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संपादकीय

Strict action against adulteration of food items: खाद्य पदार्थों में मिलावट पर सख्त कार्रवाई खासी ज़रूरी, अन्यथा भुगतने पड़ सकते हैं सामाजिक और आर्थिक दुष्परिणाम

April 27, 2025 04:05 PM

भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़   

जी हां यह शत प्रतिशत सच है कि भारत में खाद्य पदार्थों में अपमिश्रण एक ऐसी समस्या बन चुकी है जो जन स्वास्थ्य के लिए गहरी चिंता का विषय है। हर साल लाखों लोग इसके कारण बीमार पड़ते हैं या गंभीर स्वास्थ्य संकट का सामना करते हैं। भले ही सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून बनाए हैं और भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण जैसी संस्थाएँ सक्रिय हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इनकी प्रभावशीलता पर सवाल उठते रहे हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि खाद्य अपमिश्रण की स्थिति क्या है, इसके पीछे कौन-कौन से कारण जिम्मेदार हैं और इसे रोकने के लिए क्या सुधारात्मक कदम उठाए जाने चाहिए। आइये समझते हैं खाद्य पदार्थों में मिलावट के बारे में। एफ एस एस ओ आई  के अनुसार, जब जानबूझकर या अनजाने में किसी खाद्य पदार्थ में ऐसे घटक मिलाए जाते हैं जो उसकी गुणवत्ता, सुरक्षा या स्वभाव को प्रभावित करते हैं, तो उसे अपमिश्रण कहा जाता है। यह प्रक्रिया कृषि उत्पादन, फसल कटाई, भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन या वितरण के दौरान भी हो सकती है। जानबूझकर अपमिश्रण में मुख्यतः लागत घटाने या उत्पाद का वज़न बढ़ाने के लिए हानिकारक रसायनों या अशुद्ध पदार्थों का उपयोग किया जाता है। अनजाने में अपमिश्रण तब होता है जब भंडारण या प्रसंस्करण के दौरान मानक प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता। खाद्य पदार्थों में मिलावट को लेकर वर्तमान स्थिती की बात करें तो एफ एस एस ए आई की रिपोर्ट के अनुसार, 2018-19 में परीक्षण किए गए खाद्य नमूनों में से 26.4% में अपमिश्रण पाया गया था, जो 2016-17 के 23.4% से अधिक है।2023-24 में, लगभग 1.5 लाख खाद्य नमूनों का विश्लेषण किया गया, जिनमें से 33,000 से अधिक गैर-अनुरूप पाए गए। आइये बात करते हैं उन घटनाओं की जिनमें नामी ब्रांड मिलावटी खाद्य पदार्थों के आरोपो में घिरे पाये गये हैं। मैगी नूडल्स विवाद: नेसले इंडिया के लोकप्रिय मैगी नूडल्स में सीसा और मोनोसोडियम ग्लूटामेट की अत्यधिक मात्रा पाई गई थी, जिसके कारण उत्पाद पर अस्थायी प्रतिबंध लगाना पड़ा।राजस्थान में वर्ष 2024 में खाद्य नमूनों के परीक्षण में लगभग 25% नमूने अपमिश्रित पाए गए। 6.6 लाख किलोग्राम से अधिक अपमिश्रित खाद्य सामग्री जब्त की गई।डेयरी उत्पादों में अपमिश्रण: नोएडा और ग्रेटर नोएडा में 83% पनीर नमूने गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरे।मसालों में संदूषण: देशभर में मसालों के 12% नमूने कीटनाशक अवशेषों या अन्य संदूषकों के लिए मानकों पर खरे नहीं उतरे।उदाहरण के तौर पर, एम डी एच और एवरेस्ट ब्रांड के मसालों में एथिलीन ऑक्साइड जैसे कैंसरकारी कीटनाशकों का उच्च स्तर पाया गया, जिससे उत्पादों को सिंगापुर और हांगकांग में वापस भेजा गया। खाद्य पदार्थों में मिलावट के कारणों पर गौर करें तो पायेंगे कि भले ही एफ एस एस ए आई और राज्य स्तर के खाद्य प्राधिकरण सक्रिय हैं, लेकिन नियमन और निगरानी में कमी स्पष्ट है। भारत में खाद्य उद्योग का एक बड़ा हिस्सा असंगठित है, जो नियमन के दायरे से बाहर है।आज भी भारत में एक बड़ी आबादी को खाद्य अपमिश्रण के खतरों और फूड सेफ्टी सर्टिफिकेशन जैसे एफएसएसएआई मानकों की जानकारी नहीं है। इसका फायदा उठाकर व्यापारी मिलावट कर लाभ कमाते हैं। 80% से अधिक खाद्य सामग्री का व्यापार अनौपचारिक क्षेत्रों में होता है, जहाँ निगरानी और गुणवत्ता नियंत्रण लगभग न के बराबर है। भारत में कई बार खाद्य सुरक्षा मानकों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के दिशानिर्देशों (जैसे WHO) के मुकाबले कम कठोरता देखी जाती है। उदाहरण के लिए, भारत में खाद्य पदार्थों में सीसे की अधिकतम सीमा अंतरराष्ट्रीय मानक से अधिक है। कई छोटे और मध्यम स्तर के खाद्य निर्माता संसाधनों की कमी के कारण गुणवत्ता और स्वच्छता मानकों को बनाए नहीं रख पाते, जिससे खाद्य अपमिश्रण का जोखिम बढ़ता है।कीटनाशकों का अंधाधुंध उपयोग, अमानक पैकेजिंग, और प्रसंस्करण सुविधाओं की उपेक्षा खाद्य अपमिश्रण को बढ़ावा देती है। इसे कंट्रोल करने के लिए हमारे देश में व्यापक कानूनी ढांचा मौजूद है। खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (एफ एस एस ए आई), 2006  अधिनियम एफ एस एस ए आई के गठन का आधार है। इसका उद्देश्य है खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और उपभोक्ताओं को सुरक्षित खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना। खाद्य सुरक्षा एवं मानक (पैकेजिंग एवं लेबलिंग) विनियम, 2011, उपभोक्ताओं को खाद्य उत्पाद की सामग्री, पोषण मूल्य और समाप्ति तिथि के बारे में पारदर्शी जानकारी प्रदान करने को अनिवार्य बनाता है।राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013, कमजोर वर्गों को सस्ती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने के साथ-साथ, इस अधिनियम के तहत वितरित खाद्य पदार्थों को स्वच्छ और अपमिश्रण मुक्त होना आवश्यक है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019, कानून उपभोक्ताओं को अपमिश्रित खाद्य पदार्थों से होने वाले नुकसान के खिलाफ मुआवजा मांगने का अधिकार देता है। साथ ही यह अनुचित व्यापार प्रथाओं के खिलाफ कार्रवाई को भी आसान बनाता है। इस क्षत्र में सुधार के लिए कई आवश्यक कदम उठाये जा सकते हैं जैसे एफ एस एस ए आई और राज्य स्तरीय एजेंसियों को तकनीकी संसाधनों, प्रशिक्षित स्टाफ और बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर से लैस करना आवश्यक है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा, अपमिश्रण की पहचान और उपभोक्ता अधिकारों के बारे में व्यापक अभियान चलाए जाने चाहिए। खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को पारदर्शी और निगरानी योग्य बनाना होगा, ताकि खेत से लेकर थाली तक की हर कड़ी पर गुणवत्ता की जाँच की जा सके। खाद्य अपमिश्रण के दोषियों के खिलाफ कठोर दंड और तेज़ न्यायिक प्रक्रिया सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि मिलावटखोरों को कड़ा संदेश जाए। भारत को अपने खाद्य सुरक्षा मानकों को डबल्यू एच औ और एफ ए ओ जैसे वैश्विक संगठनों के अनुरूप बनाना चाहिए ताकि घरेलू और निर्यात बाज़ार दोनों में भरोसा बढ़ सके। अंत में कह सकत हैं कि खाद्य पदार्थों में अपमिश्रण महज़ एक नियामक विफलता नहीं, बल्कि जन स्वास्थ्य संकट है। यह न केवल स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देता है बल्कि भारत की खाद्य निर्यात क्षमता और वैश्विक छवि को भी नुकसान पहुँचाता है। समय की माँग है कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर सख्त निगरानी, प्रभावी प्रवर्तन, व्यापक उपभोक्ता जागरूकता और दोषियों पर त्वरित कार्रवाई के माध्यम से इस चुनौती से निपटें।

 

 

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