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आयुर्वेद चिकित्सा में इन तरीकों से करवा सकते हैं इलाज, 100 प्रतिशत मिलेगा लाभ : डॉ. राजीव कपिला

September 02, 2021 08:10 PM

लगभग 5000 वर्ष पहले भारत की पवित्र भूमि में शुरू हुई आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति लंबे जीवन का विज्ञान है और दुनिया में स्वास्थ्य के देखभाल की सबसे पुरानी प्रणाली है जिसमें औषधि और दर्शन शास्त्र दोनों के गंभीर विचार शामिल हैं। प्राचीन काल से ही आयुर्वेद ने दुनिया भर की मानव जाति के संपूर्ण शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास किया है । आज यह चिकित्सा की अनुपम और अभिन्न शाखा है, एक संपूर्ण प्राकृतिक प्रणाली है जो आपके शरीर का सही संतुलन प्राप्त के लिए वात, पित्त और कफ सा नियंत्रित करने पर निर्भर करती है।
आयुर्वेद में आप किस तरह से चिकित्सा लाभ ले सकते हैं:-
1. आयुर्वेद प्रकृति के अनुसार जीवन जीने की सलाह देता है।
2. सेहतमंद बने रहकर मोक्ष प्राप्त करना ही भारतीय ऋषियों का उद्देश्य रहा है।
3. आयुर्वेद कहता है कि 'पहला सुख निरोगी काया'।
4. आयुर्वेद मानता है कि हमारी अधिकतर बीमारियों का जन्म स्थान हमारा दिमाग है। इच्छाएं, भाव, द्वेष, क्रोध, लालच, काम आदि नकारात्मक प्रवृत्तियों से कई तरह के रोग उत्पन्न होते हैं।
5. आयुर्वेद के अनुसार भोजन को यदि उत्तम भावना और प्रसन्नता से पकाकर और उसी भावना से खाया जाए तो वह अमृत के समान गुणों का हो जाता है।
6. आयुर्वेद के अनुसार भोजन के लगभग 1 घंटे बाद पानी पीने से खाए गए भोजन का लाभ मिलता है और व्यक्ति निरोगी भी रहता है।
7. त्रिदोष :- आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य के शारीर में तीन जैविक-तत्व होते हैं जिन्हें त्रिदोष कहा जाता है। शारीर के भीतर इन तीन तत्वों का उतार-चढ़ाव लगा रहता है। इनका संतुलन गड़बड़ाने या कम ज्यादा होने से रोग उत्पन्न होते हैं।
यह तीन दोष हैं- वात (वायु तत्व) पित्त (अग्नि तत्व) और कफ। वात के 5 उपभाग है 1- प्राण वात, 2- समान वात, 3- उदान वात, 4- अपान वात और 5- व्या)न वात। पित्त के भी 5 उपभाग है 1- साधक पित्तव, 2- भ्राजक पित्तन, 3- रंजक पित्तय, 4- लोचक पित्त और 5- पाचक पित्त । इसी तरह से कफ के भी 5 उपभाग है- 1- क्लेकदन कफ, 2- अवलम्बान कफ, 3- श्लेष्मतन कफ, 4- रसन कफ और 5- स्नेहन कफ।
आयुर्वेद के आठ अंग : 1. काया चिकित्सा : इसमें शरीर को औषधि प्रदान की जाती है।
2. काउमारा भर्त्य : इसमें बच्चों की चिकित्सा की जाती है।
3. सल्यतंत्र : इसमें सर्जरी की जाती है।
4. सलाक्यतंत्र : कान, नाक, आंख और मुंह के रोगों के लिए चिकित्सा।
5. भूतविद्या : मानसिक विकारों के लिए चिकित्सा।
6. अगदतंत्र : विष या जहर आदि के लिए चिकित्सा।
7. रसायनतंत्र : विटामिन और पोषक तत्वों से संबंधी चिकित्सा।
8. वाजीकरणतत्र : यौन सुख से जुड़ी समस्या संबंधी चिकित्सा।
आयुर्वेद के पंचकर्म- इसके मुख्य़ प्रकार बताएं जा रहे हैं परंतु इसके उप प्रकार भी है। यह पंचकर्म क्रियाएं योग का भी अंग है।
1. वमन क्रिया : इसमें उल्टी कराकर शरीर की सफाई की जाती है। शरीर में जमे हुए कफ को निकालकर अहारनाल और पेट को साफ किया जाता है।
2. विरेचन क्रिया : इसमें शरीर की आंतों को साफ किया जाता है। आधुनिक दौर में एनिमा लगाकर यह कार्य किया जाता है परंतु आयुर्वेद में प्राकृतिक तरीके से यह कार्य किया जाता है।
3. निरूहवस्थी क्रिया : इसे निरूह बस्ति भी कहते हैं। आमाशय की शुद्धि के लिए औषधियों के क्वाथ, दूध और तेल का प्रयोग किया जाता है, उसे निरूह बस्ति कहते हैं।
4. नास्या : सिर, आंख, नाक, कान और गले के रोगों में जो चिकित्सा नाक द्वारा की जाती है उसे नस्य या शिरोविरेचन कहते हैं।
5. अनुवासनावस्ती : गुदामार्ग में औषधि डालने की प्रक्रिया बस्ति कर्म कहलाती है और जिस बस्ति कर्म में केवल घी, तैल या अन्य चिकनाई युक्त द्रव्यों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है उसे अनुवासन या 'स्नेहन बस्ति कहा जाता है।
आयुर्वेद में तुलसी, आंवले और गुलाब के फूल के कई औषधीय फायदे बताये गये हैं जो निम्न हैं:-
तुलसी मुख्यता तीन प्रकार की होती हैं- कृष्ण तुलसी, सफेद तुलसी तथा राम तुलसी। कोरोना काल में आओ जानते हैं तुलसी के औषधीय फायदे:-
1. कैंसर : तुलसी से प्राथमिक स्तर का सामान्य कैंसे ठीक होने का दावा किया जाता है। यदि तुलसी के 4 पत्ते रोज खाते रहो तो कभी कैंसर नहीं होता है।
2. बुखार : सर्दी व फिर हल्का बुखार में मिश्री, काली मिर्च और तुलसी के पत्ते को पानी में अच्छी तरह से उबालकर काढ़ा बनाकर पीने से सर्दी व हल्के बुखार में फायदा होता है।
3. सर्दी जुकाम : तुलसी का गरम पानी पीने से सर्दी, कफ, खांसी और जुकाम जैसी तकलीफ से राहत मिलती है।
4. अस्थमा : इसका रस पीने से अस्थमा और जकड़न में भी लाभ मिलता है। नियमित रूप से तुलसी का पानी पीने पर शरीर में शुगर का स्तर चमत्कारी रूप से कम हो जाता है। यह भी कहा जाता है कि तुलसी के समीप आसन लगाकर यदि कुछ समय प्रतिदिन बैठा जाए तो श्वास व अस्थमा जैसे रोग आदि से छुटकारा मिल जाता है।
5. लू : तुलसी के 8-10 पत्तों को पीसकर चीनी में मिलाकर पीने से लू नहीं लगती है। अगर लू लग गई है तो आराम मिल जाता है।
6. प्रतिरोधक क्षमता : तुलसी के 4-5 पत्ते प्रतिदिन खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। दूषित पानी में तुलसी की कुछ ताजी पत्तियां डालने से पानी का शुद्धिकरण किया जा सकता है। तांबा और तुलसी दोनों ही पानी को शुद्ध करने की क्षमता रखते हैं। इसका जल पीने से भी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
7. दांतों के रोग : तुलसी में एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं, जिस कारण ये दांतों व मुंह के कीटाणुओं को खत्म करने में मदद करती हैं। साथ ही सांस की बदबू को दूर करने में भी सहायक होती है।
8. आर्थराइटिस : कहते हैं कि तुलसी का गरम रस पीने से आर्थराइटिस के मरीजों को लाभ मिलता हैं क्योंकि इसके एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण जोड़ों के लिए एक दर्द निवारक का काम करता है।
9. तनाव : तुलसी की चाय शरीर में स्ट्रेस हार्मोन यानी कि कॉर्टिसोल हॉर्मोन का स्तर नियंत्रित करने में मदद करती है। इसलिए यह चिड़चिड़ापन, तनाव और डिप्रेशन को दूर करने में सहायक होती है।
तुलसी की माला धारण करने से मन में शांति रहती है, आत्मविश्वास में वृद्धि तथा सात्विक भावनाएं जागृत होती हैं। तुलसी की माला में विद्युत शक्ति होती है।

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