दिसंबर 2025 की शुरुआत दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए त्रासदी बनकर आई है। भारी वर्षा, चक्रवात और तेज हवाओं से उत्पन्न बाढ़ व भूस्खलन ने Indonesia और Sri Lanka में जीवन तबाह कर दिया। राहत-सहायता कार्य के बीच मौतों का आंकड़ा डरावना रूप लेता जा रहा है।
इंडोनेशिया में 2025 के नौबेलिया सीज़न की बारिश और चक्रवात के कारण विशेष रूप से Sumatra द्वीप प्रभावित हुआ। वहाँ के प्रांत—एसेह, नॉर्थ - सुमात्रा और वेस्ट सुमात्रा—बाढ़ व लैंडस्लाइड का सबसे अधिक शिकार बने। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस आपदा में कम से कम 604 लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग 464 लोग अभी तक लापता हैं।
वहीं श्रीलंकाई तटीय और पर्वतीय इलाकों में आए तेज तूफान — चक्रवात Cyclone Ditwah — ने पूरी देशव्यापी तबाही मचा दी। लगातार बारिश और भूस्खलन के चलते नदियाँ उफान पर आईं, कई घर बह गए, हजारों लोग बेघर हुए। राहत एवं निडरता की कोशिशों के बीच, श्रीलंका में लगभग 366 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि सैकड़ों लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं।
यह तबाही सिर्फ जान-माल की हानि तक सीमित नहीं है। बाढ़ की तीव्रता ने बुनियादी ढांचे को बुरी तरह क्षति पहुँचाई है — पुल और सड़कें टूट गयीं, बिजली व संचार व्यवस्था ध्वस्त हो गई, कई गांव पूरी तरह कट गए। हजारों लोग अस्थायी आश्रय-केंद्रों में चले गए; कुछ बच्चों के स्कूल बंद हो गए, कई परिवारों की आजीविका ख़त्म हो गई।
राहत-कर्मी, स्थानीय प्रशासन और अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियां अब बचे लोगों को भोजन, पानी, दवाइयां व अस्थायी आश्रय उपलब्ध कराने में जुटी हैं। इंडोनेशिया में नौसेना जहाज, सेना और वायुसेना के हवाई जहाजों द्वारा राहत सामग्री पहुँचाई जा रही है; वहीं श्रीलंका में सेना-फोर्सेज को तैनात कर बचाव व पुनर्वास कार्य तेज किया गया है।
इस आपदा ने एक बार फिर चेतावनी दी है कि बदलते जलवायु पैटर्न, तेज मानसून और बढ़ते चक्रवात अब “नियमित” घटना बनते जा रहे हैं। पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते महासागरीय तापमान में वृद्धि और वर्षा की तीव्रता से इस तरह की आपदाएँ और घातक हो रही हैं। अगर पूर्व तैयारी, बेहतर जल-प्रबंधन और आबादी-सतर्कता न हो, तो नुकसान और बढ़ने की पूरी संभावना है।
अभी राहत कार्य व अनुमानित भविष्य गर्भगृह — दोनों ही चुनौतीपूर्ण हैं। बचे हुए लोगों को गंदे पानी, जलजनित बीमारियों का खतरा है; स्कूल व आधारभूत सुविधाओं का पुनर्निर्माण आवश्यक है; और इन इलाकों में पुनर्वास की प्रक्रिया जितनी शीघ्र होगी उतना ही बेहतर।
यह बाढ़ सिर्फ वर्तमान पीड़ा नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए चेतावनी है — जलवायु परिवर्तन के खतरों को हल्के में नहीं लेना चाहिए। समय आ गया है कि हम जल-मैनेजमेंट, श्रम-सशक्तिकरण और पर्यावरणीय जागरुकता को अपनी प्राथमिकता बनाएं।