उत्तर भारत इन दिनों 47 साल बाद आई भीषण बाढ़ से जूझ रहा है। हालात इतने बिगड़े कि आगरा का ऐतिहासिक ताजमहल भी जलप्रलय की चपेट में दिखाई देने लगा। यमुना नदी का जलस्तर खतरनाक स्तर से ऊपर बह रहा है, जिसके कारण निचले इलाकों में पानी भर गया है। तस्वीरें गवाह हैं कि सड़कों पर चारों ओर सैलाब जैसा दृश्य है।
प्रशासनिक आंकड़ों के अनुसार, करीब 100 कॉलोनियां पूरी तरह जलमग्न हो गईं जबकि 60 से अधिक गांवों में हालात बेहद गंभीर हैं। लोग घरों की छतों और सुरक्षित ऊंची जगहों पर शरण लेने को मजबूर हैं। राहत और बचाव दल लगातार नावों के जरिए फंसे लोगों को सुरक्षित निकालने में जुटे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार बारिश और यमुना में बढ़ते जलस्तर ने खतरा और बढ़ा दिया है। शहर के निचले हिस्से में रह रहे परिवारों को प्रशासन ने अलर्ट जारी कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचने की अपील की है। कई जगहों पर बिजली और पेयजल आपूर्ति बाधित हो चुकी है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि 1978 के बाद पहली बार उन्होंने बाढ़ का इतना विकराल रूप देखा है। तबाही का आलम यह है कि खेत, दुकानें और घर सबकुछ पानी में डूब गए हैं। किसान अपनी खड़ी फसलें बर्बाद होते देख बेबस हैं। छोटे कारोबारी और मजदूरों के सामने रोज़गार का संकट खड़ा हो गया है।
सरकार ने स्थिति से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन दलों को तैनात किया है। स्कूलों को अस्थायी राहत शिविरों में बदला गया है, जहां भोजन और दवाइयों की व्यवस्था की जा रही है। प्रभावित परिवारों को आर्थिक मदद पहुंचाने की तैयारी भी शुरू हो गई है।
ताजमहल परिसर में जलभराव की तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं। विशेषज्ञों को आशंका है कि अगर जलस्तर और बढ़ा तो स्मारक की संरचना पर भी असर पड़ सकता है। पुरातत्व विभाग ने स्मारक की सुरक्षा को लेकर विशेष निगरानी शुरू कर दी है।
फिलहाल, बाढ़ग्रस्त इलाकों में जनजीवन पूरी तरह ठप हो चुका है। प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती लोगों को सुरक्षित निकालने और पुनर्वास की है। सवाल यह भी उठ रहा है कि जब मौसम विभाग ने पहले से चेतावनी दी थी तो तैयारी क्यों नज़र नहीं आई।