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संपादकीय

Need for mutual balance between Jal Jeevan Mission and traditional water conservation methods: जल संकट की समस्या से निबटने के लिए जरूरी है जल जीवन मिशन और पारंपरिक जल संरक्षण विधियों के पारस्परिक संतुलन की

March 22, 2025 11:05 PM

भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़


जी हां इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत में जल संकट एक गंभीर समस्या बन चुकी है। जल जीवन मिशन , जिसे 2019 में शुरू किया गया था, का उद्देश्य 2024 तक हर ग्रामीण घर में नल कनेक्शन (पाइपलाइन से जल आपूर्ति) प्रदान करना है। हालांकि, इस मिशन में अभी तक आशानुकूल प्रगति नहीं देखी गई है, और लगभग 80% ग्रामीण घरों को कवर करने के बावजूद यह मिशन अपेक्षाकृत धीमी गति से बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप, इसे अब 2028 तक बढ़ा दिया गया है। यह मिशन नल कनेक्शन पर मुख्य रूप से केंद्रित है, लेकिन इसके कारण पारंपरिक जल संरक्षण विधियों की उपेक्षा हो सकती है, जो जल जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं। जैसे कि केरल, जहाँ केवल 20% लोग पाइपलाइन से जल प्राप्त करते हैं, वहीं 60% लोग पारंपरिक जल स्रोतों जैसे कुएं, तालाब और वर्षा जल संचयन का उपयोग करते हैं। यह दर्शाता है कि पारंपरिक जल स्रोतों का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है और अगर केवल नल कनेक्शनों पर ध्यान केंद्रित किया गया, तो दीर्घकालिक जल सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। आइये बात करते हैं भारत में मौजूदा जल प्रबंधन की स्थिति की। भारत में जल प्रबंधन का कार्य विभाजन की प्रक्रिया से चलता है, जहाँ राज्य, केंद्रीय और स्थानीय स्तर पर विभिन्न संस्थाएं कार्य कर रही हैं। जल की प्रबंधन संरचना के विभिन्न स्तरों पर जिम्मेदारी और नियंत्रण मौजूद हैं। इतना ही नहीं भारतीय संविधान में जल राज्य का विषय है। राज्य सूची के तहत जल राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है, जबकि अंतर-राज्यीय नदी जल संघीय केंद्र सरकार के नियंत्रण में होता है। जल संरक्षण को संवैधानिक रूप से बढ़ावा देने के लिए अनुच्छेद 48 ए और अनुच्छेद 51ए (जी) में विशेष रूप से पर्यावरण और जल निकायों के संरक्षण की बात की गई है। जल संसाधन मंत्रालय, जो जल शक्ति मंत्रालय के रूप में 2019 में पुनर्गठित हुआ, केंद्र स्तर पर कार्य करता है। राज्य स्तर पर जल संसाधन विभाग, जल बोर्ड और भूजल प्राधिकरण काम करते हैं। पंचायतों, जल समितियों और शहरी निकायों के माध्यम से स्थानीय स्तर पर जल प्रशासन कार्यान्वित किया जाता है। भारत में जल संसाधनों का प्रबंधन करने के लिए केंद्रीय जल आयोग , केंद्रीय भूजल बोर्ड , और राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी जैसी एजेंसियां काम करती हैं। ये संस्थाएं जल के सतही और भूजल संसाधनों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हमारे देश में जल प्रबंधन के लिए कई महत्वपूर्ण कानून हैं जैसे जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986। इन कानूनों के माध्यम से जल प्रदूषण और जल निकायों के संरक्षण की प्रक्रिया को नियंत्रित किया जाता है। आइये समझते हैं जल प्रबंधन से जुड़े प्रमुख मुद्दों को। हमारे देश में भूजल का अत्यधिक दोहन एक बड़ी समस्या बन चुकी है। विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में बिना नियमन के भूजल का अत्यधिक उपयोग हो रहा है, जिससे भूजल स्तर में तेजी से गिरावट आ रही है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्य पहले ही गंभीर भूजल संकट का सामना कर रहे हैं। भारत विश्व में सबसे अधिक भूजल का उपयोग करने वाला देश है, और इसका असर कृषि और जल सुरक्षा पर प्रतिकूल रूप से पड़ रहा है। इसी प्रकार जल प्रशासन में कई मंत्रालयों और संस्थाओं का अस्तित्व होने के कारण समन्वय की कमी है। जल जीवन मिशन, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण एन एफ एच एस, और राष्ट्रीय सांख्यिकी सर्वेक्षण एन एस एस जैसे डेटा स्रोतों में जल उपलब्धता की परिभाषाएं और संकेतक अलग-अलग होते हैं, जिससे प्रगति की निगरानी में कठिनाई होती है। भारत के शहरी क्षेत्रों में जल संकट गहरा रहा है। पुराने जल आपूर्ति सिस्टम, बढ़ती जनसंख्या और अनियोजित शहरीकरण के कारण जल संकट दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। कई बड़े शहरों में, जैसे दिल्ली और बेंगलुरु, गर्मियों के दौरान जल की भारी कमी का सामना किया जाता है। भारत में जल की उपलब्धता केवल एक पहलू है; जल की गुणवत्ता भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। कई क्षेत्रों में लोगों को दूषित जल की आपूर्ति मिलती है, जिसमें फ्लोराइड, आर्सेनिक, और आयरन जैसे प्रदूषक शामिल होते हैं। यह समस्या विशेष रूप से पूर्वी और मध्य भारत में अधिक है। जल जीवन मिशन के तहत पाइप कनेक्शन देने के उद्देश्य से पारंपरिक जल स्रोतों जैसे कुएं, तालाब और वर्षा जल संचयन प्रणालियों की उपेक्षा हो रही है। इन प्रणालियों का संरक्षण आवश्यक है, क्योंकि वे ग्रामीण समुदायों के लिए महत्वपूर्ण जल स्रोत हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में जल संकट और भी गहरा सकता है। अनियमित वर्षा पैटर्न, सूखा, और बाढ़ की घटनाएँ जल उपलब्धता को प्रभावित कर रही हैं। इसके कारण जल प्रबंधन की रणनीतियाँ और जल अवसंरचना की डिज़ाइन में सुधार की आवश्यकता है। एसा नहीं है कि इस दिशा में कोई काम नहीं हो पा रहा है। भारत में जल प्रबंधन के लिए कई प्रयास किये जा सकते हैं जैसे जल जीवन मिशन को अटल भूजल योजना के साथ एकीकृत करना, चक्रीय जल उपयोग मॉडल को बढ़ावा देना-भारत में शहरी जल संकट को हल करने के लिए चक्रीय जल उपयोग मॉडल को अपनाने की आवश्यकता है। अपशिष्ट जल पुनर्चक्रण, वर्षा जल संचयन, और ग्रेवाटर पुनःउपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके अलावा, स्मार्ट सिटी मिशन और अमृत 2.0 को जोड़ने से शहरी जल अवसंरचना को और अधिक संधारणीय बनाया जा सकता है। विकेंद्रीकृत जल प्रशासन को सुदृढ़ करना, सिंचाई के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग, जल डेटा और संस्थागत तालमेल को सुधारना, जलवायु परिवर्तन के अनुकूल जल अवसंरचना आदि है। अंत में कह सकते हैं कि भारत के जल प्रबंधन में दीर्घकालिक संधारणीयता सुनिश्चित करने के लिए जल जीवन मिशन को पारंपरिक जल संरक्षण विधियों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए। इसके अलावा, विकेंद्रीकृत शासन, प्रौद्योगिकी का उपयोग, और डेटा पारदर्शिता को बढ़ावा देने से जल संकट को प्रभावी ढंग से हल किया जा सकता है। जल प्रबंधन के लिए एकीकृत और सहभागी दृष्टिकोण अपनाने से जल संसाधनों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है और भारत को जल संकट से निपटने में सफलता मिल सकती है।

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