अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एक बार फिर अपने बयानों और प्रस्तावों को लेकर वैश्विक राजनीति में चर्चा के केंद्र में हैं। इस बार ट्रम्प ने दुनिया के पांच सबसे ताकतवर देशों का नया समूह बनाने का संकेत दिया है, जिसे वह मौजूदा G7 की जगह “C5” के रूप में देख रहे हैं। इस प्रस्तावित समूह में भारत, रूस, चीन, अमेरिका और एक अन्य प्रमुख शक्ति को शामिल करने की बात कही जा रही है। ट्रम्प के इस विचार को वैश्विक शक्ति संतुलन में संभावित बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है।
ट्रम्प का मानना है कि वर्तमान वैश्विक मंच, विशेषकर G7, अब दुनिया की वास्तविक ताकतों का सही प्रतिनिधित्व नहीं करता। उनके अनुसार, आर्थिक और रणनीतिक शक्ति का केंद्र तेजी से बदल रहा है और ऐसे में कुछ चुनिंदा देश ही वैश्विक फैसलों को प्रभावी ढंग से दिशा दे सकते हैं। ट्रम्प पहले भी कई बार यह कह चुके हैं कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं जमीनी हकीकत से कटती जा रही हैं और उन्हें नए सिरे से ढालने की जरूरत है।
प्रस्तावित C5 समूह में भारत की संभावित भूमिका को लेकर खास चर्चा हो रही है। भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, रणनीतिक भू-राजनीतिक स्थिति और वैश्विक कूटनीति में सक्रिय भूमिका को देखते हुए इसे एक स्वाभाविक दावेदार माना जा रहा है। हाल के वर्षों में भारत ने क्वाड, जी-20 और ब्रिक्स जैसे मंचों पर अपनी प्रभावी मौजूदगी दर्ज कराई है, जिससे उसकी वैश्विक स्वीकार्यता और बढ़ी है।
रूस और चीन को इस समूह में शामिल करने का विचार भी राजनीतिक दृष्टि से बेहद अहम माना जा रहा है। एक ओर अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा है, तो दूसरी ओर रूस के साथ पश्चिमी देशों के रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं। ऐसे में ट्रम्प का यह प्रस्ताव पारंपरिक गठबंधनों से अलग सोच को दर्शाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रम्प सत्ता में आते हैं तो वह “व्यावहारिक शक्ति संतुलन” के आधार पर नई वैश्विक व्यवस्था को आगे बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं।
G7 में फिलहाल अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और कनाडा शामिल हैं। ट्रम्प पहले भी G7 की संरचना और उपयोगिता पर सवाल उठाते रहे हैं। उनका तर्क है कि जिन देशों की आबादी, सैन्य शक्ति और आर्थिक प्रभाव सबसे अधिक है, उन्हें ही वैश्विक निर्णय प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका मिलनी चाहिए।
हालांकि, ट्रम्प के इस प्रस्ताव को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि भारत, चीन और रूस जैसे देशों को एक ही मंच पर समान रणनीतिक एजेंडे के साथ लाना आसान नहीं होगा। इनके बीच सीमा विवाद, भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और अलग-अलग हित मौजूद हैं। इसके बावजूद, यह विचार इस बात का संकेत देता है कि आने वाले समय में वैश्विक कूटनीति में बड़े बदलाव संभव हैं।
कुल मिलाकर, ट्रम्प का C5 का विचार अभी एक राजनीतिक प्रस्ताव भर है, लेकिन यह साफ करता है कि यदि वह दोबारा सत्ता में आते हैं, तो वैश्विक शक्ति संरचना और अंतरराष्ट्रीय मंचों की भूमिका पर गंभीर पुनर्विचार हो सकता है। दुनिया अब इस बात पर नजर रखे हुए है कि यह विचार महज बयान तक सीमित रहता है या भविष्य की किसी नई वैश्विक व्यवस्था की नींव बनता है।