रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष के बीच एक अप्रत्याशित घटनाक्रम सामने आया है। युद्ध की मार झेल रहे दोनों देशों ने एक अहम समझौता किया है, जिसने अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों को आश्चर्यचकित कर दिया है। यह डील मानवीय सहायता, युद्धबंदियों की अदला-बदली और सीमित क्षेत्रों में संघर्षविराम से जुड़ी है।
सूत्रों के मुताबिक, रूस और यूक्रेन के बीच यह बातचीत मध्यस्थ देशों की पहल पर हुई। इसमें तुर्की और कतर जैसे देशों की भूमिका अहम मानी जा रही है। समझौते के तहत दोनों पक्षों ने कुछ विवादित इलाकों में अस्थायी संघर्षविराम लागू करने पर सहमति जताई है, जिससे युद्धग्रस्त नागरिकों को राहत पहुंचाई जा सके।
अमेरिका ने जताई आशंका, डील की टाइमिंग पर सवाल
अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के कई देशों ने इस समझौते की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं। अमेरिका को आशंका है कि यह डील रूस की रणनीतिक चाल हो सकती है ताकि वह सैन्य स्तर पर फिर से खुद को मजबूत कर सके। वॉशिंगटन ने यूक्रेन से स्पष्टीकरण मांगा है कि कहीं यह समझौता पश्चिमी देशों की सैन्य सहायता को प्रभावित न करे।
युद्धबंदियों की अदला-बदली बनी केंद्र बिंदु
इस डील का सबसे प्रमुख हिस्सा युद्धबंदियों की अदला-बदली है। रूसी और यूक्रेनी अधिकारियों ने संयुक्त रूप से यह जानकारी दी कि दोनों पक्ष सैकड़ों बंदियों को रिहा करने के लिए तैयार हो चुके हैं। इस कदम को मानवाधिकार संगठनों ने सकारात्मक बताया है।
सैन्य कार्रवाई में कोई कमी नहीं
हालांकि यह डील मानवीय पहलुओं पर केंद्रित है, लेकिन सैन्य मोर्चे पर दोनों देशों के बीच संघर्ष जारी है। डोनबास और खेरसॉन जैसे इलाकों में बमबारी और ड्रोन हमले लगातार हो रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह समझौता स्थायी शांति की दिशा में कोई निर्णायक कदम नहीं है, बल्कि एक अस्थायी राहत मात्र है।
जनता में मिली-जुली प्रतिक्रिया
यूक्रेन और रूस की आम जनता ने इस डील पर मिली-जुली प्रतिक्रिया दी है। जहां एक ओर युद्धग्रस्त इलाकों के लोग राहत महसूस कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कई लोगों को इस डील की सफलता को लेकर संदेह है।
भविष्य की राह कठिन
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह समझौता यदि टिकाऊ सिद्ध हुआ, तो यह भविष्य में व्यापक शांति वार्ता का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। लेकिन मौजूदा हालात में किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी।