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संपादकीय

Urgently need to overcome grid stability, energy storage, financial viability and technical hurdles in the solar energy sector: हमें सौर ऊर्जा क्षेत्र में ग्रिड स्थिरता, ऊर्जा भंडारण, वित्तीय व्यवहार्यता और तकनीकी बाधाओं दूर करने की खासी जरूरत

March 27, 2025 08:36 PM

भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़

भारत का सौर ऊर्जा क्षेत्र हाल के वर्षों में उल्लेखनीय रूप से विकसित हुआ है। मगर बावजूद इसके हमारा सौर ऊर्जा क्षेत्र ग्रिड स्थिरता, ऊर्जा भंडारण, वित्तीय व्यवहार्यता और तकनीकी बाधाओं के चलते खासी दिक्कतों से जूझ रहा है इसे तुरंत दूर करने की खासी जरूरत है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना जैसी पहलों के माध्यम से देश ने केवल एक वर्ष में 5.21 गीगावाट की रूफटॉप सौर ऊर्जा क्षमता जोड़ी है। आइये गौर करते है भारत की सौर ऊर्जा में तरक्की के बारे में। भारत ने अपनी सौर ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि की है और वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर है। 2018 में भारत की सौर ऊर्जा क्षमता 21.6 गीगावाट थी, जो जून 2023 तक बढ़कर 70.10 गीगावाट हो गई। 2030 तक भारत 280 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लक्ष्य पर कार्य कर रहा है, जो देश के 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगा। प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना ने आवासीय क्षेत्रों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया है। इस योजना के तहत 1 करोड़ घरों की छतों पर सौर पैनल लगाने के लिए 75,021 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। परिवारों को प्रति माह 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली मिलेगी और अतिरिक्त ऊर्जा बेचकर 17,000-18,000 रुपये की वार्षिक आय अर्जित कर सकते हैं। भारत उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन योजना के माध्यम से आयात निर्भरता को कम कर रहा है। ₹24,000 करोड़ के पी एल आई निवेश से 47 गीगावाट से अधिक सौर मॉड्यूल निर्माण को बढ़ावा मिला है। इस योजना के तहत 1 लाख से अधिक रोजगार के अवसर भी सृजित किए गए हैं। भारत 50 बड़े सोलर पार्कों की स्थापना कर रहा है, जिनकी कुल क्षमता 38 गीगावाट होगी। इनमें से 11 पार्क पहले ही 10,237 मेगावाट क्षमता के साथ चालू हो चुके हैं। इन पार्कों के माध्यम से सौर ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत उन्नत तकनीकों जैसे फ्लोटिंग सोलर, बाइफेसियल मॉड्यूल और स्मार्ट इनवर्टर को अपना रहा है। तेलंगाना में 100 मेगावाट की क्षमता वाला रामागुंडम फ्लोटिंग सोलर प्लांट भारत के सबसे बड़े सौर संयंत्रों में से एक है। भारत ने 111 देशों के साथ मिलकर आई एस ए की स्थापना की, जो विकासशील देशों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देता है। आई एस ए का लक्ष्य 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित करना है। भारत के सौर क्षेत्र से जुड़ी कई चुनौतियाँ रहती हैं जैसे बैटरी भंडारण की उच्च लागत के कारण 24x7 ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करना कठिन हो गया है। 1 के डबल्यू पी आर टी एस सिस्टम की कीमत ₹65,000-75,000 के बीच है, लेकिन 2 घंटे की बैटरी जोड़ने पर लागत दोगुनी हो जाती है। सौर ऊर्जा उत्पादन बढ़ने के साथ ही स्थानीय ग्रिड में अस्थिरता की समस्या बढ़ रही है। वितरण कंपनियों को लगभग ₹6.77 लाख करोड़ का घाटा हो चुका है, जिससे यह क्षेत्र और अधिक दबाव में आ गया है।नेट मीटरिंग नियमों में बार-बार बदलाव और सब्सिडी संवितरण में देरी से निवेशक और उपभोक्ता हिचकिचाते हैं।भारत अभी भी सोलर सेल, पॉलीसिलिकॉन और वेफर्स जैसे महत्वपूर्ण घटकों के लिए चीन पर निर्भर है।चीनी आयात पर 40% शुल्क लगाने के बावजूद, पूरी आपूर्ति शृंखला में आत्मनिर्भरता अभी भी अधूरी है।सौर परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण और ट्रांसमिशन सुविधाओं की कमी परियोजना की देरी का कारण बन रही है।औसतन, उपयोगिता-स्तरीय सौर परियोजनाएँ अपनी निर्धारित समापन तिथि से 17 महीने की देरी का सामना कर रही हैं।बड़े सोलर पार्क जैव-विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी संतुलन प्रभावित होता है।बावजूद इन चुनौतियों के गर हम भविष्य की रणनीति और समाधान की बात करें तो इसमें टाइम-ऑफ-डे टैरिफ लागू किया जा सकता है। सौर ऊर्जा की खपत को अनुकूलित करने के लिए टी ओ डी टैरिफ अपनाया जाना चाहिए। इससे ग्रिड संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी और ऊर्जा भंडारण की लागत में भी कमी आएगी। इसी प्रकार स्मार्ट इनवर्टर और हाइब्रिड सौर सिस्टम भी इसके अहम रोल अदा कर सकते हैं। बी आई एस मानकों के तहत सभी रूफटॉप सौर प्रणालियों में स्मार्ट इनवर्टर को अनिवार्य किया जाना चाहिए। इससे ग्रिड दृश्यता और बिजली वितरण की गुणवत्ता में सुधार होगा। पी एम कुसुम योजना और आर टी एस का एकीकरण भी उल्लेखनीय है। कृषि पंपों को घरेलू सौर ऊर्जा योजनाओं से जोड़कर ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा आत्मनिर्भरता को बढ़ाया जा सकता है।इसी प्रकार राष्ट्रीय सौर पारिस्थितिकी तंत्र मंच भी जरूरी है। एक डिजिटल पोर्टल की स्थापना से सौर योजनाओं की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया जा सकता है।घरेलू सौर विनिर्माण के विस्तार से हम बुनियादी समस्याओं पर गौर कर सकते हैं। सरकार को पी एल आई योजनाओं के तहत पॉलीसिलिकॉन, वेफर्स और सोलर सेल के निर्माण को प्राथमिकता देनी चाहिए। भूमि और नहर-आधारित सौर परियोजनाएँ भी कारगर साबित हो सकती हैं। सौर पैनलों को बंजर भूमि, नहरों और औद्योगिक छतों पर स्थापित किया जाना चाहिए, जिससे पारिस्थितिक प्रभाव कम हो। अंत में कहा जा सकता है कि अगर हमने अपने सौर ऊर्जा के क्षेत्र को और विकसित करना है तो सभी तरीकों पर ध्यान देना होगा। यह सच है कि भारत का सौर ऊर्जा क्षेत्र वैश्विक स्तर पर तेजी से प्रगति कर रहा है। हालाँकि, इसकी स्थिरता और विकास के लिए नीति स्थिरता, उन्नत तकनीकी नवाचार और वित्तीय रणनीतियों की आवश्यकता होगी। यब भी सच है कि नई रणनीतियों से भारत आने वाले वर्षों में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व नेता बन सकता है।

 

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