अमेरिका ने ईरान से कारोबारी संबंध रखने को लेकर छह भारतीय कंपनियों पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं। यह कदम वाशिंगटन द्वारा ईरान पर लगाए गए एकतरफा प्रतिबंधों के उल्लंघन के आरोप में उठाया गया है। इसके जवाब में भारत की प्रमुख तेल रिफाइनरियों ने रूस से तेल खरीदारी अस्थायी रूप से बंद करने का निर्णय लिया है। यह घटनाक्रम वैश्विक ऊर्जा कूटनीति और भारत-अमेरिका संबंधों के लिहाज से अहम माना जा रहा है।
किन कंपनियों पर लगे हैं प्रतिबंध?
अमेरिकी वित्त विभाग के अनुसार, जिन भारतीय कंपनियों पर कार्रवाई हुई है, वे ईरान के साथ कच्चे तेल, शिपिंग और पेट्रोकेमिकल व्यापार में शामिल थीं। इन कंपनियों की अमेरिकी परिसंपत्तियों को फ्रीज कर दिया गया है और अमेरिकी नागरिकों को इनके साथ व्यापार करने से मना किया गया है। साथ ही इन कंपनियों के निदेशकों के खिलाफ भी प्रतिबंधात्मक कदम उठाने की तैयारी है।
भारत की प्रतिक्रिया: रूस से तेल खरीद पर ब्रेक
इस घटनाक्रम के बाद भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख तेल कंपनियों ने रूस से कच्चे तेल की खरीद को अस्थायी रूप से रोक दिया है, ताकि अमेरिका के साथ ऊर्जा व्यापार में संतुलन बना रहे। जानकारों का मानना है कि यह फैसला अमेरिका को आश्वस्त करने की कूटनीतिक रणनीति हो सकता है, क्योंकि भारत पहले ही रूस से रियायती दरों पर बड़ी मात्रा में तेल खरीदता रहा है।
ऊर्जा सुरक्षा पर असर
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है और अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए मुख्यतः रूस, ईरान और खाड़ी देशों पर निर्भर है। ऐसे में अमेरिकी प्रतिबंधों का असर भारत की ऊर्जा सुरक्षा और तेल की कीमतों पर भी पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता बढ़ सकती है।
विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर स्वतंत्र नीति बनाता रहेगा। सरकार ने इस मसले पर अमेरिका से औपचारिक बातचीत की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। आने वाले दिनों में यह देखने योग्य होगा कि भारत अपनी ऊर्जा रणनीति को किस तरह से संतुलित करता है।