Friday, May 02, 2025
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संपादकीय

A comprehensive strategy is needed to adapt India's agriculture sector to global trade changes: भारत के कृषि क्षेत्र को वैश्विक व्यापार परिवर्तनों के अनुरूप ढालने के लिये एक समग्र रणनीति की आवश्यकता

April 09, 2025 09:33 PM

 भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़ 
जी हां इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत के कृषि क्षेत्र को वैश्विक व्यापार परिवर्तनों के अनुरूप ढालने के लिये एक समग्र रणनीति की आवश्यकता है। यह सच है कि हाल के वर्षों में वैश्विक व्यापार परिदृश्य में आ रहे परिवर्तन भारतीय कृषि क्षेत्र को सीधे प्रभावित कर रहे हैं। व्यापार युद्धों, प्रतिशोधात्मक शुल्कों, और नई संरक्षणवादी नीतियों के कारण कृषि निर्यात के रास्ते संकुचित हो रहे हैं। इसका सबसे बड़ा प्रभाव भारत के 100 मिलियन से अधिक लघु और सीमांत किसानों पर पड़ रहा है। ऐसे समय में जब भारत कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते की जटिल वार्ताओं में व्यस्त है, उसे अपने किसानों की रक्षा करते हुए वैश्विक साझेदारियों को मज़बूत करने की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। आइये बात करते हैं वैश्विक संरक्षणवाद और कृषि निर्यात पर असर क बार में। संरक्षणवाद की बढ़ती प्रवृत्ति, विशेषकर अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में, भारत के पारंपरिक कृषि निर्यातों को महंगे शुल्कों और गैर-टैरिफ बाधाओं से जकड़ रही है। चावल, मसाले, और झींगा जैसे उत्पाद, जो भारत की पहचान बन चुके हैं, अब इन देशों में प्रतिस्पर्धी मूल्य पर पहुँच नहीं पा रहे हैं। दुनिया भर में उपभोक्ता अब प्रसंस्कृत और उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य उत्पादों की ओर रुख कर रहे हैं। भारत में जहाँ कच्चे कृषि उत्पादों का निर्यात तो बढ़ा है, वहीं मूल्य संवर्धित उत्पादों की हिस्सेदारी घटी है।2001 में कुल कृषि निर्यात में प्रोसेस्ड फूड की हिस्सेदारी 21% थी, जो 2020-21 में घटकर 13% रह गई।कृषि निर्यात नीति 2018 ने रोडमैप दिया, पर कार्यान्वयन धीमा रहा। भारत अब भी खाद्य तेल, उर्वरक, और कृषि मशीनरी जैसे इनपुट्स के लिए आयात पर भारी निर्भर है। वैश्विक अस्थिरताएँ जैसे यूक्रेन युद्ध और इंडोनेशिया द्वारा पाम तेल के निर्यात पर प्रतिबंध जैसे घटनाओं से घरेलू कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। 2022 में खाद्य तेल की कीमतें 27% तक बढ़ गईं। उर्वरकों की कीमतों में भारी उछाल ने खेती की लागत को बढ़ा दिया। भारत यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर वार्ता कर रहा है। जबकि ये समझौते नए बाज़ार खोल सकते हैं, सस्ते विदेशी उत्पाद घरेलू बाज़ार में बाढ़ ला सकते हैं, जिससे भारत के किसान प्रभावित होंगे। न्यूजीलैंड से सस्ते डेयरी उत्पादों का आगमन भारत के 100 मिलियन डेयरी किसानों के लिए खतरा बन सकता है।कृषि एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसमें भारत अधिकतर आयात के मुकाबले अधिक निर्यात करता है—एफ टी ए से यह संतुलन बिगड़ सकता है। जलवायु परिवर्तन ने मानसून की अनियमितता, तापमान में उतार-चढ़ाव, और फसल चक्र में असंतुलन ला दिया है। इससे उत्पादन घटा और आयात की आवश्यकता बढ़ी। भारत की आंतरिक कृषि विपणन की कई समस्याएँ हैं जैसे असंगठित बाज़ार और मध्यवर्तियों की भूमिका-भारत का कृषि बाजार अब भी मध्यवर्ती एजेंटों के अधीन है जो किसानों को उनका उचित मूल्य नहीं मिलने देते। किसानों की आय पर सीधा असर पड़ता है। आर बी आई के अनुसार, उपभोक्ता द्वारा दिए गए 100 में से केवल 31-43 ही किसान तक पहुँचते हैं। कमजोर भंडारण और प्रसंस्करण व्यवस्था-शीत भंडारण और फूड प्रोसेसिंग में भारत अभी भी बहुत पीछे है। भारत को 40 मिलियन टन भंडारण की ज़रूरत है, जबकि उपलब्धता सिर्फ 32 मिलियन टन है। फल-सब्जियों जैसे शीघ्र नष्ट होने वाले उत्पादों का 30-40% बर्बाद हो जाता है। नीति अस्थिरता और एम एस पी का संकट-प्याज, चावल, और दालों पर अचानक निर्यात प्रतिबंध और MSP में बदलाव बाज़ार में भ्रम पैदा करते हैं।अचानक प्रतिबंधों से निर्यातकों को घाटा होता है, और किसान फसल पर न्यूनतम लाभ भी नहीं कमा पाते। ऋण की अनुपलब्धता और डिजिटल पहुँच की कमी- लघु और सीमांत किसान, जिनके पास ज़मानत या क्रेडिट स्कोर नहीं होता, उन्हें बैंक से ऋण नहीं मिल पाता। 71% गैर-संस्थागत ऋण सीमांत किसान लेते हैं। इ नाम जैसे प्लेटफॉर्म धीमी गति से चल रहे हैं, जिससे किसान सीधे खरीदार तक नहीं पहुँच पा रहे हैं। समाधान की दिशा में भारत के कई संभावित कदम हो सकत हैं। कृषि अवसंरचना में निवेश-कोल्ड स्टोरेज, फूड प्रोसेसिंग इकाइयाँ और लॉजिस्टिक्स में निवेश बढ़ाया जाए। निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये पी पी पी मॉडल अपनाया जाए। डिजिटल प्लेटफॉर्म को मज़बूत बनाना- इ नाम को ए पी एम सी मंडियों से जोड़कर वास्तविक समय की जानकारी दी जा सकती है। किसानों को डिजिटल साक्षरता प्रदान कर उनका बाज़ार पर नियंत्रण बढ़ाया जा सकता है। कृषि निर्यात में विविधता- जैविक उत्पाद, सुपरफूड्स, और मूल्य-वर्धित उत्पादों को बढ़ावा दिया जाए। वैश्विक मानकों के अनुरूप कृषि- ग्रीन एग्रीकल्चर, जल संरक्षण, और जैविक खेती को बढ़ावा देकर भारत अपने उत्पादों को यूरोपीय मानकों के अनुरूप बना सकता है। अंत में कह सकते हैं कि भारत के कृषि क्षेत्र को वैश्विक व्यापार परिवर्तनों के अनुरूप ढालने के लिये एक समग्र रणनीति की आवश्यकता है, जिसमें कृषि को केवल एक आजीविका नहीं, बल्कि एक व्यवसायिक उद्यम के रूप में देखा जाए। नीति-निर्माताओं को वैश्विक समझौतों पर हस्ताक्षर करते समय यह नहीं भूलना चाहिए कि देश के 100 मिलियन से अधिक लघु किसानों की सुरक्षा सर्वोपरि है। टिकाऊ कृषि, डिजिटलीकरण, अवसंरचना विकास, और बाजार सुधार ही वह रास्ता हैं, जिनसे भारत अपनी कृषि को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में एक मज़बूत खिलाड़ी बना सकता है।

 

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