शीत सत्र की शुरुआत ऐसे वक्त में हो रही है जब संसद से देश की बड़ी उम्मीदें जुड़ी हुई हैं। जनता चाहती है कि महत्वपूर्ण विधेयकों, नीतियों और राष्ट्रीय मुद्दों पर ठोस बहस हो, लेकिन पिछले कई सत्रों में बार-बार होने वाले गतिरोधों ने संसद की साख और कामकाज दोनों को प्रभावित किया है। ऐसे में दिसंबर 2025 के शीत सत्र को सुचारू और उत्पादक बनाने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों से बेहतर समन्वय और जिम्मेदारी की अपेक्षा है।
संसद लोकतंत्र की वह संस्था है, जहां संवाद और बहस से समाधान निकलते हैं। लेकिन अक्सर देखा गया है कि राजनीतिक टकराव और रणनीतिक विरोध के कारण सदन की कार्यवाही बाधित होती रहती है। कई मौकों पर पूरा दिन हंगामे में निकल जाता है और महत्वपूर्ण बिल चर्चा के अभाव में जल्दबाजी में पारित हो जाते हैं या लंबित रह जाते हैं। यह स्थिति न तो लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुकूल है और न ही जनता के हित में।
इस सत्र में सरकार कई अहम विधेयक पेश करने की योजना बना रही है—आर्थिक सुधारों, कृषि क्षेत्र से जुड़े प्रस्तावों, डिजिटल विनियमों और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर चर्चा केंद्र में रहने की संभावना है। दूसरी ओर, विपक्ष बेरोजगारी, महंगाई, किसानों के मुद्दों और राज्यों के अधिकारों से जुड़े विषयों को प्रमुखता से उठाने की तैयारी में है। मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन मतभेदों के बावजूद संवाद बनाए रखना लोकतंत्र की बुनियादी शर्त है।
सत्ता पक्ष की जिम्मेदारी है कि वह विपक्ष की चिंताओं को सुनने के लिए पर्याप्त समय और मंच दे। वहीं विपक्ष की भी यह जिम्मेदारी है कि वह सिर्फ विरोध के लिए विरोध की रणनीति छोड़कर सार्थक बहस में हिस्सा ले। संसद में उठाए जाने वाले मुद्दों का उद्देश्य सरकार को घेरना नहीं बल्कि नीतियों को अधिक जवाबदेह और प्रभावी बनाना होना चाहिए।
लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्षों ने भी सभी दलों से अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने की अपील की है ताकि सत्र के दौरान अधिकतम कार्य हो सके। पिछले सत्रों में कार्य ठीक से न होने के कारण कई महत्वपूर्ण निर्णय अधूरे रह गए, जिसका सीधा असर आम नागरिकों पर पड़ा।
शीत सत्र देश के लिए एक अवसर है—राजनीतिक सहमति, नीतिगत स्पष्टता और रचनात्मक संवाद का। यदि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों समन्वय के साथ आगे बढ़ें, तो संसद न केवल उत्पादक होगी बल्कि जनता का विश्वास भी मजबूत होगा। लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती इसी सहयोग पर टिकी है।