रूस और यूक्रेन के बीच दो वर्षों से चल रहे युद्ध को लेकर एक बड़ा राजनीतिक संकेत सामने आया है। अमेरिका, जो अब तक इस संघर्ष में यूक्रेन का प्रमुख समर्थक और वैश्विक मंचों पर मध्यस्थता की भूमिका निभाने का इच्छुक रहा है, अब पीछे हटता नजर आ रहा है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और 2024 के चुनावी मैदान में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दिए एक बयान में साफ कर दिया कि अगर वे दोबारा सत्ता में आते हैं, तो अमेरिका इस युद्ध में किसी भी प्रकार की सीधी मध्यस्थता नहीं करेगा।
ट्रंप ने कहा कि "यह यूरोप की लड़ाई है और यूरोप को ही इसे हल करना चाहिए। अमेरिका की भूमिका सिर्फ अपने हितों की रक्षा तक सीमित रहनी चाहिए, न कि दूसरों के युद्ध में फंसने की।" उनके इस बयान को अमेरिकी विदेश नीति में संभावित बदलाव के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की यह रणनीति 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का ही विस्तार है, जिसमें वैश्विक मामलों में अमेरिकी हस्तक्षेप को सीमित किया जाएगा। ट्रंप पहले भी नाटो देशों पर यह आरोप लगा चुके हैं कि वे अमेरिका की सैन्य सहायता पर निर्भर रहते हैं, जबकि खुद अपनी सुरक्षा में पर्याप्त निवेश नहीं करते।
इस बयान के बाद यूक्रेन को अमेरिकी समर्थन को लेकर चिंता सताने लगी है, खासकर तब जब युद्ध के मैदान में उसे रूस के भारी हमलों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं रूस इस रुख को अपनी कूटनीतिक जीत के रूप में देख रहा है।
यदि ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बनते हैं और अपने इस रुख पर कायम रहते हैं, तो यह रूस-यूक्रेन युद्ध की दिशा और वैश्विक संतुलन दोनों को प्रभावित कर सकता है।