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संपादकीय

क्या आज वाक्य वक्त की मांग है शासन 4.0? -भुपेंद्र शर्मा

February 02, 2022 08:36 PM

आने वाले वर्ष में कोविड महामारी और इससे पैदा हुए असंख्य संकटों में कमी आनी शुरू हो सकती है, लेकिन जलवायु कार्रवाई की विफलता से लेकर सामाजिक एकता के क्षरण तक कई ऐसी ऐसी चुनौतियाँ मौजूद हैं जिनका कोई समाधान होता नजर नहीं आता। इन चुनौतियों से निपटने के लिये नेतृत्वकत्तार्ओं को एक अलग और अधिक समावेशी शासन स्वरूप अपनाने की आवश्यकता होगी। हालाँकि, हाल के समय में लोगों का अपने नेतृत्वकत्तार्ओं पर से भी भरोसा कम होता दिखाई दे रहा है। सुशासन का स्वरूप या मॉडल अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था को एक अदृश्य समर्थन प्रदान करता है। यह उपयुक्त समय है कि विश्व शासन के अपने पिछले, अनुपयुक्त स्वरूपों से अब शासन 4.0 की ओर आगे बढ़े जिसका प्रस्ताव विश्व आर्थिक मंच के दावोस शिखर सम्मेलन में किया गया है और जो अधिकाधिक समावेशन के साथ दीर्घकालिक रणनीतिक धारणा पर केंद्रित है। 'शासन' का आशय निर्णय लेने और निर्णय लागू किये जाने की प्रक्रिया से हैं। इसका उपयोग कॉपोर्रेट शासन, अंतर्राष्ट्रीय शासन, राष्ट्रीय शासन या स्थानीय शासन जैसे विभिन्न संदर्भों में किया जा सकता है।

शासन 1.0 द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शासन 1.0 की अवधि में सार्वजनिक और कॉपोर्रेट शासन दोनों को ही एक मजबूत नेता के शासन द्वारा चिह्नित किया गया। इस प्रकार का नेतृत्व एक ऐसे समाज के लिये बेहतर था, जहाँ सूचना की लागत अधिक थी, पदानुक्रमित प्रबंधन अपेक्षाकृत सुचारू रूप से कार्य करता था और तकनीकी एवं आर्थिक प्रगति ने लगभग सभी को लाभान्वित किया था। शासन 2.0 मॉडल का उभार 1960 के दशक के अंत में हुआ और इसने भौतिक संपदा की प्रधानता की पुष्टि की। इसका उभार शेयरधारक पूंजीवाद और प्रगतिशील वैश्विक वित्तीयकरण के उदय के साथ-साथ हुआ। इस मॉडल के तहत केवल शेयरधारकों के प्रति जवाबदेह प्रबंधकों ने सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। हालाँकि वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने इस मॉडल को एक झटका दिया लेकिन इसकी संकीर्ण दृष्टि आगे भी बनी रही है। शासन 3.0 इसके अंतर्गत निर्णयन प्रक्रिया में संकट प्रबंधन काफी महत्त्वपूर्ण हो गया, जहाँ नेतृत्वकत्तार्ओं का मुख्य ध्यान परिचालन संबंधी विषयों पर रहा है और वे संभावित अनपेक्षित परिणामों के प्रति एक सापेक्षिक उपेक्षा का प्रदर्शन करते हैं। कोविड संकट का उभार इसी शासन 3.0 के दौरान हुआ है और इस मॉडल के परीक्षण-और-त्रुटि दृष्टिकोण से महामारी के बेतरतीब प्रबंधन एवं प्रभाव सामने आए हैं। 

खराब या कमजोर शासन आपदा जोखिम का चालक है और यह गरीबी एवं असमानता, खराब नियोजित शहरी विकास जैसे कई अन्य जोखिम चालकों से संबद्ध है। कुशासन का परिणाम प्राय: सर्वाधिक भेद्य/संवेदनशील समूह, गरीब, कमजोर, महिलाओं, बच्चों और पर्यावरण को भुगतना पड़ता है। मौजूदा हालात में संस्थाएँ और नेतृत्वकर्त्ता दोनों ही अब अपने उद्देश्य के लिये उपयुक्त नहीं लगते, चूँकि चौथी औद्योगिक क्रांति और जलवायु परिवर्तन द्वारा वर्तमान जीवन को बाधित किया जा रहा है, ऐसे में सार्वजनिक और कॉपोर्रेट शासन में परिवर्तन की आवश्यकता है। विश्व के लिये एक नया शासन मॉडल अत्यंत आवश्यक है, जो व्यापार एवं वित्त जगत को प्राथमिकता देने के बजाय समाज और प्रकृति की प्रधानता पर ध्यान केंद्रित करता हो। शासन 4.0 के तहत वर्तमान अल्पकालिक प्रबंधन दृष्टिकोण को दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टिकोण द्वारा प्रतिस्थापित करना होगा। वहीं महामारी, सामाजिक-आर्थिक संकट और मानसिक स्वास्थ्य जैसी समस्याओं पर ध्यान देने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये कार्रवाई, मानव गतिविधि से होने वाली जैव विविधता की हानि एवं पर्यावरण की क्षति को दूर करने और अनैच्छिक प्रवास जैसी संबंधित चुनौतियों को संबोधित किया जाना भी आवश्यक है। व्यवसायों द्वारा उत्तरदायित्व ग्रहण करना: नए मॉडल के अंतर्गत अतीत के टनल विजन या संकीर्ण दृष्टिकोण और अद्योमुखी दृष्टिकोण  को प्रतिस्थापित करना होगा। विसंगतियों से भरी जटिल और परस्पर-संबद्ध दुनिया में समाज के प्रत्येक हितधारक की भूमिकाओं में परिवर्तन लाया जाना चाहिये। व्यवसाय अब अपने सामाजिक एवं पारिस्थितिक प्रभावों की उपेक्षा नहीं कर सकते और यह जवाबदेही सरकार की होगी कि वह सुनिश्चित करे कि व्यवसाय उत्तरदायित्व ग्रहण करें।

हमें अब अर्थशास्त्र की संकीर्ण अवधारणा और अल्पकालिक वित्तीय हितों पर बल देना बंद करना होगा। इसके बजाय समाज और प्रकृति की प्रधानता किसी भी नई शासन प्रणाली के मूल में निहित होनी चाहिये। निश्चय ही वित्त और व्यवसाय अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन उन्हें समाज और प्रकृति की सेवा करनी चाहिये, न कि समाज और प्रकृति का उपयोग करना चाहिये। कई नेतृत्वकर्त्ता शासन के एक नए युग का नेतृत्व करने को इच्छुक हैं, जिनमें पर्यावरण, समाज एवं शासन संबंधी मेट्रिक्स की वकालत करने वाले व्यावसायिक कार्यकारी से लेकर कुछ राजनीतिक नेता तक सभी शामिल हैं। ऐसे नेतृत्वकत्तार्ओं का स्वागत किया जाना चाहिये जो अपने संकीर्ण हितों के बाहर मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं और जलवायु परिवर्तन से मुकाबले तथा सामाजिक अन्याय को दूर करने के लिये विशिष्ट कार्रवाई का समर्थन करते हैं।

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