अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक बार फिर तनाव बढ़ गया है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रविवार देर रात एक हाइपरसोनिक “अजेय मिसाइल” (Invincible Missile) का सफल परीक्षण कर पूरी दुनिया, खासकर अमेरिका, को अपनी सैन्य क्षमता का संदेश दिया है। यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब रूस और अमेरिका के बीच यूक्रेन युद्ध, रक्षा संधियों और वैश्विक वर्चस्व को लेकर टकराव चरम पर है।
पुतिन का शक्ति प्रदर्शन
रूस के रक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह मिसाइल परीक्षण आर्कटिक सर्कल के पास स्थित एक अज्ञात सैन्य अड्डे से किया गया। मिसाइल ने लक्ष्य को 8,000 किलोमीटर की दूरी पर कुछ ही मिनटों में भेद दिया। पुतिन ने इसे “रूस की अजेय तकनीकी क्षमता और आत्मनिर्भर रक्षा तंत्र का प्रतीक” बताया। उनका कहना था कि यह परीक्षण किसी देश को डराने के लिए नहीं, बल्कि रूस की सुरक्षा और वैश्विक संतुलन के लिए किया गया है।
ट्रंप को अप्रत्यक्ष संदेश
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो हाल ही में रूस के साथ “सीमित शांति वार्ता” शुरू करने के संकेत दे चुके हैं, के लिए यह कदम एक सख्त संदेश माना जा रहा है। रूसी विश्लेषकों का कहना है कि पुतिन ने यह मिसाइल परीक्षण यह जताने के लिए किया कि रूस किसी भी सूरत में “कमज़ोर खिलाड़ी” नहीं है। वहीं अमेरिकी खेमे का कहना है कि यह रूस की “पावर प्रोजेक्शन स्ट्रेटेजी” का हिस्सा है, जिसका मकसद अमेरिका को बातचीत की मेज पर अपनी शर्तों पर लाना है।
वैश्विक प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस परीक्षण पर चिंता जताते हुए कहा कि दुनिया पहले ही कई मोर्चों पर संघर्ष झेल रही है और अब “हथियारों की नई होड़” मानवता के लिए बड़ा खतरा बन सकती है। वहीं नाटो (NATO) ने रूस के इस कदम को “उकसाने वाली कार्रवाई” बताया और कहा कि इससे यूरोपीय सुरक्षा तंत्र अस्थिर हो सकता है।
विशेषज्ञों की राय
सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह मिसाइल रूस की “अवांगार्ड” और “जिरकोन” श्रेणी की हाइपरसोनिक मिसाइलों से भी अधिक घातक है। यह किसी भी मौजूदा मिसाइल-रोधी प्रणाली को भेदने में सक्षम बताई जा रही है। इसका उद्देश्य अमेरिका की मिसाइल डिफेंस तकनीक को चुनौती देना है।
अमेरिका की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक सैन्य प्रतिक्रिया नहीं दी गई है, लेकिन व्हाइट हाउस ने बयान जारी कर कहा कि “कूटनीति के रास्ते खुले हैं, पर किसी भी आक्रामकता का जवाब दिया जाएगा।” इस बीच चीन और उत्तर कोरिया जैसे देश रूस के इस कदम का परोक्ष समर्थन करते नजर आ रहे हैं, जिससे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भी रणनीतिक समीकरण बदल सकते हैं।