पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में एक विवादास्पद बयान में संकेत दिया कि उनकी सरकार केंद्र द्वारा बनाए गए वक्फ कानून को राज्य में लागू नहीं करेगी। यह बयान तब आया जब केंद्र सरकार ने वक्फ अधिनियम 1995 के प्रावधानों को और सख्ती से लागू करने की योजना का संकेत दिया था। ममता के इस रुख ने एक बार फिर केंद्र और राज्यों के अधिकार क्षेत्र को लेकर बहस छेड़ दी है।
ममता बनर्जी का कहना है कि वक्फ बोर्ड और उससे जुड़ी संपत्तियों को लेकर राज्य सरकारों को अधिक अधिकार मिलने चाहिए। उनका आरोप है कि केंद्र सरकार धार्मिक संस्थाओं की संपत्तियों में अनावश्यक हस्तक्षेप कर रही है, जिससे अल्पसंख्यक समुदाय में असंतोष फैल रहा है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या कोई राज्य सरकार केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए किसी कानून को अमल में लाने से मना कर सकती है?
भारतीय संविधान के अनुसार, वक्फ एक समवर्ती सूची का विषय है, जिसका अर्थ है कि इस पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। केंद्र द्वारा बनाए गए कानून को संपूर्ण भारत में लागू करने की मंशा होती है, लेकिन उसका कार्यान्वयन राज्य सरकारों के सहयोग से ही संभव होता है। यदि कोई राज्य सरकार किसी केंद्रीय कानून को लागू करने से इनकार करती है, तो उसे संवैधानिक प्रक्रिया के तहत चुनौती दी जा सकती है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार यदि चाहे, तो संविधान के अनुच्छेद 256 और 257 का सहारा लेकर राज्य को कानून लागू करने के लिए बाध्य कर सकती है। हालांकि, राजनीतिक दृष्टिकोण से यह मामला अधिक संवेदनशील हो सकता है, खासकर जब उसमें धार्मिक और सांस्कृतिक आयाम जुड़े हों।
पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में, जहां मुस्लिम आबादी महत्वपूर्ण संख्या में है, वक्फ कानून को लेकर सरकार का रवैया राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से बड़ा प्रभाव छोड़ सकता है।