भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
पश्चिम बंगाल इन दिनों वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025 के विरोध में उभरे जनआक्रोश से जूझ रहा है। मुर्शिदाबाद जिले में विरोध-प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में तीन लोगों की मौत और कई के घायल होने के बाद प्रशासन ने हालात काबू में करने के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती का सहारा लिया है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि ज़रूरत पड़ने पर अन्य जिलों में भी केंद्रीय सुरक्षा बलों की सहायता ली जा सकती है। आइये समझते हैं कि आखिर क्योंकर वक्फ़ अधिनियम के खिलाफ आवाज़ उठी। वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025 के तहत वक़्फ़ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन, संचालन और निगरानी में केंद्र सरकार की भूमिका को व्यापक बनाया गया है। इससे अल्पसंख्यक समुदायों, विशेषकर मुस्लिम समाज में आशंका पैदा हो गई कि उनकी धार्मिक संपत्तियों पर नियंत्रण केंद्र की मंशा हो सकती है।राज्य में इस अधिनियम के खिलाफ कई दिनों से विरोध प्रदर्शन चल रहे थे, लेकिन बीते सप्ताह रघुनाथपुर और फिर मुर्शिदाबाद के सुती व समसेरगंज इलाकों में प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया। शनिवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुर्शिदाबाद में केंद्रीय बलों की तत्काल तैनाती का आदेश दिया। न्यायमूर्ति सौमेन सेन और न्यायमूर्ति राजा बसु चौधरी की पीठ ने कहा कि ज़रूरत पड़ने पर राज्य के अन्य हिस्सों में भी केंद्रीय बल तैनात किए जा सकते हैं। केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत और डीजीपी राजीव कुमार से हालात की समीक्षा की। उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार के अनुरोध पर मुर्शिदाबाद में 300 बीएसएफ जवानों के अलावा पांच अतिरिक्त कंपनियों की तैनाती की जा चुकी है। यह सच है कि सुती इलाके में शुक्रवार को बीएसएफ और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़प में 16 वर्षीय इजाज अहमद गोली लगने से गंभीर रूप से घायल हो गया था। शनिवार को उसकी मौत हो गई। इसके अलावा समसेरगंज के धुलियान क्षेत्र में शनिवार सुबह 74 वर्षीय हरगोबिंदो दास और उनके 40 वर्षीय बेटे चंदन दास की हत्या कर दी गई। पुलिस के अनुसार, इन दोनों की हत्या एक समूह द्वारा की गई जिसने मिलनमंदिर इलाके में घुसकर हमला किया। आइये समझते हैं कि घटनाक्रम कैसे हिंसक हुआ। शुक्रवार दोपहर प्रदर्शनकारियों ने वक़्फ़ अधिनियम को रद्द करने की मांग करते हुए नेशनल हाइवे-12 को जाम किया। इसके बाद उत्तेजित भीड़ ने सुती के काशीपुर में दो बसों और दो एंबुलेंस को आग के हवाले कर दिया। समसेरगंज में एक ट्रैफिक पोस्ट और दो मोटरसाइकिलों को भी फूंक दिया गया। शनिवार सुबह जब बीएसएफ ने समसेरगंज में भीड़ को नियंत्रित करने का प्रयास किया, तो स्थिति और बिगड़ गई। भीड़ पर काबू पाने के लिए जवानों को गोली चलानी पड़ी, जिसमें 12 वर्षीय हसन शेख और 21 वर्षीय मुद्दीन शेख घायल हुए। बीएसएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, जवानों पर छतों से गोलियां चलाई गईं और पेट्रोल बम फेंके गए। अधिकारी ने कहा, “हमारे पास आत्मरक्षा के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। भीड़ अत्यधिक हिंसक हो चुकी थी और जवानों की जान खतरे में थी।” हालांकि, कुछ जिला अधिकारियों ने यह आरोप लगाया कि बीएसएफ की गोलीबारी ने हालात को और बिगाड़ा। दूसरी ओर यह भी सच है कि तृणमूल कांग्रेस सरकार की भूमिका पर भी अब सवाल उठने लगे हैं। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि पुलिस की प्रारंभिक निष्क्रियता के कारण हिंसा को समय रहते नहीं रोका जा सका। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को सोशल मीडिया पर बयान जारी कर कहा कि उनकी सरकार इस कानून के खिलाफ है और उन्होंने इसे राज्य में लागू नहीं किया है। उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह राज्य में सांप्रदायिक तनाव भड़काने की कोशिश कर रही है। उन्होंने लिखा, “यह अधिनियम केंद्र सरकार का है, हमने इसे पास नहीं किया है। केंद्र से जवाब मांगना चाहिए, ना कि बंगाल को दोष देना चाहिए।” ममता ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए कहा कि कुछ राजनीतिक ताकतें राज्य को अस्थिर करने की कोशिश कर रही हैं। भाजपा प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि “बंगाल में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के चलते कानून-व्यवस्था ध्वस्त हो गई है।” उन्होंने ममता सरकार को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया। जवाब में टीएमसी सांसद खलीलुर रहमान ने कहा, “यहां हर धर्म और समुदाय के लोग भाईचारे के साथ रहते हैं। यह हिंसा किसी संगठित नेतृत्व के तहत नहीं, बल्कि कुछ किशोरों द्वारा की गई थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन इसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश न की जाए।” डीजीपी राजीव कुमार ने मुर्शिदाबाद पहुंचकर हालात का जायजा लिया और कहा, “कानून हाथ में लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी। पुलिस कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए हर संभव कदम उठाएगी।” उन्होंने नागरिकों से पुलिस प्रशासन के साथ सहयोग करने की अपील की और हिंसा से दूर रहने को कहा। अंत में कह सकते हैं कि वक़्फ़ संशोधन अधिनियम को लेकर पश्चिम बंगाल में भड़की हिंसा एक गंभीर सामाजिक और प्रशासनिक चुनौती के रूप में सामने आई है। यह घटना यह भी दर्शाती है कि यदि संवेदनशील विषयों पर संवाद और पारदर्शिता नहीं रखी गई, तो न केवल लोगों की भावनाएं भड़क सकती हैं बल्कि जान-माल की हानि भी हो सकती है। ममता सरकार को जहां जनता का भरोसा फिर से जीतने के लिए ठोस और समयबद्ध कदम उठाने होंगे, वहीं केंद्र सरकार को भी यह समझना होगा कि धार्मिक-संवेदनशील कानूनों का कार्यान्वयन बिना समुचित संवाद के नहीं किया जा सकता। स्थिति को स्थिरता देने के लिए सख्त कानून व्यवस्था, पारदर्शी संवाद और सभी पक्षों की जिम्मेदारीपूर्ण भूमिका अनिवार्य है।