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चंडीगढ़

दिवंगत मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत पद्म विभूषण, पढ़ें 'नेताजी' का जमीं से आसमां तक का सफर

January 26, 2023 08:21 AM

दर्पण न्यूज़ सर्विस

नई दिल्ली, 25 जनवरीः गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या यानी बुधवार को पद्म पुस्कार विजेताओं को नामों की घोषणा हुई है। उनमें से एक नाम उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम व समाजवादी पार्टी के संस्थापक दिवंगत मुलायम सिंह यादव का भी है। नेताजी अपने कई ऐतिहासिक फैसलों के लिए यूपी और देश की राजनीति में सदा याद किए जाएंगे। उन्होंने भारतीय राजनीति को न सिर्फ नई दिशा दी बल्कि समाजिक परिवर्तन की इबारत भी लिखी। उन्होंने महिलाओं को सियासत में भागीदारी दिलाने के लिए निरंतर आवाज बुलंद की। आइए जानते हैं नेताजी का जमीं से आसमां तक का सफर-

इटावा के सैफई में किसान परिवार में जन्म लेने वाले मुलायम सिंह यादव अखाड़े में दांव लगाते-लगाते सियासी फलक पर छा गए। 24 फरवरी वर्ष 1954 में मात्र 15 वर्ष की आयु में समाजवाद के शिखर पुरुष डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर नहर रेट आंदोलन में पहली बार जेल गए। वह केके कॉलेज छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए। आगरा विश्वविद्यलाय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर करने के बाद इंटर कॉलेज में प्रवक्ता बने। फिर त्यागपत्र दिया और अपने गुरु चौधरी नत्थूसिंह की परंपरागत विधानसभा सीट जसवंत नगर से 1967 में पहली बार विधायक बने।

इसके बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने अपने जीवन में कई ऐसे फैसले लिए, जिसकी वजह से उनके न रहने पर भी लोग याद करेंगे। अपने राजनीतिक सपर में पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों के हित की अगुवाई कर अपनी पुख्ता राजनीतिक ज़मीन तैयार की। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई ऐतिहासिक फैसले भी लिए, जिसके लिए वह हमेशा याद किए जाएंगे। 

समाजवादी पार्टी का गठन
लोकदल से वाया जनता दल होते हुए मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की। पिछड़ी जातियों को गोलबंद करते हुए अल्पसंख्यकों को साथ लिया। अगलों को उनकी हिस्सेदारी के आधार पर भागीदारी देते हुए आगे बढ़े। तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बाद वर्ष 2012 में अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया।
 
बाबरी मस्जिद विवादित ढांचा और अयोध्या
1989 में मुलायम सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। अयोध्या में मंदिर आंदोलन तेज हुआ तो कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया। इसके बाद उन्हें मुल्ला मुलायम तक कहा गया। लेकिन उन्होंने इसकी परवाह कभी नहीं की। अपने 79वें जन्मदिन पर मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि मुख्यमंत्री रहते देश की एकता के लिए कारसेवकों पर गोलियां चलवाईं। अगर वह अयोध्या में मस्जिद नहीं बचाते तो ठीक नहीं होता क्योंकि उस दौर में कई नौजवानों ने हथियार उठा लिए थे। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री काल में देश की एकता के लिए कारसेवकों पर गोलियां चलवानी पड़ी।
 
यूपीए को समर्थन ले चौंकाया
वर्ष 2008 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार अमरीका के साथ परमाणु करार को लेकर संकट में आ गई। उस वक्त यूपीए में शामिल वामपंथी दलों ने समर्थन वापस ले लिया। ऐसे समय मुलायम सिंह यादव ने बाहर से समर्थन देकर मनमोहन सरकार को गिरने केबचा लिया। उनके इस फैसले की जमकर आलोचना भी हुई, लेकिन उन्होंने कोई परवाह नहीं की।
 
अखिलेश को सौंपी विरासत
राजनीति के कुशल खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 2012 में पूण बहुमत मिलते ही अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया। वर्ष 2017 में पार्टी के अंदर खलमंडल मचा। वह कभी शिवपाल और कभी अखिलेश के पक्ष में खड़े होते रहे। आखिरकार उन्होंने सार्वजनिक मंच से स्वीकार किया कि वह अखिलेश यादव केसाथ साथ हैं। अखिलेश यादव ही समाजवादी विरासत को आगे बढ़ा सकते हैं।
 
मंडल कमीशन खेमे के विरोध में उतरे
पिछड़ों के हक के लिए निरंतर संघर्ष करने वाले मुलायम सिंह यादव ने एक वक्त ऐसा भी आया जब मंडल कमीशन के विरोधी खेमे में खड़े नजर आए। मंडल कमीशन रिपोर्ट नामक पुस्तक की भूमिका में चंद्रभूषण सिंह ने लिखा है कि जब लालकृष्ण आडवाणी कमंडल लेकर निकले  तो चंद्रशेखर ने मंडल लागू न करने संबंधी बयान दे दिया। इसके बाद जनता दल में विद्रोह शुरू हुआ। मुलायम सिंह मंडल विरोधी चंद्रशेखर के साथ हो लिए। इसे लेकर मुलायम सिंह की आलोचना भी हुई, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की।
 
जितने कड़क-उतने ही मुलायम
मुलायम सिंह यादव ने अपने कार्यकाल केदौरान जितने कड़क फैसले लिए, उतने ही दिल के मुलायम रहे। उन्होंने अपने घनघोर विरोधियों को भी मौका पड़ने पर गले लगाने से नहीं चूके। पेश हैं मुलायम के मुलायम होने की कहानी बयां करती कुछ घटनाएं---

अमर सिंह- मुलायम सिंह ने उद्योगपति अमर सिंह को गले लगाया और महासचिव पद सौंपा। चंद दिनों में ही अमर सिंह की हालत पार्टी में नंबर दो की हो गई। लेकिन वर्ष 2010 में अमर सिंह को सपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अमर सिंह ने कई गंभीर आरोप लगाए, लेकिन मुलायम ने इन आरोपों को मुस्कुरा कर टाल दिया।\
 
आजम खां- सपा के गठन में मुलायम सिंह के अजीज दोस्त आजम खां से उनकेरिश्ते बनते -बिगड़ते रहे हैं। कभी अमर सिंह तो कभी कल्याण सिंह की वजह से आजम खां असहज हुए। 27 साल साथ-साथ रहने केबाद 2009 में आजम ने सपा का साथ छोड़ दिया। इसकेपीछेमूल वजह अमर सिंह को माना गया। आजम खां ने कभी खुलकर मुलायम सिंह केखिलाफ नहीं बोला। इतना जरूर है कि उन्होेंन एक बार शेर पढ़ा कि - इस सादगी पर कौन न मर जाए ऐ खुदा, करते हैं कत्ल और हाथ में तलवार नहीं। फिर चार दिसंबर 2010 को आजम खां की घर वापसी हुई। दोनों मिले तो आंखों में आंसू छलक पड़े।

कल्याण सिंह- प्रदेश की सियासत में एक साथ सफर शुरू करने वाले मुलायम सिंह को छह दिसंबर को 1992 को मुल्ला मुलायम तो कल्याण सिंह को हिंदू सम्राट की उपाधि मिली। भाजपा से रिश्ते खराब होने के बाद कल्याण सिंह ने अलग पार्टी बनाई। वर्ष 2009 से ठीक पहले मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह मिले। आगरा में राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में एक साथ मंच साझा किया। लेकिन चुनाव में सपा को झटका लगा और फिर दोनों की राहें अलग हो गईं।
 
बेनी प्रसाद वर्मा- सपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे बेनी प्रसाद मौर्य 2008 में बेटे को टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर नई पार्टी बनाई और फिर 2008 में कांग्रेस में शामिल हो गए। वर्मा ने मुलायम सिंह के खिलाफ बयान दिया कि मुलायम प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, लेकिन उनकी औकात प्रधानमंत्री कार्यालय में झाड़ूलगाने तक की नहीं है। इसके बाद भी मुलायम सिंह ने कभी भी बेनी प्रसाद के लिए बयान नहीं दिया। हालात बदले और बेनी प्रसाद सपा में वापस आए तो उन्हें सपा ने 2016 में राज्यसभा भेजा।

जन्म- 22 नवंबर 1939, मृत्यु - 10 अक्टूबर 2022

-वह तीन बार मुख्यमंत्री रहे। पहली बार पांच दिसंबर 1989 से 24 जून 1991 तक, दूसरी बार पांच दिसंबर 1993 से 3 जून 1995 तक और तीसरी बार  29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007 तक मुख्यमंत्री रहे।
-वह एक जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे।
- पहली बार 1967 में विधायक बने। फिर 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 में विधायक बने। फिर उपचुनाव में 2004 से  2007 तक विधायक रहे।
-लोकसभा सदस्य के रूप में 1996 में मैनपुरी, 1998 में संभल, 1999 में संभल से रहे। 2004 में मैनपुरी से चुने गए, लेकिन इस्तीफा दे दिया। फिर 2009 में मैनपुरी, 2014 में आजमगढ़ औ 2019 में मैनपुरी से सांसद चुने गए।
-1992 में सपा का गठन किया और खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। वह जनवरी 2017 तक इस पद पर रहे। इसके बाद इन्हें संरक्षक बना दिया।

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