भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां इस में कोई दो राय नहीं है कि अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की प्रगति न केवल तकनीकी कौशल का प्रतीक है, बल्कि यह वैश्विक मंच पर उसकी वैज्ञानिक और रणनीतिक क्षमताओं का भी प्रमाण है। 20वीं सदी में जब भारत ने अपने पहले उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ को कक्षा में स्थापित किया था, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यही देश एक दिन चंद्रमा और सूर्य के रहस्यों की कुंजी खोलेगा। वर्ष 2024 में इसरो द्वारा लॉन्च किया गया एक्सपोसेट मिशन और गगनयान की तैयारी इस दिशा में भारत के बढ़ते कदमों का सजीव उदाहरण हैं। आइये बात करते हैं इसरो के उदय और इसकी वैश्विक प्रतिस्पर्धा तक के बारे में। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना 1969 में हुई थी। प्रारंभिक वर्षों में सीमित संसाधनों के बावजूद इसरो ने न केवल आत्मनिर्भरता की मिसाल कायम की, बल्कि विदेशी उपग्रहों को कम लागत में प्रक्षेपित कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा प्राप्त की।पी एस एल वी और जी एस एल वी जैसे लॉन्च वाहनों की सफलता, और फिर चंद्रयान-1, मंगलयान, चंद्रयान-2 और 2023 में चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक लैंडिंग ने भारत को अंतरिक्ष महाशक्तियों की श्रेणी में खड़ा किया। एक्सपोसैट मिशन 2024 के जरिए भारत ने एक्स-रे में प्रवेश किया। 1 जनवरी 2024 को इसरो ने पी एस एल वी -सी58/एक्सपोसैट मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। यह मिशन भारत का पहला एक्स-रे पोलरिमेट्री सैटेलाइट है, जो अंतरिक्ष में उच्च-ऊर्जा खगोलीय स्रोतों का अध्ययन करता है। एक्सपोसैट की अपनी कई खूबीयां हैं। पोलिक्स उपकरण, जो टी आई एफ आर द्वारा विकसित है, एक्स-रे किरणों के ध्रुवण का विश्लेषण करता है। एक्सपैक्ट, इसरो द्वारा निर्मित, समय के साथ एक्स-रे स्पेक्ट्रा का अवलोकन करता है। यह मिशन भारत को खगोल भौतिकी की उन्नत श्रेणी में शामिल करता है, जिसमें अब तक केवल अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे विकसित देश ही अग्रणी थे। 2023 में भारत ने चंद्रयान-3 मिशन के माध्यम से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग कर इतिहास रच दिया। यह क्षेत्र अब तक किसी भी देश द्वारा नहीं छुआ गया था। इसरो दुनिया की चौथी अंतरिक्ष एजेंसी बनी जिसने चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग की। विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा की सतह पर भूगर्भीय तत्वों का अध्ययन कर वैज्ञानिक समुदाय को अमूल्य डेटा दिया। यह मिशन न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से सफल रहा, बल्कि भारत की अंतरिक्ष डिप्लोमेसी को भी नई ऊँचाइयाँ दीं। भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन गगनयान 2025 में प्रस्तावित है, जिसकी तैयारी जोरों पर है। इसका उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को निम्न-पृथ्वी कक्षा में भेजना है। 3 भारतीय अंतरिक्ष यात्री 3 दिनों तक अंतरिक्ष में रहेंगे।इसरो ने कई तकनीकी परीक्षण जैसे टी वी-डी1 टेस्ट 2023 में सफलतापूर्वक पूरे कर लिए हैं।हाल और डी आर डी ओ जैसे भारतीय संस्थानों की भागीदारी से यह पूरी तरह स्वदेशी मिशन बनने जा रहा है। गगनयान भारत को उन चुनिंदा देशों की कतार में ला खड़ा करेगा जिनके पास मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान की क्षमता है। भारत सरकार ने 2023 में नई अंतरिक्ष नीति की घोषणा की, जिसका उद्देश्य निजी कंपनियों और स्टार्टअप्स को अंतरिक्ष क्षेत्र में व्यापक भागीदारी देना है। इन स्पेस के माध्यम से निजी कंपनियों को लॉन्च सुविधा और डेटा शेयरिंग की अनुमति।डेटा, संचार, रिमोट सेंसिंग जैसे क्षेत्रों में वाणिज्यिक अवसरों का द्वार खुला। स्टार्टअप्स को लॉन्च वाहन, उपग्रह निर्माण और पृथ्वी अवलोकन परियोजनाओं में भाग लेने की स्वीकृति। इस नीति से भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र महज अनुसंधान केंद्रित नहीं रहेगा, बल्कि वाणिज्यिक और रणनीतिक रूप से भी मज़बूत होगा। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का एक पक्ष उसकी सुरक्षा नीति से भी जुड़ चुका है। 2019 में ए सैट परीक्षण कर भारत ने यह संदेश दिया कि वह किसी भी अंतरिक्षीय खतरे का जवाब देने में सक्षम है। संचार उपग्रहों से लेकर जासूसी सैटेलाइट तक, भारत ने अपने सशस्त्र बलों को अंतरिक्ष आधारित क्षमताओं से लैस किया है।उत्तराखंड और पूर्वोत्तर की सीमाओं पर दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखने में यह क्षमता महत्वपूर्ण है।भारत ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को "स्पेस डिप्लोमेसी" का साधन बनाया है। सार्क सैटेलाइट, भूटानसैट जैसे उदाहरणों से भारत ने पड़ोसी देशों के साथ तकनीकी सहयोग को बढ़ावा दिया। इसरो ने फ्रांस, अमेरिका, रूस, जापान और इस्राइल जैसी अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ साझा मिशनों में भाग लिया।अर्टेमिस पर हस्ताक्षर करने वाला भारत, चंद्रमा पर संयुक्त खोज में भी सहयोग करेगा। इस क्षेत्र में कई चुनौतियां हैं तो भविष्य में उनका समाधान भी है। स्पेस एक्स, बल्यू ओरीजिन जैसे निजी खिलाड़ी बाजार में बदलाव ला रहे हैं। अंतरिक्ष मलबे की समस्या, सैटेलाइट साइबर सुरक्षा और वैधानिक तंत्र की पारदर्शिता।अत्याधुनिक तकनीकों के साथ समन्वय की आवश्यकता। इसके बावजूद भारत की रणनीति स्पष्ट है: स्वदेशी तकनीक के दम पर वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ना। अंत में कह सकते हैं कि भारत की अंतरिक्ष यात्रा केवल वैज्ञानिक उपलब्धियों की गाथा नहीं है, बल्कि यह उसकी वैश्विक महत्वाकांक्षा, तकनीकी आत्मनिर्भरता और रणनीतिक सूझबूझ का प्रमाण भी है। एक्सपोसेट मिशन, चंद्रयान-3 की सफलता, गगनयान की तैयारियाँ, और नई अंतरिक्ष नीति यह दर्शाती हैं कि भारत 21वीं सदी के अंतरिक्ष युग में न केवल भागीदार है, बल्कि नेतृत्वकर्ता बनने की ओर बढ़ चुका है।भारत अब अंतरिक्ष में न केवल मौजूद है, बल्कि निर्णायक भूमिका निभाने को तैयार है।