इंडोनेशिया एक बार फिर प्रकृति के कहर से बुरी तरह हिल गया है। भारी बारिश, भूमि धंसने और भूस्खलन की भीषण श्रृंखला ने देश के कई इलाकों में तबाही मचा दी है। शुरुआती रिपोर्टों के अनुसार, प्राकृतिक आपदा में अब तक 836 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि कई हजार लोग बेघर हो गए हैं। राहत टीमें लगातार प्रभावित इलाकों में बचाव कार्य कर रही हैं, लेकिन मलबे में दबे लोगों की संख्या अभी भी काफी अधिक मानी जा रही है।
स्थानीय प्रशासन का साफ कहना है कि यह आपदा अचानक नहीं आई, बल्कि यह वर्षों से जारी जंगलों की अंधाधुंध कटाई का नतीजा है। बड़े पैमाने पर वनों की कमी से पहाड़ी इलाकों का संतुलन बिगड़ गया, जिसने तेज बरसात को भयानक रूप दे दिया। पानी के बहाव के साथ पहाड़ों की मिट्टी खिसक गई, जिससे कई गांव कुछ ही मिनटों में मलबे में बदल गए। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर वनों की अनियंत्रित कटाई जारी रही, तो इंडोनेशिया को भविष्य में इससे भी भयावह परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।
सबसे अधिक नुकसान सुलेवासी, कालिमंतान और पापुआ क्षेत्रों में हुआ है, जहां पूरी-की-पूरी बस्तियां मिट्टी के सैलाब में बह गईं। कई जगह पुल टूट गए, सड़कें बर्बाद हो गईं और संचार व्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई। आपदा राहत एजेंसियों ने बताया कि कई गांवों तक अभी भी पहुंचना मुश्किल है, जिससे मृतकों और घायलों की संख्या बढ़ने की आशंका है। इंडोनेशियाई सेना, पुलिस और स्वयंसेवी संगठन मिलकर बचाव कार्य को तेज करने की कोशिश कर रहे हैं।
आपदा के बाद सरकार ने बड़े पैमाने पर आपातकालीन सहायता की घोषणा की है। प्रभावित परिवारों को अस्थायी शिविरों में स्थानांतरित किया जा रहा है, जहां भोजन, पानी और दवाइयों की व्यवस्था की जा रही है। राष्ट्रपति ने स्वयं प्रभावित इलाकों का दौरा करने की घोषणा की और लोगों को भरोसा दिलाया कि पुनर्वास और पुनर्निर्माण कार्य तेजी से किया जाएगा। सरकार ने वनों की सुरक्षा नीति को सख्त बनाने और अवैध कटाई पर पूरी तरह रोक लगाने का ऐलान भी किया है।
पर्यावरण वैज्ञानिकों का कहना है कि इंडोनेशिया लंबे समय से वनों की कटाई और अनियोजित खनन गतिविधियों से जूझ रहा है। जंगलों के गायब होने से न केवल मिट्टी की पकड़ कमजोर होती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव भी कई गुना बढ़ जाते हैं। यही कारण है कि इस बार हुई बारिश सामान्य से अधिक विनाशकारी साबित हुई। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि देश को पर्यावरण संतुलन बहाल करने के लिए तुरंत और कठोर कदम उठाने होंगे, नहीं तो प्राकृतिक आपदाएं आगे भी जान और संपत्ति का व्यापक नुकसान करती रहेंगी।
फिलहाल पूरे इंडोनेशिया में शोक और भय का माहौल है। कई परिवार अब भी अपने लापता प्रियजनों के लौटने की उम्मीद में मलबे के ढेरों के पास डटे हुए हैं। इस त्रासदी ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का अंजाम कितना भयावह हो सकता है और पर्यावरण संरक्षण केवल विकल्प नहीं, बल्कि जीवन रक्षा की अनिवार्य आवश्यकता है।