क्रीमिया को लेकर अमेरिका और यूक्रेन के बीच हाल के दिनों में बढ़ती तनातनी एक नए भू-राजनीतिक तनाव की ओर इशारा कर रही है। यूक्रेन, जो 2014 से रूस के कब्जे वाले क्रीमिया को पुनः प्राप्त करने की रणनीति पर काम कर रहा है, अब अमेरिका से खुला और निर्णायक समर्थन मांग रहा है। वहीं, अमेरिका की कूटनीतिक चालें इस मुद्दे पर नई बहस को जन्म दे रही हैं।
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने हाल ही में कहा कि “क्रीमिया को वापस लिए बिना यूक्रेन की संप्रभुता अधूरी है।” इस बयान के तुरंत बाद अमेरिकी रक्षा अधिकारियों ने संकेत दिए कि यदि यूक्रेन को सैन्य रूप से क्रीमिया में बढ़त लेनी है, तो उसे और अधिक हथियारों की ज़रूरत होगी। इसके साथ ही वाशिंगटन की नीति में क्रीमिया को लेकर पहले की तुलना में सख़्ती साफ़ देखी जा रही है।
हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम में रूस चुप नहीं है। रूस के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका की इन टिप्पणियों को उकसाने वाली कार्रवाई बताया है और चेतावनी दी है कि “क्रीमिया रूस का अभिन्न अंग है, और इस पर किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई का कड़ा जवाब दिया जाएगा।” रूस के इस रुख को ‘धैर्य से तमाशा देखने’ की नीति के तौर पर भी देखा जा रहा है—जहां वह अमेरिका और यूक्रेन के बीच दूरी को अपनी कूटनीतिक जीत मान रहा है।
वास्तव में, अमेरिका और यूक्रेन की क्रीमिया नीति में स्पष्ट मतभेद उभरते दिख रहे हैं। अमेरिका कूटनीतिक और आर्थिक दबाव बढ़ाकर रूस को झुकाना चाहता है, जबकि यूक्रेन सैन्य कार्रवाई के ज़रिए क्रीमिया को वापस लेने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इससे दोनों देशों की रणनीति में असंतुलन दिख रहा है, जो रूस को मनोवैज्ञानिक लाभ दे सकता है।
विश्लेषकों का मानना है कि यदि अमेरिका और यूक्रेन क्रीमिया को लेकर एकजुट रणनीति नहीं बनाते, तो यह मुद्दा न केवल यूक्रेन की संप्रभुता के लिए बल्कि यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था के लिए भी एक दीर्घकालिक चुनौती बन सकता है।