अंतरराष्ट्रीय राजनीति एक बार फिर बदलते समीकरणों के दौर से गुजर रही है। पश्चिमी देशों और रूस के बीच पिछले एक दशक से जारी तनाव के बीच अब कूटनीति के नए संकेत दिखाई देने लगे हैं। हालिया वैश्विक बैठकों और राजनयिक बयानों ने यह संकेत दिया है कि कुछ शक्तिशाली देश रूस को दोबारा G-8 समूह में लाने की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं। यदि ऐसा होता है, तो यह वैश्विक शक्ति-संतुलन और आर्थिक नीतियों पर दूरगामी असर डाल सकता है।
रूस को वर्ष 2014 में यूक्रेन संकट के बाद G-8 से बाहर कर दिया गया था, जिसके बाद यह समूह G-7 बन गया। तब से अमेरिका, यूरोप और रूस के रिश्ते लगातार तनावपूर्ण बने हुए हैं। हालांकि रूस ने अपने आर्थिक और सामरिक गठबंधनों—जैसे BRICS और EEU—के जरिये वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति मजबूत बनाए रखी। अब, बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों में कुछ देशों का मानना है कि रूस को फिर से बातचीत की मेज पर लाना अंतरराष्ट्रीय स्थिरता के लिए जरूरी है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य आपूर्ति, वैश्विक महंगाई, यूरोपीय युद्ध तनाव और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बदलते समीकरण जैसी चुनौतियों के बीच G-7 देशों पर दबाव बढ़ रहा है कि वे रूस के साथ किसी तरह संवाद बहाल करें। अमेरिका और यूरोप के भीतर भी इस मुद्दे पर मतभेद उभर रहे हैं। कुछ देश रूस को वापस शामिल करने से पहले कठोर शर्तें लागू करने के पक्ष में हैं, जबकि अन्य मानते हैं कि मौजूदा वैश्विक संकट में सहयोग की नई राहें खोलना ज्यादा व्यावहारिक होगा।
रूस की ओर से भी अप्रत्यक्ष रूप से संकेत दिए गए हैं कि वह संवाद के लिए तैयार है, बशर्ते उसे बराबरी का दर्जा और सम्मान मिले। विशेषज्ञों का कहना है कि रूस G-8 में वापसी को न केवल प्रतिष्ठा का विषय मानता है, बल्कि इसके माध्यम से उसे वैश्विक आर्थिक फैसलों में फिर से सीधी भूमिका मिलेगी। वहीं G-7 देशों के लिए रूस की भागीदारी ऊर्जा संकट, मध्य-पूर्व अस्थिरता और सप्लाई चेन चुनौतियों के समाधान में उपयोगी हो सकती है।
फिर भी, यह रास्ता आसान नहीं दिखता। यूक्रेन युद्ध, यूरोप की सुरक्षा चिंताएँ, नाटो के विस्तारित प्रभाव और प्रतिबंधों का लंबा इतिहास—ये सभी मुद्दे रूस की वापसी को जटिल बनाते हैं। कुछ देशों का स्पष्ट कहना है कि जब तक रूस अपने सैन्य कदमों पर स्पष्ट नरमी नहीं दिखाता, तब तक उसे वैश्विक शक्तिशाली मंच का हिस्सा बनाना कठिन होगा।
इसके बावजूद, राजनयिक हलकों में यह चर्चा तेजी पकड़ चुकी है कि किसी न किसी रूप में रूस की भागीदारी की जरूरत है। चाहे वह G-8 के रूप में हो या किसी नए संवाद तंत्र के तहत—दुनिया की बड़ी शक्तियाँ मान रही हैं कि बिना रूस के वैश्विक संकटों का समाधान अधूरा रहेगा।
कुल मिलाकर, रूस को फिर G-8 में लाने की यह संभावित पहल आने वाले महीनों में अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का सबसे प्रमुख मुद्दा बन सकती है। अगले वैश्विक शिखर सम्मेलनों में इस पर हलचल और स्पष्ट होती नजर आ सकती है।