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पंजाब

पंजाब में पिछले दो दशक से हो रही है कम बारिश, क्या दिखने लगा जलवायु परिवर्तन का प्रभाव?

October 01, 2022 07:24 AM

दर्पण न्यूज़ सर्विस

चंडीगढ़, 30 सितंबरः पंजाब में इस बार मानसून सीजन में बारिश सामान्य से कम रही है लेकिन यह पहला मौका नहीं है। पंजाब में पिछले दो दशकों से ज्यादा समय से सामान्य से कम बारिश हो रही है। इस दौरान केवल चार साल ऐसे हुआ कि सामान्य से अधिक बारिश हुई। विशेषज्ञ पंजाब जैसे खेतीबाड़ी प्रधान राज्य के लिए इस स्थिति को काफी चिंताजनक बताते हैं। 

विशेषज्ञों के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग व बढ़ते प्रदूषण के कारण व्यापक स्तर पर साल दर साल जलवायु परिवर्तन हो रहा है। इसी का नतीजा है कि मानसून सीजन में बारिश सामान्य से कम रह रही है या फिर ज्यादा हो रही है। इस कारण या तो बाढ़ से फसलें तबाह हो जाती हैं या फिर सिंचाई के लिए किसानों की ओर से भूजल का ज्यादा दोहन किया जाता है। यह चलन पंजाब के लिए बेहद घातक साबित हो सकता है।

आंकड़ों में समझे 
आंकड़ों के मुताबिक साल 2001 से लेकर 2010 तक केवल 2001 व 2008 को छोड़कर बाकी हर वर्ष सामान्य से कम बारिश हुई। 2002 में 499.4 एमएम की सामान्य बारिश के मुकाबले 363.8 एमएम बरसात हुई जो सामान्य से 27.2 प्रतिशत कम थी। इसी तरह से 2003 में 507.1 एमएम सामान्य बारिश के मुकाबले 487.3 एमएम बारिश हुई और यह सामान्य बारिश से 3.9 प्रतिशत कम थी। 

2004 में 501.8 एमएम सामान्य बारिश की तुलना में 280.4 एमएम बरसात दर्ज की गई। यह सामान्य से 44.1 प्रतिशत कम रही। 2005 में 501.8 एमएम की सामान्य बारिश के मुकाबले 445.1 बारिश हुई और यह सामान्य के मुकाबले 11.3 प्रतिशत कम रही। 2006 में सामान्य से 13 प्रतिशत कम बरसात दर्ज की गई। 

2007 में भी सामान्य से 32.2 प्रतिशत बारिश हुई। 2009 में 501.8 एमएम सामान्य बारिश के मुकाबले 326.6 एमएम ही बारिश दर्ज की गई। 2010 में 496.4 एमएम सामान्य बारिश के मुकाबले 457.5 एमएम बारिश हुई और यह सामान्य से 7.8 प्रतिशत कम रही। 2011 से 2020 के बीच केवल 2013 व 2018 में समान्य से ज्यादा बारिश हुई। जबकि बाकी के सभी वर्षों में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई। 

पिछले 10 सालों में ये रहा मौसम का हाल
  • 2011 में सामान्य से 27.6 प्रतिशत कम बरसात
  • 2012 में सामान्य से 46.4 प्रतिशत कम बारिश
  • 2014 में सामान्य से 49.2 प्रतिशत बरसात
  • 2015 में सामान्य 31.5 प्रतिशत कम बारिश 
  • 2016 में सामान्य से 28 प्रतिशत बरसात
  • 2017 में सामान्य से 21.7 प्रतिशत बारिश
  • 2019 में सामान्य से 7.2 प्रतिशत कम बरसात
  • 2020 में सामान्य से 17.1 प्रतिशत कम बारिश
  • 2021 में सामान्य से 14.2 प्रतिशत कम बारिश
  • 2022 में सामान्य की तुलना में पांच कम बारिश 

 

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की जलवायु परिवर्तन एवं कृषि, मौसम विभाग की प्रमुख डॉ. पवनीत कौर किंगरा ने बताया कि मानसून में बारिश का सामान्य से कम या ज्यादा रहना दोनों ही साल दर साल जलवायु में आ रहे परिवर्तन की तरफ इशारा करते हैं। इसका कारण ग्लोबल वार्मिंग व बढ़ता प्रदूषण है। यही वजह है कि कभी बेमौसमी बारिश व ओलावृष्टि होने से फसल बर्बाद होती हैं तो कभी जल्द गर्मी आ जाने से गेहूं की फसलों पर बुरा असर पड़ता है। जैसे कि पिछले साल पंजाब में देखने को मिला।

बारिश कम होने से भूजल का हो रहा अधिक दोहन 
उन्होंने कहा कि पंजाब में मानसून में सामान्य से कम बारिश होने के कारण किसान अधिक भूजल का दोहन करते हैं। इससे पंजाब में जमीन के नीचे पानी का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। यह एक बेहद गंभीर स्थिति है। अगर अभी इस संबंध में कोई कदम न उठाए गए तो खेतीबाड़ी, पानी संसाधनों व खाद्य आपूर्ति पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। 

उन्होंने कहा कि इससे बचाव के लिए वातावरण प्रदूषण को रोकने के लिए मिलकर कदम उठाने की जरूरत है। इसके तहत पौधरोपण पर जोर देना होगा और साथ ही किसानों को धान व गेहूं की परंपरागत खेती से हटाकर अन्य फसलों की तरफ मोड़ना पड़ेगा। जिससे भूजल का कम दोहन हो सके।

मौसम में बदलावों से पड़ रहा है पैदावर पर असर: डॉ. ज्ञान सिंह
पंजाबी यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र विभाग के रिटायर प्रोफेसर डॉ. ज्ञान सिंह ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग व इंसान द्वारा कार्बन का ज्यादा उत्सर्जन से बढ़ता प्रदूषण देश में जलवायु परिवर्तन के बड़े कारण हैं। इससे मौसम में बड़े बदलाव आ रहे हैं। इनका असर फसलों की पैदावार पर असर पड़ता है और साथ ही खेती लागत बढ़ने से किसानों का मुनाफा कम रहता है। 

मौसम में आ रहे बदलावों को प्रदूषण कम कर रोका जा सकता है। साथ ही बताया कि पंजाब का वातावरण मक्का, कपास व नरमा की खेती के अनुकूल है। इन फसलों में पानी भी कम लगता है। ऐसे में किसानों को धान व गेहूं की खेती के बजाय दोबारा से इन फसलों की तरफ ध्यान देना चाहिए। सरकार भी मक्का, कपास व नरमा पर वाजिब एमएसपी दे।

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