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संपादकीय

BIMSTEC is emerging as a relevant and practical platform in line with India: भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीतियों के अनुरूप प्रासंगिक और व्यवहारिक मंच के रूप में उभर रहा है बीमस्टेक

April 07, 2025 09:22 PM


भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़


जी हां यह पूर्णतय सच है कि बैंकॉक में आयोजित छठे बीमस्टेक शिखर सम्मेलन ने न केवल क्षेत्रीय सहयोग को नई ऊर्जा प्रदान की, बल्कि भारत की इंडो-पैसिफिक रणनीति को भी ठोस आकार दिया है। वर्तमान वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य में, जब बहुपक्षीय संस्थाएं जड़ता का शिकार होती दिख रही हैं, बीमस्टेक एक प्रासंगिक और व्यवहारिक मंच के रूप में उभर रहा है, जो भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीतियों के अनुरूप है। आइये समझते हैं कि आखिर बीमस्टेक है क्या। बीमस्टेक एक क्षेत्रीय संगठन है जो बंगाल की खाड़ी से लगे सात देशों — भारत, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, म्याँमार और थाईलैंड — को जोड़ता है। इसकी स्थापना वर्ष 1997 में बीस्ट एक के रूप में हुई थी और समय के साथ यह एक संस्थागत ढांचे में तब्दील हुआ। इसकी संरचना और कार्यप्रणाली के देखें तो इसका सचिवालय ढाका, बांग्लादेश में स्थित है।हर सदस्य देश एक या एक से अधिक क्षेत्रों का नेतृत्व करता है। भारत सुरक्षा, आतंकवाद-निरोध, ऊर्जा और आपदा प्रबंधन जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। आइये समझते हैं बीमस्टेक और भारत की रणनीतिक प्राथमिकताएँ को। बीमस्टेक भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक केंद्रीय कड़ी प्रदान करता है। बंगाल की खाड़ी हिंद महासागर क्षेत्र का एक प्रमुख भाग है, जो ऊर्जा व्यापार, नौवहन और रणनीतिक संतुलन के लिहाज से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।भारत ने पाकिस्तान के कारण निष्क्रिय हो चुके सार्क के विकल्प के रूप में बीमस्टेक को प्राथमिकता देना शुरू किया है। बीमस्टेक में पाकिस्तान की अनुपस्थिति ने भारत को अधिक स्वतंत्रता और निर्णायक भूमिका निभाने का अवसर दिया है। भारत बीमस्टेक को एक ऐसा मंच मानता है जिसके माध्यम से वह क्षेत्रीय सार्वजनिक वस्तुओं की आपूर्ति कर सकता है और रणनीतिक संवाद को आगे बढ़ा सकता है। इससे भारत का कूटनीतिक और आर्थिक प्रभाव क्षेत्र में और अधिक सुदृढ़ होता है। बीमस्टेक बैंकॉक शिखर सम्मेलन 2024 की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों मे बैंकॉक विजन 2030-यह विजन दस्तावेज बीमस्टेक के भावी एजेंडा को दर्शाता है जो सतत विकास लक्ष्यों और थाईलैंड के बायो-सर्कुलर-ग्रीन मॉडल पर आधारित है। इसका उद्देश्य क्षेत्र को समृद्ध, अनुकूल और समावेशी बनाना है। समुद्री परिवहन समझौता-नवीनतम शिखर सम्मेलन में सी ट्रांसपोर्ट को-ऑपरेशन एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हुए, जो क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और ब्लू इकॉनमी को नया आधार देगा। प्रो- बीमस्टेक फ्रेमवर्क-इस ढाँचे के तीन प्रमुख स्तंभ हैं — समृद्धि, अनुकूलन और खुलापन। यह स्वास्थ्य, कृषि, और सतत पर्यटन जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देता है। बीमस्टेक और भारत की कूटनीतिक रणनीति-भारत बीमस्टेक को अपने मल्टी-अलायंस अप्रोच का हिस्सा बना रहा है जिसमें कुआड, आइओरा और एसियन शामिल हैं। बीमस्टेक के माध्यम से भारत ना केवल आर्थिक साझेदारी को मज़बूत कर रहा है, बल्कि सुरक्षा और समुद्री क्षेत्र में सहयोग को भी नई ऊँचाइयों पर पहुँचा रहा है। बीमस्टेक की प्रभावशीलता को प्रभावित करने वाली चुनौतियों पर गौर करें तो इनमें मुक्त व्यापार समझौता का विलंब-वर्ष 2004 से लंबित बीमस्टेक एफ टी ए अभी तक लागू नहीं हो पाया है, जिससे क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण प्रभावित हुआ है। सचिवालय की सीमाएँ-वर्तमान सचिवालय में संसाधनों और स्टाफ की कमी के कारण कार्यक्रमों का समन्वय और निगरानी सीमित है। राजनीतिक अस्थिरता-म्याँमार में सैन्य शासन और बांग्लादेश में राजनीतिक अनिश्चितता जैसे कारक क्षेत्रीय सहयोग की गति को बाधित करते हैं। वित्तपोषण तंत्र की अनुपस्थिति- बीमस्टेक के पास कोई समर्पित विकास कोष नहीं है, जिससे परियोजनाएँ केवल सदस्य देशों के स्वैच्छिक योगदान पर निर्भर हैं।इसमें सुधार के कई उपाय किये जा सकते हैं जैसे संस्थागत सुदृढ़ीकरण-सचिवालय को अधिक तकनीकी विशेषज्ञों और संसाधनों से सशक्त किया जाना चाहिए ताकि यह कार्यों की बेहतर निगरानी कर सके। व्यवस्थित वित्तपोषण तंत्र- बीमस्टेक विकास कोष की स्थापना से परियोजनाओं को समयबद्ध और प्रभावी रूप से क्रियान्वित किया जा सकेगा।एफ टी ए कार्यान्वयन में तेजी-एक निश्चित समयसीमा में मुक्त व्यापार समझौते को लागू किया जाना चाहिए ताकि अंतर-क्षेत्रीय व्यापार को गति मिले। नई सहयोग पहलों की शुरुआत-डिजिटल इकोनॉमी, हरित तकनीक और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे नए क्षेत्रों में सहयोग को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिए।इस पूरे प्रकरण में भारत की भूमिका अहम है । भारत को बीमस्टेक में नेतृत्व तो निभाना है लेकिन एक संवेदनशील संतुलन बनाए रखना भी आवश्यक है, ताकि छोटे सदस्य देश अपने हितों की अनदेखी महसूस न करें। भागीदारी आधारित नेतृत्व, क्षमता विकास, और मानवीय सहायता की दिशा में भारत को लगातार सक्रिय रहना होगा।अंत में कह सकते हैं कि बीमस्टेक आज एक ऐसे मंच के रूप में उभर रहा है जो रणनीतिक साझेदारी, आर्थिक सहयोग और लोगों से लोगों के जुड़ाव का एक ठोस मार्ग प्रदान करता है। भारत की दूरदर्शी नीतियाँ, सक्रिय भागीदारी और स्पष्ट दृष्टिकोण बीमस्टेक को विकासशील एशिया के लिए एक प्रभावी क्षेत्रीय ब्लॉक के रूप में स्थापित कर सकते हैं।यदि बैंकॉक विज़न 2030 को साकार करना है, तो संस्थागत सुधार, नीति समन्वय और दीर्घकालिक वित्तीय व्यवस्था की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। बीमस्टेक तभी दक्षिण एशिया से दक्षिण-पूर्व एशिया तक की कड़ी बन पाएगा जो स्थायित्व, समृद्धि और सहयोग का प्रतीक हो।

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