ब्रिटेन की राजनीति और नीति-निर्माण में हाल के दिनों में एक ऐसा मुद्दा उभरा है, जिसने लाखों मुस्लिम नागरिकों की चिंता बढ़ा दी है। एक सनसनीखेज रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन सरकार कुछ परिस्थितियों में नागरिकता छीनने की शक्तियों का विस्तार कर सकती है। यदि ऐसा होता है, तो इसका असर केवल ब्रिटिश-पैदाइशी नागरिकों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि उन लोगों पर भी पड़ेगा जिनकी जड़ें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अन्य देशों से जुड़ी हैं। इस आशंका ने खासतौर पर भारतीय मूल के मुसलमानों को असमंजस और डर में डाल दिया है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद से जुड़े मामलों या “राज्य के खिलाफ गतिविधियों” के नाम पर सरकार नागरिकता रद्द करने के नियमों को और सख्त बना सकती है। आलोचकों का कहना है कि ये प्रावधान असमान रूप से मुस्लिम समुदाय को निशाना बना सकते हैं, क्योंकि पहले भी ऐसे मामलों में अल्पसंख्यकों पर ज्यादा सख्ती देखी गई है। मानवाधिकार संगठनों का तर्क है कि नागरिकता किसी व्यक्ति की पहचान और अधिकारों की बुनियाद होती है, और उसे छीनना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
भारतीय मूल के मुसलमानों की चिंता इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि बड़ी संख्या में लोग दोहरी विरासत के साथ ब्रिटेन में रह रहे हैं। कई परिवार दशकों पहले भारत से ब्रिटेन गए थे और अब उनकी दूसरी या तीसरी पीढ़ी वहां बस चुकी है। अगर नागरिकता छीनी जाती है, तो सवाल यह उठता है कि ऐसे लोग कहां जाएंगे? भारत लौटने की स्थिति में भी उन्हें कानूनी, सामाजिक और पहचान से जुड़े गंभीर संकटों का सामना करना पड़ सकता है।
इस मुद्दे ने ब्रिटेन के भीतर भी राजनीतिक बहस को तेज कर दिया है। सरकार समर्थकों का कहना है कि सख्त कानून देश की सुरक्षा के लिए जरूरी हैं, जबकि विपक्ष और नागरिक अधिकार समूह इसे भेदभावपूर्ण नीति बता रहे हैं। उनका आरोप है कि “राष्ट्रीय सुरक्षा” की आड़ में एक खास समुदाय को डराने और हाशिये पर धकेलने की कोशिश की जा रही है। कई कानूनी विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि नागरिकता छीनने की प्रक्रिया अगर पारदर्शी और न्यायसंगत नहीं हुई, तो यह अदालतों में बड़े विवाद का कारण बन सकती है।
भारतीय समुदाय के संगठनों ने भी इस पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि ब्रिटेन जैसे लोकतांत्रिक देश में कानून का इस्तेमाल डर पैदा करने के औजार के रूप में नहीं होना चाहिए। वे चाहते हैं कि भारत सरकार भी इस मुद्दे पर नजर रखे, ताकि किसी भी भारतीय मूल के व्यक्ति के अधिकारों का हनन न हो।
कुल मिलाकर, यह रिपोर्ट सिर्फ एक देश की आंतरिक नीति का सवाल नहीं है, बल्कि यह नागरिकता, पहचान और मानवाधिकार जैसे मूलभूत मुद्दों को सामने लाती है। अगर आशंकाएं सच साबित होती हैं, तो ब्रिटेन में रहने वाले लाखों मुसलमानों, खासकर भारतीय मूल के लोगों के लिए आने वाला समय और भी अनिश्चित हो सकता है। यही वजह है कि इस मुद्दे पर वैश्विक स्तर पर गंभीर बहस और सतर्क निगरानी की जरूरत महसूस की जा रही है।