सिटी दर्पण ब्युरो, शिमला, 26 अगस्त: इस बात में कोई दोराय नहीं है कि भारत कई विविधताओं से भरा हुआ देश है. यहां पर हर 10 मील की दूरी पर रीति-रिवाज बदल जाते हैं. इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसे ही रोमांचक किस्से से रूबरू कराएंगे, जिसे आपके लिए जानना और समझना बेहद जरूरी है.
इस कहानी को समझने के लिए हम आपको एक ऐसे गांव ले चलेंगे, जहां पर साल के 5 दिन महिलाएं अपने पति से नहीं मिलती और खास तरह की पौशाक पहनती है. हो सकता है ये बात सुनने में आपको थोड़ी अजीब लगे, लेकिन असलियत यही है. पूरे किस्से को जानने के लिए आपको हिमाचल की खूबसूरत वादियों में खो जाने की जरूरत है.
हिमाचल प्रदेश अपनी अनेक परंपराओं और खासियतों के लिए माना जाता हैं. देवताओं के इस प्रदेश में हर गांव की अपनी परंपराएं हैं और इन सब परंपराओं को कई हजारों सालों से लोग मानते आ रहे हैं. इतना ही नहीं, इन सभी परंपराओं को मानना वहां के लोगों के लिए जरूरी भी बन जाता है.
5 दिनों तक अपने पति से दूर रहती हैं यहां की महिलाएं
वैसे फैशन की चकाचौंद से कुल्लू भी बहुत प्रभावित है लेकिन देवी-देवताओं के नियम अभी भी यहां पर कायम हैं. इस 5g के जमाने में आज भी कुल्लू जिले के एक गांव में वहां के लोग एक ऐसी प्रथा का पालन करते हैं, जिसे सुनकर आपके होश फाक्ता हो जाएंगे. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि यहां पर मणिकर्ण घाटी में पीणी गांव में साल के 5 दिन में पति-पत्नी एक दूसरे से बात नहीं करते. इतना ही नहीं, यहां शादीशुदा महिलाएं 5 दिन तक कपड़े भी नहीं पहनती. महिलाओं को 5 दिन तक ऊन से बने पट्टू ही औढ़ने पड़ते हैं.
5 दिनों तक महिलाएं निर्वस्त्र रहती हैं
बता दें कि 17 से 31 अगस्त तक महिलाओं द्वारा इस प्रथा का पालन किया जाता है. इस बात को सुनकर आप जरूर हक्के-बक्के रह जाएंगे पर इस गांव में कई सालों से ये प्रथा निभाई जाती है. इन प्रथाओं को महिलाएं निभाती भी हैं और इसको निभाना महिलाओं के लिए अनिवार्य भी है, क्योंकि इसके उल्लंघन करने की अनुमति यहां के पूर्वज बिल्कुल भी उन्हें नहीं देते.
इन 5 दिनों में महिलाएं निर्वस्त्र तो रहती हैं और इसके साथ ही गैर मर्द तो दूर वो अपने पति के सामने भी नहीं आती. ऐसा माना जाता है कि अगर महिलाएं इसका पालन नहीं करती हैं तो उनके घर में अशुभ होना शुरू हो जाता है. इसी कारण इस परंपरा को आज भी माना जाता है.
यहां जाने दिलचस्प कहानी
दरअसल, इस परंपरा के पीछे भी बड़ी दिलचस्प कहानी है. गांव में रहने वाले लोग बताते हैं कि कुछ सालों पहले यहां राक्षस आते थे, जो यहां सुंदर और श्रिंगार से सजी हुई महिलाओं को उठा कर ले जाते थे. इन्हीं राक्षसों से बचने के लिए ये तोड़ निकाला गया कि अगर महिलाएं सजी-धजी उन राक्षसों को नजर नहीं आएंगी तो राक्षस पसंद किसको करेंगे. ऐसा कहा जाता है कि उन राक्षसों का अंत यहां पर देवताओं ने किया था. इन पांच दिनों में किसी शुभ काम की शुरूआत नहीं होती. महिलांए खुद को सांसारिक दुनिया से अलग कर देती है.
समय के साथ बदली परंपरा
आज की नई पीढ़ी इन परंपराओं को कुछ अलग तरीके से मनाती है. वो इन पांच दिनों में कपड़े नहीं बदलती और हल्के कपड़े ही पहनती है.तकनीक के इस जमाने में इन बातों पर आसानी से विश्वास नहीं किया जाता. परंतु यही पारंपरिक मान्यताएं हिमाचल प्रदेश को सभी से अलग, अनूठा और खास भी बनाती है. इन परंपराओं का बरसों से बड़े-बुजुर्ग पालन कर रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों को उसके अनुसरण के लिए प्रेरित करते हैं.