ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो में 17वें BRICS शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्विक दक्षिण के प्रतिनिधित्व की आवाज़ बुलंद की। उन्होंने कहा कि 20वीं सदी के समय बनी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं—संयुक्त राष्ट्र, IMF, WTO जैसे प्लेटफॉर्म—में आज भी दुनिया की दो-तिहाई आबादी का उचित प्रतिनिधित्व नहीं है ।
📉 "दोहरे मानदंडों पर सेलाब"
मोदी ने साफ शब्दों में कहा कि ग्लोबल साउथ को अक्सर द्वि-मानक नीति के तहत उपेक्षित किया गया है। चाहे वह विकास परियोजनाओं का क्रियान्वयन हो, संसाधनों का वितरण, या सुरक्षा से जुड़ी निर्णय प्रक्रिया—हकदारों को प्राथमिकता नहीं मिली। उनके शब्दों में, “जलवायु फाइनेंस, सतत विकास और तकनीकी पहुंच में ग्लोबल साउथ को सिर्फ दिखावटी सहयोग मिला है” ।
📶 "सिम कार्ड है लेकिन नेटवर्क नहीं"
मोदी ने यह उपमात्मक शब्द अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रयोग करते हुए कहा: वैश्विक संस्थाएं तब तक नहीं चल सकतीं, जब तक उनमें ग्लोबल साउथ की हिस्सेदारी और आवाज़ शामिल नहीं होगी। ये संस्थाएं वर्तमान डिजिटल युग के अभिन्न मापन से वंचित दिखती हैं ।
⚙️ "20वीं सदी के टाइपराइटर से …21वीं सदी का सॉफ्टवेयर नहीं चलेगा"
ब्रिक्स विस्तार पर तंज कसते हुए पीएम ने इन्हीं संस्थाओं की तकनीकी और संरचनात्मक सुस्ती पर भी गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, "जब AI जैसे नवीनतम टेक्नोलॉजी हर हफ्ते अपडेट होती है, तो ये संस्थाएं 80 साल से टिकी कैसे रहें?" ।
🌍 "बहु-ध्रुवीय और समावेशी विश्व व्यवस्था ज़रूरी"
मोदी ने BRICS के बढ़ते विस्तार को सकारात्मक दृष्टि से देखा। उनका मानना था कि BRICS जैसे संगठन समय के साथ सुधार और विकास के लिए सक्षम हैं—और यही दृष्टिकोण अब UN Security Council, WTO, और विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में भी आवश्यक है ।
– पीएम मोदी ने वैश्विक संस्थाओं के पुराने ढाँचों में त्वरित और व्यापक बदलाव की ज़रूरत ज़ोर पकड़ दी।
– ग्लोबल साउथ के प्रतिनिधित्व में सुधार न केवल प्रतीकात्मक बल्कि कार्यात्मक होना चाहिए—जिससे ये संस्थाएं विश्वसनीय और प्रभावशाली बन सकें।
– वे BRICS को एक ऐसे मंच के रूप में देखते हैं जो बहुपक्षीय आदान‑प्रदान और न्यायसंगत बदलाव का प्रारंभ कर सकता है।