अमेरिका और चीन के बीच चल रही व्यापारिक तनातनी एक बार फिर सुर्खियों में है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने चीन से आयातित स्टील पर 145 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाने की घोषणा की है। इस फैसले को लेकर वैश्विक बाजार में हलचल तेज हो गई है, वहीं यह सवाल भी उठ रहा है कि ट्रंप की यह आक्रामक नीति आखिरकार कहां जाकर थमेगी।
क्या है मामला?
डोनाल्ड ट्रंप, जो 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी से फिर मैदान में हैं, पहले भी "अमेरिका फर्स्ट" नीति के तहत चीन पर भारी टैरिफ लगा चुके हैं। अब उन्होंने फिर से चीन के स्टील उद्योग को निशाने पर लिया है। ट्रंप का दावा है कि चीनी कंपनियां अमेरिकी बाजार को सस्ते और सब्सिडी वाले उत्पादों से पाट रही हैं, जिससे घरेलू उद्योग को नुकसान हो रहा है।
अमेरिकी उद्योग को राहत या नई परेशानी?
ट्रंप समर्थकों का मानना है कि यह कदम अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत करेगा और नौकरियों की रक्षा करेगा। लेकिन आलोचक इसे व्यापार युद्ध को और भड़काने वाला बताते हैं। उनका तर्क है कि इससे उपभोक्ताओं को महंगी वस्तुएं खरीदनी पड़ेंगी और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर बुरा असर पड़ेगा।
चीन की प्रतिक्रिया
चीन ने अमेरिका के इस कदम की कड़ी निंदा की है और संकेत दिए हैं कि वह बदले की कार्रवाई कर सकता है। चीनी वाणिज्य मंत्रालय ने कहा है कि अमेरिका का यह फैसला WTO के नियमों का उल्लंघन करता है और वैश्विक व्यापार को अस्थिर कर सकता है।
अर्थव्यवस्था पर असर
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह टैरिफ वॉर लंबे समय तक चला, तो इससे न केवल अमेरिका और चीन की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होंगी, बल्कि वैश्विक वित्तीय बाजारों में भी अस्थिरता आ सकती है।