मध्य पूर्व में तनाव एक बार फिर चरम पर पहुंच गया है। इजरायल ने बीती रात ईरान के प्रमुख परमाणु प्रतिष्ठानों पर बड़ा सैन्य हमला किया है। यह हमला ऐसे समय में हुआ है जब पहले से ही दोनों देशों के बीच रिश्ते बेहद तल्ख चल रहे थे। इजरायली मीडिया के मुताबिक, इस हमले का निशाना मुख्य रूप से ईरान के इस्फहान और नातांज़ जैसे परमाणु केंद्र बने।
हालांकि ईरान की ओर से आधिकारिक पुष्टि की प्रतीक्षा की जा रही है, लेकिन सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो और रिपोर्ट्स में कई विस्फोटों की आवाजें और धुएं के गुबार देखे गए हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हमला बेहद सटीक और तेज़ था, जिससे ईरान के हवाई सुरक्षा तंत्र को सक्रिय होना पड़ा।
इस हमले के बाद अमेरिका ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए किसी भी प्रकार की संलिप्तता से इनकार किया है। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा, “यह इजरायल का स्वतंत्र फैसला है, अमेरिका का इस ऑपरेशन से कोई लेना-देना नहीं है।” अमेरिका की इस प्रतिक्रिया को रणनीतिक दूरी बनाए रखने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, जिससे वह खुद को युद्ध में सीधे तौर पर शामिल नहीं दिखाना चाहता।
विशेषज्ञों के मुताबिक, यह हमला केवल सैन्य नहीं बल्कि रणनीतिक और राजनीतिक संकेत भी देता है। इजरायल लगातार यह आशंका जताता रहा है कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित कर रहा है, जिससे पूरे क्षेत्र की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) पहले भी ईरान की परमाणु गतिविधियों को लेकर चिंता जाहिर कर चुके हैं, लेकिन इस तरह के सीधे सैन्य हस्तक्षेप की आशंका कम ही जताई गई थी। अब जब हमला हो चुका है, तो इससे न केवल ईरान-इजरायल के बीच सीधा युद्ध छिड़ने का खतरा है, बल्कि पूरी खाड़ी क्षेत्र में अस्थिरता और तेल बाजार में उथल-पुथल बढ़ सकती है।
ईरान की ओर से इस हमले पर अब तक कोई विस्तृत बयान नहीं आया है, लेकिन अटकलें लगाई जा रही हैं कि तेहरान इसका जवाब सैन्य कार्रवाई के ज़रिए दे सकता है। ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के वरिष्ठ कमांडर ने एक बयान में कहा, “हम अपने दुश्मनों को जवाब देना जानते हैं। समय आने पर करारा पलटवार होगा।”
इस घटनाक्रम के बीच दुनिया भर की निगाहें अब ईरान की प्रतिक्रिया और संयुक्त राष्ट्र की अगली कार्रवाई पर टिकी हुई हैं।