पोस्टर में सोनिया और वरुण गांधी की तस्वीर के अलावा कांग्रेस के दो नेताओं इऱशाद उल्ला और बाबा अभय अवस्थी की तस्वीर भी लगी थी।
इस तस्वीर के वायरल होने के बाद अब कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के एक स्थानीय पार्टी नेता पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की है। आरोप है कि प्रयागराज के कांग्रेस कमेटी सचिव इरशाद उल्लाह ने यह पोस्टर सोशल मीडिया पर शेयर की थी। जिसके बाद यह सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। इस पोस्टर में सोनिया गांधी के अलावा पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी भी हैं, जिनका स्वागत कांग्रेस में किया जा रहा है।
इस पोस्टर में प्रयागराज कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अभय अवस्थी की भी तस्वीर है। कांग्रेस कमेटी के मौजूदा अध्यक्ष नफीस अनवर के अनुसार इरशाद उल्लाह को 15 दिनों तक उनकी ड्यूटी से मुक्त कर दिया गया है। बता दें जब वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी को भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटाया गया तब उसके बाद यह पोस्टर वायरल हुआ था।
बता दें कि इस पोस्टर को लेकर घेरे में आए शहर सचिव इरशाद उल्ला इससे पहले अपनी ही बात से पलट रहे थे। संपर्क करने पर उन्होंने कहा था कि सांसद वरुण गांधी की मुलाकात सोनिया गांधी से होनी है। अति उत्साह में आकर उन्होंने पोस्टर में सुस्वागतम लिखाथा। अचानक अपनी ही बात से पलटते हुए उन्होंने फिर कहा था कि यह किसी की शरारत है। इतना कहते ही फोन काट दिया था।
- IMF के बाद वर्ल्ड बैंक ने दिए अच्छे संकेत, कहा- कोरोना से उबर रही है इंडियन इकोनॉमी
वर्ल्ड बैंक (World Bank) के अध्यक्ष डेविड मालपास (David Malpass) ने बुधवार को कहा कि कोविड-19 महामारी की चपेट में आई भारतीय अर्थव्यवस्था अब संकट से उबरने की स्थिति में है और वर्ल्ड बैंक इसका स्वागत करता है.
'कोविड संकट से उबर रहा भारत'
मालपास ने यह भी कहा कि भारत संगठित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) में अधिक लोगों को एकीकृत करने और लोगों की कमाई बढ़ाने की बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है. भारत ने इस दिशा में कुछ प्रगति की है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. मालपास ने कहा, 'भारतीयों को कोविड की लहर से बहुत नुकसान हुआ है और यह दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने टीकों के विशाल उत्पादन के साथ इससे निपटने की कोशिश की है और टीकाकरण की कोशिश में भी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन हमें भारतीय अर्थव्यवस्था पर और विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र (Unorganized Sector) पर जो प्रभाव पड़ा है, उसका पता लगाना होगा.'
Inflation से प्रभावित हो रहा है भारत
पिछले हफ्ते वर्ल्ड बैंक ने इस साल इंडियन इकोनॉमी के 8.3% की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया था. वर्ल्ड बैंक (World Bank) के अध्यक्ष मालपास ने कहा, 'भारतीय अर्थव्यवस्था ठीक हो रही है, और हम इसका स्वागत करते हैं. इसने कोविड की ताजा लहर से पार पालिया है. यह अच्छी बात है. लेकिन भारत, अन्य देशों की तरह, अब आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और दुनिया में बढ़ रही मुद्रास्फीति (Inflation) से प्रभावित हो रहा है.'
IMF ने भी दिए थे अच्छे संकेत
बीते दिन मंगलवार को ही इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिहाज से अच्छी खबर दी थी. आईएमएफ ने इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था के ग्रोथ रेट को 9.5 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान जताया था. इसके साथ ही IMF की तरफ से कहा गया था कि अगले साल यानी 2022 में ग्रोथ रेट 8.5 फीसदी की दर से बढ़ सकती है. आपको बता दें, कोरोना की वजह से देश की अर्थव्यवस्था में वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 7.3% की गिरावट आई थी.
- तिहाड़ जेल के 30 कर्मचारी सस्पेंड, 2 की गई नौकरी, यूनिटेक प्रमोटर चंद्रा बंधुओं के साथ मिलीभगत पड़ी भारी
यूनिटेक मामले में दिल्ली पुलिस की ओर से कार्रवाई शुरू किए जाने के बाद तिहाड़ जेल के 32 कर्मचारियों पर गाज गिरी है। इस पूरे मामले में 30 कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया गया है वहीं दो कर्मचारियों के टर्मिनेटट कर दिया गया है। दिल्ली पुलिस की ओर से तिहाड़ जेल के डीजी और गृह मंत्रालय को इस संबंध में पत्र लिखा गया था।
तिहाड़ जेल के 32 कर्मचारियों पर यूनिटेक के पूर्व प्रमोटर अजय चंद्रा और संजय चंद्रा के साथ मिलीभगत के आरोप लगे थे। दिल्ली पुलिस कमिश्नर की रिपोर्ट पर कोर्ट ने इस मामले में आगे जांच करने का निर्देश दिया था। जिसके बाद मंगलवाल दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने FIR दर्ज करके जांच शुरू कर दी।
तिहाड़ जेल के 32 स्टाफ पर यूनिटेक के पूर्व प्रमोटर अजय चंद्रा और संजय चंद्रा के साथ मिलीभगत के बाद दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। कार्रवाई के लिए तिहाड़ जेल और गृह मंत्रालय को पत्र भी भेजा गया था जिसके बाद यह कार्रवाई हुई है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना की रिपोर्ट के आधार पर तिहाड़ जेल के अधिकारियों और जेल में बंद यूनीटेक के पूर्व प्रमोटर संजय और अजय चंद्रा बंधुओं के बीच साठगांठ की विस्तृत जांच का पिछले बुधवार को निर्देश दिया था। वहीं 26 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने चंद्रा बंधुओं को राष्ट्रीय राजधानी की तिहाड़ जेल से महाराष्ट्र में मुंबई की आर्थर रोड जेल और तलोजा जेल ट्रांसफर करने का निर्देश दिया था।
- Tomato prices: महंगाई की मार, टमाटर 70 रुपए के पार, समझें-आखिर क्यों बढ़ रही कीमत
Tomato prices in retail markets: पेट्रोल-डीजल और गैस की कीमतों के बीच अब सब्जियों के दाम भी बढ़ने लगे हैं। देश के मेट्रो शहरों में प्रति किलो टमाटर की कीमत 70 रुपए के पार चली गई है।
किस शहर में कितनी कीमत: बीते 12 अक्टूबर को कोलकाता में टमाटर की कीमत 72 रुपये प्रति किलोग्राम थी, जबकि कुछ दिनों पहले तक 38 रुपये प्रति किलोग्राम पर बिक्री हुई थी। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों को ही मानें तो एक माह में दिल्ली और चेन्नई में, टमाटर की खुदरा कीमतें क्रमश: 30 रुपए और 20 रुपए प्रति किलोग्राम से बढ़कर 57 रुपए प्रति किलोग्राम हो गई है। आंकड़ों से पता चलता है कि इस दौरान मुंबई के खुदरा बाजारों में टमाटर की कीमत 15 रुपए प्रति किलोग्राम से बढ़कर 53 रुपए प्रति किलोग्राम हो गई है।
क्या है बढ़ोतरी की वजह: राजधानी दिल्ली की आजादपुर मंडी के टमाटर व्यापारी एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक कौशिक ने बताया, "मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे उत्पादक राज्यों में बेमौसम बारिश ने फसल को नुकसान पहुंचाया है। इससे दिल्ली जैसे उपभोक्ता बाजारों में आपूर्ति प्रभावित हुई है। यही वजह है कि थोक और खुदरा दोनों बाजारों में टमाटर के दाम बढ़ गए हैं।" अशोक कौशिक के मुताबिक बेमौसम बारिश वाले उत्पादक राज्यों में टमाटर की 60 प्रतिशत फसल बर्बाद हो गई है। नतीजतन, आजादपुर मंडी में एक महीने में टमाटर की कीमतें लगभग दोगुनी होकर 40-60 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई हैं। उन्होंने बताया कि टमाटर की आवक में भी गिरावट आई है।
पीएम किसान सम्मान निधि: यूपी के किसान ध्यान दें! अगर आज चूके तो लटकेगी अगली किस्त
दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक: नेशनल हॉर्टिकल्चरल रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन के अनुसार, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टमाटर उत्पादक देश भारत है। भारत, 7.89 लाख हेक्टेयर क्षेत्र से लगभग 25.05 टन प्रति हेक्टेयर की औसत उपज के साथ लगभग 19.75 मिलियन टन टमाटर का उत्पादन करता है।
- मुंबई में युवक ने जन्मदिन पर काटे 550 केक, 2.5 मिनट तक लगातार चला केक काटने का सिलसिला
यूं तो जन्मदिन पर केक काटना आम बात है, लेकिन मुंबई का एक युवक अनोखे अंदाज में केक काटकर सोशल मीडिया पर छा गया है। सूर्या रतूड़ी नाम के युवक ने दोनों हाथों में चाकू लेकर एक साथ 550 केक काटे। उनका ये कारनामा अब सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। करीब 2.5 मिनट के इस वीडियो में रतूड़ी अलग-अलग फ्लेवर के केक काटते नजर आ रहे हैं। उनके आस-पास खड़े लोग ताली बजाकर उनका हौसला बढ़ाते नजर आ रहे हैं। केक काटने का ये वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। इसे अबतक लाखों लोग देख चुके हैं।
नागपुर-सूरत में भी हो चुके हैं ऐसे कारनामे
पिछले साल अक्टूबर में नागपुर में एक युवक का तलवार से केक काटते हुए वीडियो सामने आया था। हालांकि, बाद पुलिस ने युवक को गिरफ्तार कर लिया था। 2019 में उत्तर प्रदेश के बागपत में एक युवक ने जन्मदिन के मौके पर बीच सड़क पर केक काटा था। इस दौरान उसने बंदूक से हवाई फायर भी किए थे। इस घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।
अक्टूबर में गुजरात के सूरत में बर्थडे सेलिब्रेशन के नाम पर कोरोना गाइडलाइन की जमकर धज्जियां उड़ाई गईं थीं। बार बालाओं के डांस कराया गया था, जिन पर लोगों ने जमकर नोट उड़ाए थे। इस सेलिब्रेशन का वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने 7 लोगों को हिरासत में लिया था।
कोराेना संक्रमण घटा तो सेलिब्रेशन शुरू
कोराेनाकाल में लगे प्रतिबंध के कारण लोग पिछले करीब डेढ़ साल से सेलिब्रेशन इंजॉय नहीं कर पाए हैं। लेकिन देश के अनलॉक होने के बाद से ही लोग जमकर पार्टी, बर्थडे और एनिवर्सरी सेलिब्रेट कर रहे हैं।
- पतियों को कंडोम नहीं लगाने देती है ये महिला, 22 साल में पैदा कर चुकी है 11 बच्चे
न्यूयॉर्क (Newyork) में रहने वाली एक महिला ने अपनी प्रेग्नेंसी का अनाउंसमेंट (Pregnancy News) कर सनसनी मचा दी. इस महिला ने 22 साल में 11 बच्चों (11 Children In 22 Years) को जन्म दिया है. अब एक बार फिर ये महिला 12वे बच्चे से प्रेग्नेंट है.
मां बनने का सुख हर महिला की जिंदगी का सबसे खूबसूरत लम्हा होता है. लेकिन आज के महंगाई के इस युग में लोग प्लानिंग के हिसाब से ही बच्चे पैदा करते हैं. कपल पहले अपनी सेविंग्स और आने वाली लाइफ को सिक्योर करते हुए ही बच्चे पैदा करने का प्लान बनाते हैं. लेकिन इन दिनों सोशल मीडिया पर वेरोनिका मेर्रीट नाम की महिला इन दिनों चर्चा में है. वेरोनिका ने बीते 22 साल में 11 बच्चों (11 Children In 22 Years) को जन्म दिया है. अब वो अपने बारहवें बच्चे से प्रेग्नेंट है.
न्यूयॉर्क में रहने वाली वेरोनिका (Veronica) ने अपनी प्रेग्नेंसी की न्यूज सोशल मीडिया पर खुद ही शेयर की. उसने इस खबर को #12kids कैप्शन के साथ शेयर किया. वेरोनिका अमेरिका की मशहूर टिकटोकर है. अगले साल गर्मियों में वेरोनिका अपने बारहवें बच्चे का स्वागत करेगी. वेरोनिका की पहली बेटी अभी 21 साल की है. बता दें कि ये महिला मात्र 14 की उम्र में प्रेग्नेंट हो गई थी. इसके बाद से अगले 22 सालों में उसने 11 बच्चों को जन्म दिया.
दो पतियों से पैदा किये 11 बच्चे
वेरोनिका को बच्चे पैदा करना काफी पसंद है. उसने बताया कि हेल्थ प्रॉब्लम के कारण वो गर्भनिरोध का इस्तेमाल नहीं करती. साथ ही उसे कंडोम पर विश्वास नहीं है. इस वजह से वो अपने पतियों को कभी कंडोम यूज करने नहीं देती थी. अभी भी वेरोनिका का बच्चे पैदा करने पर रोक लगाने का कोई इरादा नहीं है. उसने द सन को बताया कि 17 बच्चे पैदा करने के बाद ही उसका परिवार पूरा होगा.
अभी 6 और बच्चे पैदा करना चाहती है महिला
वेरोनिका के दो पतियों से 11 बच्चे हैं. उसे किडनी की समस्या है और पिछले साल ही उसकी एक किडनी खराब हो गई थी. इस कारण वो गर्भनिरोधक दवाइयां नहीं खाती. इससे उसके खून में थक्के बनने लगते हैं. अभी वो 6 और बच्चे पैदा करना चाहती है. उसने अभी तक अपनी जिंदगी के साढ़े 8 साल प्रेग्ननेंट होकर गुजार दिए हैं. अभी वेरोनिका के पति 37 साल के मर्त्य है, जिससे उसके 7 बच्चे हैं. बाकि के बच्चे उसके पहले पति के हैं.
- मिल गई दुनिया की सबसे लंबी महिला, गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने बताई चौंकाने वाली लंबाई
दुनिया की सबसे लंबी महिला होने का गिनीज रिकॉर्ड तुर्की की रुमेसा गेलगी के नाम दर्ज हुआ है। रुमेसा गेलगी की कुल लंबाई 7 फीट 0.7 इंच (215.16 सेमी) की है। लंबाई मापने के बाद गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने रुमेसा गेलगी को जीवित सबसे लंबी महिला का खिताब दे दिया। दुनिया का सबसे लंबे पुरुष का रिकॉर्ड भी तुर्की के सुल्तान कोसेन के नाम दर्ज है। उनकी लंबाई 2018 में 8 फीट 2.8 इंच (251 सेमी) मापी गई थी।
वीवर सिंड्रोम से पीड़ित हैं रुमेसा
रिपोर्ट में बताया गया है कि रुमेसा गेलेगी वीवर सिंड्रोम से पीड़ित हैं। इस सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की लंबाई असामान्य रूप से बढ़ती रहती है। कई मामलों में वीवर सिंड्रोम से पीड़ित लोगों का शरीर तो बढ़ जाता है, लेकिन उसके अनुपात में उनके सिर का साइज छोटा रहता है। इसके साथ ही पीड़ित का दिमाग भी सामान्य तरीके से काम नहीं करता और वह बौद्धिक अक्षमता से पीड़ित हो जाता है।
पहले भी गिनीज बुक में दर्ज हो चुका है नाम
गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज होने के बाद रुमेसा गेलगी ने कहा कि हर नुकसान अपने लिए एक लाभ में बदल सकता है इसलिए खुद को स्वीकार करें कि आप कौन हैं, अपनी क्षमता से अवगत रहें और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करें। 2014 में गेलगी ने जीवित सबसे लंबी टीनएजर के रूप में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज करवाया था। अब 2021 में उनके नाम सबसे लंबी जीवित महिला होने का रिकॉर्ड भी हो गया है।
गिनीज बुक ने की तारीफ
वीवर सिंड्रोम के कारण रुमेसा गेलगी सामान्य जिंदगी नहीं जी सकती हैं। उन्हें चलने के लिए व्हीलचेयर या फिर वॉकिंग फ्रेम का सहारा लेना पड़ता है। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के एडिटर इन चीफ क्रेग ग्लेनडे ने कहा कि रिकॉर्ड बुक में रुमेसा का वापस स्वागत करना सम्मान की बात है। उनकी अदम्य भावना और भीड़ से अलग खड़े होने का गर्व सबके लिए एक प्रेरणा है।
दुनिया का सबसे लंबा आदमी भी तुर्की का
दुनिया का सबसे लंबा आदमी सुल्तान कोसेन भी तुर्की के रहने वाले हैं। 2018 में उनका कद 8 फीट 2.8 इंच (251 सेमी) था। सुल्तान का जन्म 10 दिसंबर 1982 को हुआ था। 10 साल की उम्र के बाद उनका कद अचानक बढ़ना शुरू हुआ था। बड़ी बात यह है कि उनके माता-पिता और चार भाई-बहनों सहित उनके परिवार के बाकी सभी सदस्य औसत आकार के हैं।
- बगीचे में बेकार पड़ी मूर्तियां निकलीं 'खजाना', परिवार ने कबाड़ समझकर बेचीं तो मिले दो करोड़ रुपए
ब्रिटेन में एक परिवार को उस वक्त झटका लगा जब उन्हें पता चला कि उनके बगीचे में लगी मूर्तियां बेशकीमती हैं। बगीचे में लगी मूर्तियां जिन्हें परिवार मामूली समझ रहा था दरअसल प्रचीन मिस्र की कलाकृतियां हैं जिनकी कीमत करोड़ो में है। बगीचे में लगी मूर्तियां दो बैठे स्फिंक्स की हैं जो देखने में बेहद साधारण लगती हैं। परिवार को जानकर आश्चर्य हुआ कि प्राचीन मिस्र की कलाकृतियों की कीमत 2.47 करोड़ रुपए से अधिक है।
परिवार घर छोड़ने से पहले इन मूर्तियों से छुटकारा पाना चाहता था। उन्होंने मूर्तियों को बेचने के उद्देश्य से लिए इनकी कीमत लगवाई। तब तक परिवार को असलियत के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। विशेषज्ञों की जांच में सामने आया कि काई और धूल से ढकी हुई दोनों मूर्तियां दरअसल 5000 साल पुरानी हैं। लेकिन परिवार ने उन्हें अपने बगीचे में सजावट के रूप में बेहद लापरवाही से रखा हुआ था।
नए घर नहीं ले जाना चाहते थे मूर्तियां
रिपोर्ट्स के अनुसार मूर्तियां खराब स्थिति में थीं लेकिन अपनी इस हालत के कारण वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान खींच रही हैं। जब मूर्तियों को नीलामी के लिए रखा गया तो बढ़ती बोलियों से परिवार स्तब्ध रह गया। Metro.co.uk ने ऑक्शनर जेम्स मंदर के हवाले से कहा, 'एक स्थानीय परिवार ने हमसे संपर्क किया। अपने नए घर में शिफ्ट हो रहे थे और अपने बगीचे कुछ पुराने सामान को हटाना चाहते थे। जो उनके नए घर के लिए फिट नहीं था।
दो करोड़ में बिकीं मूर्तियां
उन्होंने बताया कि बोली धीमी होने से पहले तेजी से 100,000 पाउंड तक बढ़ गई। मूर्तियों को आखिरकार 195,000 पाउंड यानी 2 करोड़ रुपए में बेच दिया गया। जेम्स ने कहा कि नीलामी के लिए यह एक रोमांचक दिन था। यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि मूर्तियों को बेचने वालों को इसकी कीमत का कोई अंदाजा नहीं था। उन्होंने सजावट के सामान के तौर पर इन्हें खरीदा था और कई सालों तक इसे सजाए रखा।
- Crocodile और विशाल Anaconda में 40 मिनट चली जिंदगी की जंग, जानें किसके नाम रही जीत?
जंगली जानवरों के बीच जिंदगी की जंग के नजारे तो आपने बहुत देखें होंगे, लेकिन क्या कभी (Crocodile) मगरमच्छ और विशाल एनाकोंडा (Anaconda) को लड़ते हुए देखा है? अमेरिका के इंडियाना में रहने वालीं किम सुलिवन (Kim Sullivan) इस बेहद दुर्लभ फाइट का गवाह बनीं. उन्होंने करीब 40 मिनट तक इन ‘योद्धाओं’ को ब्राजील (Brazil) की कुइआबा नदी के किनारे संघर्ष करते हुए देखा.
Jaguars की तलाश में थीं फोटोग्राफर
‘द सन’ की रिपोर्ट के अनुसार, फोटोग्राफर किम सुलिवन (Photographer Kim Sullivan) जगुआर की तलाश में नाव से सफर कर रही थीं, तभी उनकी नजर नदी किनारे एक मगरमच्छ पर पड़ी, जिसे विशाल एनाकोंडा ने जकड़ रखा था. किम ने इससे पहले ऐसा नजारा कभी नहीं देखा था. वो जहां थीं, वहीं थम गईं और इस जंग को अपने कैमरे में कैद करनी लगीं. किम भी यह जानने को उत्सुक थीं कि आखिर इस लड़ाई में जीत किसकी होती है.
Anaconda का पलड़ा लग रहा था भारी
किम अपने अनुभव बयां करते हुए कहा कि ऐसा दृश्य जीवन में एक बार ही देखने को मिलता है. मैंने इससे पहले कभी ऐसी लड़ाई नहीं देखी थी. मगरमच्छ और एनाकोंडा दोनों एक-दूसरे को मात देने की कोशिश कर रहे थे. एनाकोंडा ने अपने शिकार को बुरी तरह जकड़ रखा था. ऐसा लग रहा था जैसे मगरमच्छ का बचना मुश्किल है, लेकिन वो हार मानने को तैयार नहीं था. करीब 40 मिनट तक ये लड़ाई चलती रही और मैं अंजाम जानने के लिए वहीं रुकी रही.
‘हर कोशिश पर मजबूत होगी गई जकड़’
मगरमच्छ ने कई बार एनाकोंडा को हवा में उछालने की कोशिश की, लेकिन हर कोशिश के बाद एनाकोंडा की पकड़ मजबूत होती गई. ऐसा लग रहा था जैसे इस लड़ाई का परिणाम एनाकोंडा के नाम रहेगा तभी अचानक मगरमच्छ पानी की गहराई में उतर गया. किम सुलिवन ने कहा, ‘मगरमच्छ को शायद समझ आ गया था कि जमीन पर वो इस लड़ाई को नहीं जीत सकता. इसलिए वो किसी तरह पानी में उतर गया. जैसे ही मगरमच्छ पानी में गया मैंने एनाकोंडा को छटपटाते हुए देखा. कुछ देर के बाद जब मगरमच्छ से बाहर आया से बाहर आया तो वो पूरी तरह आजाद था’.
Draw रही ये दुर्लभ Fight
मगरमच्छ को आजाद देखकर फोटोग्राफर किम को लगा कि इस लड़ाई में शायद एनाकोंडा मारा गया है, लेकिन चंद सेकंड बाद पानी में हलचल दिखाई दी. किम ने देखा कि एनाकोंडा तेजी से तैरता हुआ वहां से जा रहा था. यानी ये जंग ड्रॉ रही. ना कोई जीता, ना हारा. हां, इतना जरूर है कि एनाकोंडा को समझ आ गया होगा कि पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जाता. किम पिछले साल सितंबर में ब्राजील गईं, तभी वह इस दुर्लभ फाइट की गवाह बनीं.