छत्तीसगढ़ में मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण से जुड़े एक बहुचर्चित मामले में गिरफ्तार की गई केरल की दो ननों को न्यायालय से बड़ा झटका लगा है। बिलासपुर उच्च न्यायालय ने सोमवार को दोनों आरोपियों की ज़मानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए फिलहाल जमानत देना उचित नहीं है।
क्या है मामला?
रायगढ़ जिले के धर्मजयगढ़ इलाके में मानव तस्करी और नाबालिगों के जबरन धर्मांतरण की शिकायतें सामने आई थीं। पुलिस ने जांच के दौरान पाया कि कुछ मिशनरी संस्थाएं आदिवासी बच्चों को कथित रूप से पढ़ाई और देखभाल के बहाने बाहर के राज्यों में भेज रही थीं। इन्हीं आरोपों के तहत केरल की दो कैथोलिक ननों को गिरफ्तार किया गया था, जो एक मिशनरी संस्था से जुड़ी थीं।
इन पर आरोप है कि वे गरीब और आदिवासी परिवारों के बच्चों को लालच देकर पहले उन्हें संस्थान में भर्ती कराती थीं और फिर उन्हें ईसाई धर्म अपनाने के लिये दबाव बनाया जाता था। साथ ही बच्चों को केरल और अन्य दक्षिणी राज्यों में अवैध रूप से स्थानांतरित करने के भी आरोप हैं।
कोर्ट का रुख सख्त
न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद यह स्पष्ट किया कि इस तरह के मामलों में सिर्फ आरोप ही नहीं, बल्कि पीड़ितों के बयान और प्रारंभिक जांच रिपोर्ट भी चिंताजनक हैं। कोर्ट ने कहा कि जब तक जांच एजेंसियां ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचतीं, तब तक आरोपियों को ज़मानत देना कानून के दुरुपयोग का रास्ता खोल सकता है।
राजनीतिक और सामाजिक बहस फिर तेज
इस प्रकरण ने छत्तीसगढ़ समेत देश भर में एक बार फिर धर्मांतरण और आदिवासी अधिकारों को लेकर बहस छेड़ दी है। कई संगठनों ने इस केस को "सुनियोजित सांस्कृतिक अतिक्रमण" करार दिया है, जबकि कुछ मानवाधिकार संगठनों ने इसे धार्मिक भेदभाव का मामला बताया है।
इस फैसले से यह संकेत साफ है कि न्यायालय ऐसे संवेदनशील मामलों में सतर्कता और गंभीरता से काम लेना चाहता है। अब पूरा देश यह देख रहा है कि क्या जांच एजेंसियां इन आरोपों को न्यायिक रूप से साबित कर पाएंगी या मामला किसी कानूनी जटिलता में उलझकर रह जाएगा।