मुंबई। 2008 के चर्चित मालेगांव विस्फोट मामले में शुक्रवार को विशेष NIA अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। इस फैसले में सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल श्रीकांत पुरोहित और अन्य को सबूतों के अभाव में दोषमुक्त घोषित कर दिया गया। फैसले के बाद अदालत परिसर के बाहर जहां एक ओर समर्थकों ने राहत की सांस ली, वहीं दूसरी ओर पीड़ित परिवारों और मालेगांव के नागरिकों में आक्रोश देखने को मिला।
पीड़ित परिवारों ने फैसले पर जताई नाराज़गी
फैसले के बाद पीड़ित पक्ष के लोगों ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "हमारे साथ अन्याय हुआ है। हमने अपने परिवारजनों को खोया और अब 17 साल बाद कोर्ट कह रही है कि कोई दोषी नहीं है। फिर दोषी कौन है?" उन्होंने कहा कि यह सिर्फ न्यायिक विफलता नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा करने वाला निर्णय है।
NIA की भूमिका पर भी उठे सवाल
पीड़ित पक्ष के वकीलों और सामाजिक संगठनों ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि जांच में ढिलाई, गवाहों के पलटने और राजनीतिक प्रभाव के कारण यह मामला कमजोर हुआ। कुछ गवाहों ने अदालत में पहले दिए गए अपने बयान बदल दिए, जिससे अभियोजन पक्ष की दलीलें कमजोर हो गईं।
अदालत ने क्या कहा?
विशेष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि प्रस्तुत किए गए साक्ष्य अभियुक्तों को दोषी सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। तकनीकी विश्लेषण, चश्मदीदों के बयान और अन्य सबूतों को जांच में खामियों के कारण भरोसेमंद नहीं माना गया। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि संदेह का लाभ आरोपियों को दिया गया।
पीड़ित परिवार अब इस निर्णय को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। मानवाधिकार संगठनों ने भी समर्थन का आश्वासन दिया है। राजनीतिक गलियारों में भी इस फैसले को लेकर प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, जहां कुछ दलों ने इसे "न्याय की हार" करार दिया है।