राजद के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को मंगलवार, 24 जून 2025 को 13वीं बार राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्विरोध चुना गया। इस बार केवल उनका ही नामांकन हुआ और किसी अन्य ने उम्मीदवारी तक दाखिल नहीं की—इसलिए उन्हें बिना किसी चुनाव के यह पद सौंपा गया।
इस प्रक्रिया की पुष्टि पार्टी ने आधिकारिक रूप से की। राष्ट्रीय निर्वाचन अधिकारी रामचंद्र पूर्वे ने बताया कि नामांकन जमा करने की अंतिम तिथि तक कोई अन्य उम्मीदवार नहीं आया, और लालू प्रसाद के नामांकन में कोई खामी नहीं पाई गई। इससे निष्कर्ष निकला कि वे निर्विरोध निर्वाचित हुए । उद्घोषणा के बाद उद्घाटन पत्र उन्हें 5 जुलाई को पटना के बापू सभागार में आयोजित राष्ट्रीय परिषद की बैठक में सौंपा जाएगा ।
लालू प्रसाद यादव की उम्र अब 78 वर्ष है, और स्वास्थ्य भी चुनौतियों से जूझ रहा है। बावजूद इसके, राजद इस रणनीति को इसलिए महत्त्वपूर्ण मानता है कि विधानसभा चुनाव के समय संगठनात्मक स्थिरता बनी रहे, विशेष रूप से उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी—बड़े बेटे तेजस्वी यादव—के नेतृत्व में । अध्यक्ष पद पर लालू की मौजूदगी से पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने और वोट बैंक को सुरक्षित रखने में मदद मिलती है ।
विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम राजद के अंदर संतुलन बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा है। तेजस्वी यादव जहां चुनाव प्रचार में पार्टी का चेहरा हैं, वहीं संगठनात्मक और प्रतीकात्मक नेतृत्व लालू के पास बना रहेगा। इससे गुटबाजी और विभाजन की संभावना कम होती है ।
हालांकि, बिहार की सत्ताधारी गठबंधन—JD(U) और BJP—ने इस निर्विरोध चुनाव की आलोचना भी की। JD(U) ने आरोप लगाया कि एक “दोषपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया” में एक दंडित व्यक्ति को बार‑बार अध्यक्ष चुनना—इससे पता चलता है कि राजद नैतिक और संवैधानिक मूल्यों की अनदेखी कर रहा है । NDA नेताओं ने भी इसे राजद में पारिवारिक वंशवाद का उदाहरण बताते हुए, “एक ही परिवार द्वारा नियंत्रण” की बात उठाई ।
राजद के पास अब 1.10 करोड़ से अधिक पार्टी सदस्य और देश के 27 राज्यों में सक्रिय इकाइयाँ हैं । चुनाव पूर्व अध्यक्ष पद पर लालू की पुनर्नियुक्ति पार्टी को एक स्थिर नेतृत्व ढांचे के रूप में संगठित रखेगी, जिससे आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन को मजबूती मिलेगी ।
संक्षेप में:
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24 जून 2025 को लालू प्रसाद यादव को 13वीं बार राजद का राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्विरोध चुना गया।
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5 जुलाई को पटना में राष्ट्रीय परिषद की बैठक में उनका आधिकारिक शपथ ग्रहण होना है।
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यह नियुक्ति तेजस्वी यादव के चुनावी नेतृत्व और लालू की प्रतीकात्मक छवि के बीच संतुलन बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा है।
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विपक्ष ने इसे पारिवारिक नियंत्रण और लोकतांत्रिक असमान्यता के रूप में देखा है।