पश्चिम बंगाल में आगामी चुनावों से पहले भाजपा एक बार फिर नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को अपने प्रमुख राजनीतिक एजेंडे के रूप में सामने ला रही है। पार्टी का फोकस अब राज्य के शरणार्थी समुदाय, विशेष रूप से मतुआ, नामशूद्र और बंगाल विभाजन के बाद आए हिंदू प्रवासी परिवारों पर है। भाजपा का दावा है कि CAA के माध्यम से इन समुदायों को वह अधिकार और सुरक्षा मिल सकेगी, जिसका वे दशकों से इंतज़ार कर रहे हैं।
भरोसे की राजनीति और शरणार्थी कार्ड
भाजपा की रणनीति के केंद्र में यह संदेश है कि “जो भारत की मिट्टी से जुड़े हैं, उन्हें डरने की ज़रूरत नहीं।” पार्टी नेताओं का कहना है कि CAA केवल उन लोगों को नागरिकता देने का कानून है जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देशों से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आए हैं। पश्चिम बंगाल में ऐसे लाखों परिवार हैं जो लंबे समय से नागरिकता संबंधी कागज़ात के अभाव में सामाजिक और आर्थिक अनिश्चितता में जी रहे हैं। भाजपा इन्हीं लोगों को यह भरोसा दिलाने में जुटी है कि CAA उनका “कानूनी कवच” बनेगा।
TMC का विरोध और सियासी समीकरण
वहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) CAA को विभाजनकारी कानून बताकर इसका विरोध कर रही है। टीएमसी का कहना है कि भाजपा इस कानून का इस्तेमाल हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के लिए कर रही है। इसके बावजूद, सीमावर्ती जिलों जैसे उत्तर 24 परगना, कूचबिहार और नादिया में भाजपा की पकड़ मजबूत होती दिख रही है, जहाँ शरणार्थी समुदायों का प्रभावी जनाधार है।
SIR के जरिये नया संदेश
भाजपा अब “SIR – Sabka Insaaf, Rashtra Nirman” नामक अभियान के तहत यह संदेश फैलाने की तैयारी में है कि CAA किसी समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि न्याय और पहचान की बहाली का कदम है। इस अभियान के तहत पार्टी कार्यकर्ता घर-घर जाकर नागरिकता प्रक्रिया, दस्तावेज़ी सहायता और लाभ योजनाओं की जानकारी देंगे।
राजनीतिक असर और चुनावी दांव
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के लिए CAA पश्चिम बंगाल में “भावनात्मक कड़ी” का काम कर सकता है। शरणार्थियों के लिए यह मुद्दा अस्तित्व और पहचान से जुड़ा है, जबकि विपक्ष के लिए यह सांप्रदायिक विभाजन का प्रतीक। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह “नागरिकता की राजनीति” बंगाल के चुनावी परिदृश्य को कितना प्रभावित करती है।