भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां यह बात हम और आप नहीं बल्कि समूचे देश के उन करोड़ों युवाओं के लिए खतरे की घंटी साबित होती मालूम हो रही है जो भारत में नये स्टार्टअप्स के जरिये न केवल अपने व्यापार को बढ़ा कर ज्यादा से ज्यादा रोजगार सृजन करके बेरोजगारी कम करने की बातें कर रहे थे बल्कि अपने स्टार्टअप से तरक्की करके अपने परिवार और फिर देश की खुशहाली के बड़े बड़े सपने संजोने की योजनाओं में मसरूफ थे। वहीं अब स्टार्टअप इकोसिस्टम पर ताजा रिपोर्ट ने आखिर इस स्टार्टअप्स की क्रांति को ही सवालों के घेरे में ला दिया है। हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दो वर्षों में देश के 28,000 से अधिक स्टार्टअप्स बंद हो चुके हैं। यह आंकड़ा भारत के उद्यमशीलता क्षेत्र के लिए चिंताजनक है, खासकर तब जब भारत विश्व के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम के रूप में जाना जाता है। आइये समझते हैं भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम को। वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 'स्टार्टअप इंडिया' अभियान की शुरुआत के साथ ही देश में उद्यमिता को लेकर एक नई जागरूकता आई। वित्तीय सहयोग, टैक्स रियायतें और सरकारी मान्यता जैसे प्रयासों से लाखों युवाओं ने व्यवसायिक पहल की ओर रुख किया। 2020-21 के दौरान कोविड-19 महामारी के बावजूद स्टार्टअप्स की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई। लेकिन अब रिपोर्टें बताती हैं कि वही स्टार्टअप्स जो कभी आशा की किरण थे, आज बंद होने की कगार पर हैं या पूरी तरह से बंद हो चुके हैं। इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है "ट्रैक्सन" और "इंक42" जैसी स्टार्टअप ट्रैकिंग एजेंसियों के आंकड़ों और उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग द्वारा पंजीकृत डेटा के आधार पर। रिपोर्ट बताती है कि: वर्ष 2022 और 2023 के दौरान कुल 28,000 से अधिक स्टार्टअप्स ने संचालन बंद किया। इनमें से अधिकतर स्टार्टअप्स तकनीकी, ई-कॉमर्स, फिनटेक और एडटेक सेक्टर से जुड़े थे। बंद हुए स्टार्टअप्स में से लगभग 80% तीन वर्ष से कम समय के लिए सक्रिय रहे। अब बात करते हैं इन स्टार्टअप्स बंद होने के प्रमुख कारणों की। फंडिंग की भारी कमीः जी हां कोविड-19 के बाद वैश्विक निवेशकों की जोखिम उठाने की क्षमता घटी। 2022 में निवेश में लगभग 35% की गिरावट दर्ज की गई। खासकर शुरुआती चरण के स्टार्टअप्स के लिए फंडिंग जुटाना बेहद कठिन हो गया। यथार्थ से परे मूल्यांकनः कई स्टार्टअप्स ने बाज़ार में खुद को अधिक मूल्यवान दर्शाया, लेकिन राजस्व मॉडल मजबूत नहीं थे। जब निवेशक लाभ की मांग करने लगे, तो वे टिक नहीं सके। प्रतिस्पर्धा का तीव्र स्तरः एक ही सेक्टर में कई स्टार्टअप्स होने के कारण ग्राहकों को लुभाने की होड़ शुरू हो गई, जिससे कीमतें कम करनी पड़ीं और लाभप्रदता प्रभावित हुई। सतही नवाचार और समस्याओं की अनदेखीः कई स्टार्टअप्स ने बिना बाज़ार की जरूरतों को समझे कॉपी-पेस्ट मॉडल अपनाया, जिससे दीर्घकालिक सफलता असंभव हो गई। सरकारी और नियामकीय बाधाएः कर व्यवस्था, जीएसटी अनुपालन, श्रम कानूनों और डेटा सुरक्षा जैसे मसले छोटे उद्यमों पर बोझ बनते जा रहे हैं। ताज्जुब की बात तो यह है कि इस मंदी के दौर में कई उल्लेखनीय स्टार्टअप्स भी बंद हो गये हैं जैसे लीडो लर्निंग (एडटेक): 2022 में फंडिंग के अभाव में बंद हुआ।, गो मैकेनिकः वित्तीय अनियमितताओं और कॉरपोरेट गवर्नेंस की कमी से प्रभावित हुआ। इसी प्रकार ज़ीलिंगो (फैशन टेक): आंतरिक विवादों और निवेशकों के असंतोष से संघर्षरत रहा।यह भी सच है कि स्टार्टअप्स के बंद होने का व्यापक प्रभाव कई क्षेत्रों पर पड़ा है जैसे रोजगार पर असरः इन स्टार्टअप्स के बंद होने से हजारों युवाओं की नौकरियां प्रभावित हुईं। अनुमानतः हर स्टार्टअप औसतन 20 से 50 लोगों को रोजगार देता है। निवेशक विश्वास में गिरावटः लगातार विफलताओं के कारण घरेलू और विदेशी निवेशक भारतीय स्टार्टअप्स को लेकर सतर्क हो गए हैं।नवाचार पर नकारात्मक असरः जोखिम लेने की प्रवृत्ति कम हो रही है, जिससे वास्तविक नवाचार की गति धीमी पड़ रही है। सरकारी रणनीतियों पर सवालः'स्टार्टअप इंडिया' जैसी योजनाओं की प्रभावशीलता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या केवल मान्यता देना और टैक्स छूट पर्याप्त है? आइये बात करते हैं इस स्थिति से निकलने के उपायों की। निवेशकों और स्टार्टअप्स दोनों को यथार्थ पर आधारित मूल्यांकन को प्राथमिकता देनी होगी। युवाओं को केवल पूंजी नहीं, बल्कि व्यावसायिक योजना, वित्तीय प्रबंधन और ग्राहक संबंधों पर मार्गदर्शन भी चाहिए। सरकार को स्टार्टअप्स के लिए टैक्स प्रक्रिया, रजिस्ट्रेशन, जीएसटी और एफडीआई नियमों को और सरल बनाना होगा। अमेरिका और यूरोप की तरह भारत में भी व्यवसायिक विफलता को सीखने का माध्यम माना जाए। घरेलू निवेश को प्रोत्साहित करने से विदेशी निवेश पर निर्भरता घटेगी। दूसरी ओर इसे इस प्रकार भी देखा जा सकता है कि क्या यह अंत है या नई शुरुआत? भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम अभी भी दुनिया के सबसे युवा और ऊर्जावान इकोसिस्टम्स में से एक है। विफलताओं की इस लंबी सूची के बावजूद भारत में 1,20,000 से अधिक सक्रिय स्टार्टअप्स हैं और इनमें से कई ने वैश्विक पहचान बनाई है। युनिकॉर्नस जैसे ज़ीरोधा, फोन पे, स्वीगी और बाय जू ने यह साबित किया है कि नवाचार, धैर्य और बेहतर मैनेजमेंट के साथ भारतीय स्टार्टअप्स वैश्विक स्तर पर सफल हो सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक भारतीय स्टार्टअप विशेषज्ञ वेंकटेश अय्यर के अनुसार, “यह जरूरी नहीं कि हर स्टार्टअप सफल हो। महत्वपूर्ण यह है कि स्टार्टअप्स से सीख ली जाए और अगली कोशिश में गलती न दोहराई जाए। भारत को विफलताओं से डरने की बजाय नवाचार और पुनः प्रयास की संस्कृति को अपनाना होगा।”अंत में कह सकते हैं कि संकट में अवसर छिपा रहता है। 28,000 स्टार्टअप्स का बंद होना भारत के स्टार्टअप परिदृश्य के लिए एक चेतावनी है, लेकिन यह पुनर्विचार का भी अवसर है। जरूरी है कि उद्यमशीलता को केवल आकस्मिक सफलता के चश्मे से न देखा जाए, बल्कि इसे एक सतत प्रक्रिया के रूप में अपनाया जाए जिसमें योजना, नवाचार और सीख निरंतर हो।अगर सरकार, निवेशक, और स्टार्टअप संस्थापक मिलकर एक पारदर्शी, सीखने योग्य और नवोन्मेषी वातावरण तैयार करते हैं, तो भारत फिर से विश्व स्टार्टअप मानचित्र पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवा सकता है।