भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां भारत में महिलाओं की भागीदारी अब केवल सामाजिक जिम्मेदारियों तक सीमित नहीं रही, बल्कि आर्थिक, राजनीतिक और तकनीकी क्षेत्रों में भी उनका सक्रिय योगदान तेजी से उभर कर सामने आ रहा है। हालांकि महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर (41.7%) अब भी पुरुषों (77.2%) और वैश्विक औसत (50%) से पीछे है, लेकिन पिछले 6 वर्षों में इसमें 18% की वृद्धि दर्शाती है कि परिवर्तन की गति तेज हो रही है। देश के समग्र विकास की दिशा में महिला सशक्तिकरण, महिला उद्यमिता, डिजिटल समावेशन और नीति निर्माण में भागीदारी जैसी पहलें उल्लेखनीय रही हैं। लेकिन इस प्रगति के साथ ही ढांचागत असमानताओं, लैंगिक पूर्वाग्रहों और सामाजिक चुनौतियों को दूर करना भी उतना ही आवश्यक है। आइये समझते हैं भारतीय महिलाओं की प्रगति की कहानी के बारे में। हाल के वर्षों में लड़कियों की उच्च शिक्षा में उपस्थिति लगातार बढ़ी है। 2021-22 में महिला नामांकन 2.07 करोड़ तक पहुंच गया जो कुल नामांकन का लगभग 50% है। स्टेम (विज्ञान, तकनीकी, इंजीनियरिंग और गणित) में महिलाओं की भागीदारी 42.57% तक पहुंच चुकी है (आयशी, 2022) – यह रूढ़िगत धारणाओं को तोड़ने का संकेत है। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और छात्रवृत्ति योजनाओं ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में अवसरों को अधिक समावेशी बना दिया है। भारत में "महिला कल्याण से महिला-नेतृत्व वाले विकास" की ओर केंद्रित नीति परिवर्तन हुआ है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत 10 करोड़ महिलाएं 9 मिलियन एस एच जी से जुड़ी हैं। स्टैंड-अप इंडिया योजना के तहत 84% ऋण महिला उद्यमियों को दिए गए। प्रधानमंत्री आवास योजना में मकान का स्वामित्व महिला या पति-पत्नी के संयुक्त नाम पर देना अनिवार्य किया गया है।महिलाएं अब रोजगार खोजने वाली से रोजगार देने वाली बन रही हैं। फाल्गुनी नायर, श्रद्धा शर्मा, उपासना ताकू जैसी महिलाएं नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हैं। सिडबी फंड का 10% हिस्सा महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स के लिए आरक्षित है।2024 में 39.2% बैंक खाते और 39.7% जमा राशि महिलाओं के पास हैं। महिला डीमैट खातों की संख्या 2021 से 2024 के बीच तीन गुना हो गई है। बैंक सखियों ने $40 मिलियन (2020) से अधिक का डिजिटल ट्रांजेक्शन प्रोसेस किया है। 750 फास्ट ट्रैक कोर्ट, 802 वन स्टॉप सेंटर, और 14,000+ महिला सहायता डेस्क स्थापित हैं। पोष कानून, मातृत्व लाभ अधिनियम जैसे प्रावधानों से कार्यस्थलों पर सुरक्षा और स्थायित्व बढ़ा है। 67,000 कॉमन सर्विस सेंटर अब महिला उद्यमियों द्वारा चलाए जा रहे हैं।डिजिटल रूप से सशक्त महिलाएं अब वैश्विक स्तर पर घर से ही कार्य कर पा रही हैं।गिग और फ्रीलांसिंग संस्कृति ने उन्हें लचीलापन प्रदान किया है। 15% भारतीय पायलट महिलाएं हैं – यह वैश्विक औसत से तीन गुना है।कमांडर प्रेरणा देवस्थली पहली महिला हैं जिन्होंने नौसेना के युद्धपोत की कमान संभाली। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने की राह पर हैं। आइये बात करते हैं महिला सशक्तिकरण के मार्ग आने वाली चुनौतियों की। एक सर्वे के अनुसार, महिलाएं प्रतिदिन 236 मिनट अवैतनिक कार्य करती हैं जबकि पुरुष सिर्फ 24 मिनट। कार्य के बाद घरेलू ज़िम्मेदारियों का दबाव उनकी उत्पादकता पर प्रभाव डालता है।ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों की आय महिलाओं से 51.3% अधिक है।81% महिलाएं अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं – बिना सामाजिक सुरक्षा या स्थायित्व के। एन एफ एच एस-5 के अनुसार, 29.3% विवाहित महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हुई हैं। 2022 में 4.4 लाख से अधिक अपराध महिलाओं के विरुद्ध दर्ज हुए। 18वीं लोकसभा में केवल 13.6% महिलाएं हैं। निफ्टी-500 कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं की हिस्सेदारी 17.6% है। ग्रामीण भारत की केवल 33% महिलाएं ही इंटरनेट का उपयोग करती हैं। मोबाइल फोन स्वामित्व में भी लैंगिक असमानता बनी हुई है (महिलाएं 54%)। 37% कंपनियां मातृत्व अवकाश नहीं देतीं। 17.5% ही चाइल्ड केयर सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं, जिससे महिलाएं करियर और परिवार में से एक चुनने को विवश हो जाती हैं। दूसरी ओर इन परेशानियों को दूर करने के लिए हम कई उपायों को अपना सकते हैं जैसे पी एम के वी वाई, संकल्प जैसी योजनाओं को स्थानीय आवश्यकताओं और रोजगार के साथ जोड़ा जाए। ग्रीन जॉब्स, हेल्थ केयर, डिजिटल सेवाएं उभरते क्षेत्र हैं।महिला उद्यमियों के लिए इनक्यूबेटर्स और नेटवर्क प्लेटफॉर्म की संख्या बढ़ाई जाए। डिजिटल इंडिया अभियान के तहत महिलाओं को लक्षित डिजिटल शिक्षा दी जाए। जी बी वी के खिलाफ कानूनों का सख्त क्रियान्वयन हो, महिला हेल्पलाइन और रिपोर्टिंग सिस्टम अधिक संवेदनशील बनाए जाएं। महिला आरक्षण विधेयक को जल्द लागू किया जाए और नेतृत्वकारी भूमिकाओं में महिलाओं को प्राथमिकता दी जाए। ग्राम पंचायत, ब्लॉक और ज़िला स्तर पर लिंग कार्य योजनाओं को संस्थागत बनाना, महिला सभाओं और एस एच जी नेटवर्क से प्राप्त इनपुट को एकीकृत किया जाना चाहिये। इन योजनाओं को महिलाओं के साथ मिलकर बनाया जाना चाहिये तथा वार्षिक विकास योजना चक्रों एवं वित्तपोषण में शामिल किया जाना चाहिये। प्राथमिकता अंतराल की पहचान करने के लिये एम ओ एस पी आई के सर्वे से डेटा का उपयोग किया जाना चाहिये। विकेंद्रीकृत, डेटा-संचालित लिंग नियोजन संदर्भ-विशिष्ट और प्रभावी हस्तक्षेप सुनिश्चित करता है। अंत में कह सकते हैं कि भारत के समग्र विकास की परिकल्पना तब तक अधूरी है जब तक महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में बराबरी से भाग नहीं लेंगी। जहां एक ओर नीति, शिक्षा और डिजिटल समावेशन के क्षेत्रों में महिला सशक्तिकरण की उल्लेखनीय प्रगति हुई है, वहीं दूसरी ओर लैंगिक वेतन असमानता, डिजिटल पहुंच की कमी और सामाजिक रूढ़ियों जैसी बाधाएं अभी भी मौजूद हैं। यदि भारत महिलाओं की पूर्ण आर्थिक क्षमता को उजागर कर ले, तो यह न केवल जी डी पी वृद्धि को गति देगा, बल्कि सामाजिक विकास की दिशा में भी एक लंबी छलांग होगी।