भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत में गुणवत्ता नियंत्रण आदेश का क्रियान्वयन हाल के वर्षों में नीति-निर्माण का अहम हिस्सा बन गया है। इसका मूल उद्देश्य उपभोक्ताओं को सुरक्षित और विश्वसनीय उत्पाद उपलब्ध कराना तथा घरेलू उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के अनुरूप बनाना है। किन्तु वास्तविकता यह है कि गुणवत्ता नियंत्रण आदेश को लागू करने की प्रक्रिया में अभी भी कई चुनौतियाँ मौजूद हैं, जिनमें नियामकीय अस्पष्टता, अनुपालन की उच्च लागत, डिजिटल अवसंरचना की कमी और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों की भागीदारी का अभाव प्रमुख हैं। यदि भारत को "आत्मनिर्भर भारत" के लक्ष्य की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ाना है, तो इन चुनौतियों का समाधान व्यापक दृष्टिकोण से करना अनिवार्य होगा। गुणवत्ता नियंत्रण आदेश के प्रभावी क्रियान्वयन में सबसे पहली बाधा नियामकीय ढांचे की अस्पष्टता है। कई बार उद्योगों को यह स्पष्ट नहीं होता कि किस श्रेणी के उत्पादों पर कौन-से मानक लागू हैं और अनुपालन की अंतिम तिथियाँ क्या हैं। अलग-अलग मंत्रालयों और एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी से भी भ्रम की स्थिति पैदा होती है। स्पष्ट दिशा-निर्देश, एकीकृत अधिसूचना प्रणाली और समयबद्ध परामर्श प्रक्रिया इस समस्या को काफी हद तक दूर कर सकते हैं। यदि नीति-निर्माता उद्योग संगठनों और हितधारकों के साथ नियमित संवाद स्थापित करें, तो न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी बल्कि अनुपालन प्रक्रिया भी सहज होगी। डिजिटलाइजेशन गुणवत्ता नियंत्रण आदेश क्रियान्वयन को गति देने का सबसे प्रभावी साधन बन सकता है। वर्तमान समय में उद्योगों को प्रमाणन, रजिस्ट्रेशन और निरीक्षण जैसे कार्यों में लंबे समय और संसाधन खर्च करने पड़ते हैं। यदि इन प्रक्रियाओं को पूरी तरह डिजिटल किया जाए और एकल-विंडो प्लेटफॉर्म तैयार किया जाए, तो छोटे उद्योग भी आसानी से इसका लाभ उठा सकेंगे। उदाहरणस्वरूप, ऑनलाइन दस्तावेज़ जमा करने, वर्चुअल निरीक्षण और डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम जैसी सुविधाएँ अनुपालन की पारदर्शिता बढ़ाने के साथ-साथ भ्रष्टाचार और देरी की संभावना को भी कम करेंगी। गुणवत्ता नियंत्रण आदेश का अनुपालन बड़े उद्योगों के लिए अपेक्षाकृत सरल हो सकता है, लेकिन एम एस एम ई के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। परीक्षण, प्रमाणन और उत्पाद मानकीकरण की लागत कई बार इन छोटे उद्योगों की सामर्थ्य से बाहर हो जाती है। इससे उनका उत्पादन बाधित होता है और वे बाजार प्रतिस्पर्धा से बाहर होने का जोखिम उठाते हैं। इस समस्या का समाधान वित्तीय राहत योजनाओं के माध्यम से किया जा सकता है। सरकार को एण एस एम ई के लिए रियायती शुल्क, सब्सिडी वाले परीक्षण केंद्र और सरल वित्तीय पैकेज उपलब्ध कराने चाहिए। साथ ही, क्लस्टर आधारित गुणवत्ता प्रयोगशालाओं की स्थापना से छोटे उद्योग सामूहिक रूप से इन सुविधाओं का लाभ उठा सकेंगे। गुणवत्ता नियंत्रण केवल नियामकीय प्रक्रिया भर नहीं है, बल्कि यह उद्योग संस्कृति का भी हिस्सा होना चाहिए। यदि एण एस एम ई और घरेलू उद्योगों को गुणवत्ता नियंत्रण आदेश की उपयोगिता और दीर्घकालिक लाभों के बारे में जागरूक किया जाए, तो वे इसे बोझ की बजाय अवसर के रूप में देखेंगे। इसके लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशालाएँ और जागरूकता अभियान आयोजित किए जाने चाहिए। उद्योग-विशेषज्ञों, मानक निकायों और नियामक एजेंसियों को मिलकर क्षमता निर्माण की पहल करनी होगी। इससे न केवल एम एस एम ई की गुणवत्ता संबंधी समझ बढ़ेगी बल्कि उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता भी मजबूत होगी। गुणवत्ता नियंत्रण आदेश के सख्त और प्रभावी क्रियान्वयन से उपभोक्ता को यह भरोसा मिलता है कि उसे मिलने वाला उत्पाद सुरक्षित, टिकाऊ और मानक के अनुरूप है। यह विश्वास लंबे समय में घरेलू बाजार की स्थिरता और उद्योगों की साख को मजबूत करता है। इसके अतिरिक्त, जब घरेलू उद्योग अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप उत्पाद तैयार करेंगे, तो निर्यात की संभावनाएँ भी बढ़ेंगी। इस प्रकार गुणवत्ता नियंत्रण आदेश केवल उपभोक्ता सुरक्षा का साधन नहीं है, बल्कि यह "मेक इन इंडिया" और "आत्मनिर्भर भारत" जैसे राष्ट्रीय अभियानों को भी गति देता है। गुणवत्ता नियंत्रण आदेश क्रियान्वयन को सफल बनाने के लिए यह जरूरी है कि सरकार, उद्योग और उपभोक्ता – तीनों पक्षों के बीच संतुलन और समन्वय बना रहे। अत्यधिक सख्ती से उद्योगों पर दबाव बढ़ेगा, जबकि ढील देने से उपभोक्ता सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। इसलिए एक ऐसा ढांचा तैयार करना होगा जो पारदर्शी, संतुलित और उद्योग-अनुकूल हो। अंत में कह सकते हैं कि प्रभावी गुणवत्ता नियंत्रण आदेश क्रियान्वयन केवल कागजी आदेशों से संभव नहीं होगा। इसके लिए नियामकीय स्पष्टता, डिजिटल सुविधा, वित्तीय राहत और एम एस एम ई की सक्रिय भागीदारी जैसे उपायों का एक साथ लागू होना जरूरी है। यह बहुस्तरीय रणनीति अनुपालन बोझ को कम करने के साथ-साथ घरेलू गुणवत्ता पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करेगी। उपभोक्ता विश्वास, उद्योगों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा क्षमता और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्यों की प्राप्ति – ये सभी प्रभावी गुणवत्ता नियंत्रण आदेश क्रियान्वयन के सीधे परिणाम होंगे। इसलिए अब समय आ गया है कि सरकार और उद्योग जगत मिलकर गुणवत्ता नियंत्रण को केवल नियामक अनिवार्यता नहीं, बल्कि विकास और विश्वास का आधार मानें।