प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 नवंबर को दिए संबोधन में भारत को "मैकाले की मानसिकता" से बाहर निकालने और आने वाले दशक के लिए व्यापक राष्ट्रीय एजेंडा तय करने की बात कही। उन्होंने कहा कि देश को उस सोच से मुक्त करने की जरूरत है, जिसे औपनिवेशिक शासन ने शिक्षा, प्रशासन और समाज के ढांचे में गहराई तक रोप दिया था। पीएम मोदी ने आगामी दस वर्षों में भारत को सांस्कृतिक आत्मविश्वास, नवाचार और आधुनिक कौशल से लैस करने पर जोर दिया, ताकि देश अपने वास्तविक स्वरूप और शक्ति को पूरी दुनिया के सामने रख सके।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मैकाले की नीतियों ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को इस तरह प्रभावित किया कि पीढ़ियों तक युवाओं में अपनी जड़ों, भाषाओं और परंपराओं को लेकर हीनभावना पनपती रही। उन्होंने इसे "मानसिक गुलामी" का रूप बताया और कहा कि आज की युवा पीढ़ी को इससे ऊपर उठकर आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने का अवसर देना सरकार की प्राथमिकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को इसी दिशा में एक बड़ा बदलाव बताते हुए उन्होंने कहा कि नई नीति भारतीय भाषाओं, कौशल आधारित शिक्षा और वैश्विक अवसरों को संतुलित करती है।
अपने दस वर्षीय एजेंडे को विस्तार देते हुए पीएम मोदी ने चार प्रमुख बिंदुओं पर जोर दिया—पहला, शिक्षा प्रणाली का भारतीयकरण; दूसरा, तकनीक और नवाचार का विस्तार; तीसरा, वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका को मजबूत करना; और चौथा, आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के लिए युवा शक्ति को तैयार करना। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है जब भारत दुनिया को दिशा देने वाली शक्तियों में शामिल हो और इसके लिए मानसिकता में परिवर्तन सबसे आवश्यक कदम है।
प्रधानमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि आने वाले वर्षों में सरकार स्टार्टअप, शोध, डिजिटल अवसंरचना, कौशल विकास और वैश्विक सहयोग पर विशेष ध्यान देगी। उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि देश उनके नवाचार और संकल्प से ही नए शिखर छुएगा।
साथ ही, पीएम मोदी ने भारतीय भाषाओं और ज्ञान परंपरा को मजबूत करने पर जोर दिया। उनका कहना था कि जब तक देश अपनी जड़ों पर गर्व नहीं करेगा, तब तक वास्तविक प्रगति संभव नहीं है। उन्होंने भरोसा जताया कि अगले दस वर्षों में भारत शिक्षा, तकनीक, अर्थव्यवस्था और कूटनीति के क्षेत्र में नई ऊंचाइयां हासिल करेगा और "मानसिक गुलामी" की पुरानी परतें पूरी तरह हट जाएंगी।
प्रधानमंत्री का यह एजेंडा देश को नई दिशा देने वाला माना जा रहा है, जिसे उन्होंने "आत्मविश्वास के दशक" की शुरुआत बताया।