कनाडा के आम चुनाव में एक बार फिर लिबरल पार्टी ने बहुमत की ओर निर्णायक बढ़त बना ली है, जिससे संकेत मिल रहे हैं कि देश में अगली सरकार भी उसी पार्टी की होगी। प्रधानमंत्री पद के दावेदार कार्नी को जनमत का व्यापक समर्थन मिला है, जबकि विपक्षी दलों को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ रहा है।
रुझानों के अनुसार, लिबरल पार्टी ने संसद में स्पष्ट बहुमत के लिए आवश्यक सीटों के आंकड़े को पार करने की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ाए हैं। वहीं, पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की लोकप्रियता में गिरावट के बाद कार्नी को पार्टी के नेतृत्व में लाया गया था, जो अब उनके लिए कारगर सिद्ध होता दिख रहा है।
सबसे बड़ी राजनीतिक हलचल तब देखने को मिली जब न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) के नेता और खालिस्तानी विचारधारा से जुड़े माने जाने वाले जगमीत सिंह अपनी परंपरागत सीट से चुनाव हार गए। जगमीत की हार को भारत-कनाडा संबंधों के संदर्भ में अहम माना जा रहा है, क्योंकि उनके नेतृत्व में NDP कई बार भारत विरोधी रुख अपना चुकी थी।
विश्लेषकों के अनुसार, कनाडाई मतदाताओं ने इस बार विकास, स्वास्थ्य सेवाएं, आवास और रोजगार जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दी। कट्टरपंथी एजेंडों और विभाजनकारी राजनीति को लोगों ने नकारते हुए मुख्यधारा की राजनीति को समर्थन दिया।
कार्नी सरकार के दोबारा सत्ता में लौटने से भारत-कनाडा संबंधों में भी नई उम्मीदें जगी हैं। माना जा रहा है कि नई सरकार भारत के साथ व्यापार, शिक्षा और आप्रवासन जैसे मुद्दों पर संतुलित और सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपना सकती है।
विदेश नीति के जानकारों का मानना है कि जगमीत सिंह की हार और कट्टरपंथी ताकतों का सीमित होना, भारत के लिए एक सकारात्मक संकेत है, खासकर ऐसे समय में जब दोनों देशों के बीच हाल ही में तनावपूर्ण घटनाक्रम देखने को मिले थे।