ब्रिटिश सरकार की एक ताज़ा रिपोर्ट में भारत को 'दमनकारी देशों' (Authoritarian States) की सूची में शामिल किए जाने से दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों में नया तनाव पैदा हो गया है। रिपोर्ट में खासतौर पर ब्रिटेन में सक्रिय खालिस्तानी संगठनों के सदस्यों पर भारत सरकार द्वारा डाले जा रहे कथित दबाव का उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि भारत द्वारा ब्रिटिश नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों में हस्तक्षेप किया जा रहा है।
रिपोर्ट में क्या कहा गया?
ब्रिटिश गृह विभाग और विदेश मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से जारी की गई रिपोर्ट में भारत, चीन, रूस, ईरान और तुर्की जैसे देशों के साथ रखा गया है। रिपोर्ट का दावा है कि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में ब्रिटिश नागरिकों, विशेषकर सिख समुदाय के लोगों के खिलाफ निगरानी, धमकी और कानूनी दबाव की रणनीति अपनाई है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। इसमें यह भी कहा गया है कि भारत ने ब्रिटेन में खालिस्तानी विचारधारा से जुड़े संगठनों और प्रदर्शनकारियों को 'आतंकवादी' की छवि देने की कोशिश की है, जिससे यहां के सिविल सोसाइटी संगठनों में असंतोष है।
भारत का कड़ा विरोध
भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को “भ्रामक, पक्षपातपूर्ण और तथ्यविहीन” करार दिया है। विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक और कानून का पालन करने वाला देश है, जो पूरी दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख रखता है। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि खालिस्तानी तत्व न केवल भारत की अखंडता के लिए खतरा हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय शांति और स्थिरता के लिए भी चिंताजनक हैं। भारत ने ब्रिटिश अधिकारियों से रिपोर्ट को वापस लेने और पुनरीक्षण की मांग की है।
ब्रिटेन में खालिस्तानी गतिविधियों पर भारत की चिंता
पिछले कुछ वर्षों में ब्रिटेन में खालिस्तानी समर्थकों द्वारा भारतीय उच्चायोग के बाहर प्रदर्शन, झंडा हटाने की घटनाएं और हिंसा के प्रयास भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय रहे हैं। भारत ने कई बार ब्रिटिश सरकार से इन गतिविधियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। लेकिन अब इस रिपोर्ट के बाद, भारत की ओर से यह सवाल उठाया जा रहा है कि ब्रिटेन आतंकवादी विचारधारा के खिलाफ कार्रवाई के बजाय, उल्टा भारत की छवि को धूमिल करने में लगा है।
रिश्तों पर असर संभव
विशेषज्ञों का मानना है कि यह रिपोर्ट भारत-ब्रिटेन के द्विपक्षीय संबंधों को नकारात्मक दिशा में धकेल सकती है, खासकर तब जब दोनों देश स्वतंत्र व्यापार समझौते (FTA) के अंतिम दौर की बातचीत में हैं। अगर स्थिति नहीं सुधरी, तो रणनीतिक साझेदारी, निवेश और वीजा नीति जैसे क्षेत्रों पर असर पड़ सकता है।