देशभर में प्रस्तावित “SIR 2.0” (Special Immediate Re-Election) प्रक्रिया को लेकर अब राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर जल्दबाजी का आरोप लगाते हुए कहा है कि आयोग सरकार के दबाव में काम कर रहा है। पार्टी का दावा है कि इतने बड़े चुनावी अभ्यास की घोषणा बिना पर्याप्त तैयारी और चर्चा के करना लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ है।
कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि SIR 2.0 जैसी योजना का उद्देश्य पारदर्शिता नहीं, बल्कि विपक्ष को दबाव में लाना है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब कई राज्यों में मतदाता सूची और बूथ पुनर्गठन की प्रक्रिया अभी अधूरी है, तो इतनी जल्दी चुनाव कराने की क्या जरूरत है? रमेश ने कहा, “चुनाव आयोग को संविधान के तहत स्वतंत्र संस्था के रूप में कार्य करना चाहिए, न कि केंद्र के एजेंडे के हिस्से के रूप में।”
कांग्रेस के अलावा तीन राज्य सरकारों — पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ — ने भी इस प्रस्तावित प्रक्रिया पर आपत्ति जताई है। इन राज्यों ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर कहा है कि SIR 2.0 लागू करने से प्रशासनिक तंत्र पर अनावश्यक दबाव पड़ेगा और सामान्य शासन व्यवस्था बाधित होगी। उनका कहना है कि आयोग को पहले राज्यों की राय लेनी चाहिए थी।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे “लोकतंत्र पर सीधा प्रहार” बताया, वहीं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कहा कि केंद्र सरकार चुनावी प्रक्रिया को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रही है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विश्वनाथ पटेल ने भी इसे “जनादेश की अवहेलना” करार दिया।
वहीं, बीजेपी ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि चुनाव आयोग पूरी तरह स्वतंत्र और संवैधानिक संस्था है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा, “कांग्रेस को जनता का डर सता रहा है, इसलिए वह हर सुधार का विरोध करती है।”
गौरतलब है कि SIR 2.0 के तहत आयोग 10 राज्यों में पहले चरण की प्रक्रिया शुरू करने जा रहा है, जिसमें डिजिटाइज्ड वोटिंग और तत्काल परिणाम प्रणाली जैसे प्रावधान शामिल हैं। हालांकि, विपक्ष इसे “अवास्तविक और जल्दबाजी भरा प्रयोग” मानते हुए इसे स्थगित करने की मांग कर रहा है।