नेपाल इन दिनों युवाओं की अगुवाई वाले आंदोलन से हिल गया है। सोशल मीडिया के जरिए संगठित हुई Gen-Z की नई पीढ़ी ने सड़कों पर उतरकर सरकार को झकझोर दिया। आंदोलन इतना तीव्र हुआ कि आखिरकार गृहमंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि, इस संघर्ष में अब तक 20 से अधिक प्रदर्शनकारियों की जान चली गई है।
सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पाबंदी लगा दी थी, लेकिन विरोध बढ़ने पर यह प्रतिबंध हटाना पड़ा। अब सवाल उठ रहा है कि क्या वास्तव में युवाओं को वह मिला जिसके लिए वे सड़कों पर उतरे थे, या फिर यह सिर्फ एक शुरुआत है?
आंदोलन की जड़ें
नेपाल के युवाओं का गुस्सा लंबे समय से simmer कर रहा था। बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी ने उनकी नाराजगी को हवा दी। जब सरकार ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने की कोशिश की और सोशल मीडिया पर बैन लगाया, तो यह गुस्सा विस्फोटक रूप ले बैठा। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्र, बेरोजगार युवा और शहरी मध्यम वर्ग मिलकर सड़कों पर उतर आए।
गृहमंत्री का इस्तीफा
आंदोलन का पहला ठोस नतीजा गृहमंत्री का इस्तीफा रहा। युवाओं ने इसे अपनी जीत बताया और कहा कि यह कदम सत्ता में बैठे नेताओं के लिए चेतावनी है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस्तीफा केवल “डैमेज कंट्रोल” की कोशिश है और असल सुधार तभी होंगे जब सरकार ठोस नीतिगत फैसले ले।
सोशल मीडिया बैन हटना
युवाओं के दबाव का दूसरा बड़ा असर यह रहा कि सरकार को सोशल मीडिया पर लगाया गया प्रतिबंध वापस लेना पड़ा। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म आंदोलन का मुख्य आधार बने थे। इन्हीं माध्यमों से युवाओं ने न सिर्फ अपनी आवाज़ बुलंद की बल्कि अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी जुटाया।
लेकिन क्या बदला?
20 जानें जाने के बाद और हजारों घायल होने के बावजूद, प्रदर्शनकारियों की मूल मांगें अभी भी अधूरी हैं। न तो सरकार ने बेरोजगारी को लेकर कोई ठोस योजना पेश की है और न ही भ्रष्टाचार पर सख्त कदम उठाए हैं। युवाओं का मानना है कि यह संघर्ष अभी लंबा चलेगा।
क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय असर
नेपाल के इस आंदोलन पर पड़ोसी देशों की नजर है। भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में भी युवा बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर आक्रोशित हैं। नेपाल का उदाहरण अब क्षेत्रीय राजनीति में "युवा शक्ति" की अहमियत को दर्शाता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार संगठनों ने भी नेपाल सरकार से संयम बरतने और शांतिपूर्ण समाधान निकालने की अपील की है।
नेपाल का यह आंदोलन सिर्फ गृहमंत्री के इस्तीफे और सोशल मीडिया बैन हटने तक सीमित नहीं है। यह दरअसल उस नई पीढ़ी की आवाज है जो पारदर्शिता, जवाबदेही और बेहतर भविष्य चाहती है। सवाल यह है कि क्या सरकार इस संदेश को समझेगी, या फिर युवाओं को एक बार फिर सड़कों पर उतरना पड़ेगा।