कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी को देव उठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। यह दिन धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं। इस दिन से शुभ कार्यों जैसे विवाह, गृहप्रवेश और तुलसी विवाह की शुरुआत होती है।
तुलसी विवाह का महत्व
देव उठनी एकादशी के दिन ही तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। पुराणों के अनुसार, इस दिन तुलसी माता का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप से किया जाता है। यह विवाह भक्तों के लिए आध्यात्मिक और पारिवारिक समृद्धि का प्रतीक है। तुलसी विवाह करने से वैवाहिक जीवन में प्रेम, सौभाग्य और सुख-शांति बनी रहती है।
भगवान विष्णु को चढ़ाएं ये भोग
इस दिन भगवान विष्णु को पंचामृत, तुलसी दल, खीर, चावल की खिचड़ी, गुड़, मिष्ठान्न, और फलों का भोग अर्पित करना अत्यंत शुभ माना गया है। साथ ही, पीले वस्त्र, पीले फूल, और चंदन का तिलक लगाकर पूजा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
भक्तों को इस दिन व्रत रखकर सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु के "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करना चाहिए।
तुलसी विवाह में करें ये विशेष भोग अर्पण
तुलसी विवाह के समय गन्ना, नारियल, मिठाई, मखाना खीर, और हलवा-पूरी का भोग लगाया जाता है। तुलसी माता को लाल साड़ी पहनाकर और सुहाग सामग्री अर्पित कर पूजन किया जाता है। इसके बाद दीपदान और कथा सुनने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
धार्मिक मान्यता और फल
देव उठनी एकादशी पर व्रत रखने से पूर्वजों के पापों का नाश होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन तुलसी विवाह और भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का संचार होता है।