नोएडा के बहुचर्चित और दिल दहला देने वाले निठारी कांड से जुड़े एक अहम मोड़ पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर को राहत देते हुए उनकी सजाएं रद्द कर दीं। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि मामले की जांच और सुनवाई में कई महत्वपूर्ण प्रक्रियागत खामियां और साक्ष्यों की पर्याप्त कमी रही, जिसके चलते दोष सिद्धि टिक नहीं सकी। इस फैसले ने एक बार फिर देश को झकझोर दिया है और यह सवाल फिर से ज़ोर पकड़ रहा है कि आखिर निठारी कांड का असली गुनहगार कौन है?
क्या था निठारी कांड?
2006 में नोएडा के सेक्टर-31 स्थित डी-5 नंबर के घर से बच्चों और महिलाओं के गायब होने की सनसनीखेज घटनाएं सामने आईं। जब पुलिस ने उस घर की जांच की, तो वहां से मानव अवशेषों की बरामदगी ने पूरे देश को दहला दिया। करीब 19 शवों के अवशेष मिले थे, जिनमें ज़्यादातर नाबालिग बच्चे थे। मोनिंदर सिंह पंढेर, जो पेशे से कारोबारी थे, और उनके घरेलू सहायक सुरेंद्र कोली को मामले में मुख्य आरोपी बनाया गया।
फैसले का असर और नए सवाल
पिछले कई वर्षों में कोली को अलग-अलग मामलों में मौत की सजा सुनाई गई, जबकि पंढेर को भी उम्रकैद हुई। परंतु आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दोनों बरी हो चुके हैं। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जांच एजेंसियों द्वारा पेश की गई चार्जशीट और सबूत पर्याप्त नहीं थे।
यह निर्णय न सिर्फ पीड़ित परिवारों के लिए पीड़ा और असमंजस बढ़ाता है, बल्कि न्याय प्रणाली और जांच प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े करता है।
अब जब दोनों आरोपी छूट चुके हैं, तो यह सवाल और भी गंभीर हो गया है – क्या असली दोषी अब भी कानून की पकड़ से बाहर है?
निठारी कांड भारतीय अपराध इतिहास की सबसे भयावह घटनाओं में एक रहा है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय कानूनी प्रक्रिया की कसौटी पर सही हो सकता है, लेकिन सामाजिक और नैतिक रूप से कई सवाल अब भी अनुत्तरित हैं। पीड़ितों के परिजन आज भी न्याय की तलाश में हैं।