संसद के शीतकालीन सत्र के बीच 3 दिसंबर को उस समय राजनीतिक हलचल तेज हो गई, जब विभिन्न विपक्षी दलों ने सरकार की नीतियों और “जवाबदेही से बचने” के आरोपों को लेकर संसद भवन के बाहर सामूहिक प्रदर्शन किया। विपक्ष ने कहा कि सरकार संवेदनशील राष्ट्रीय मुद्दों पर खुलकर चर्चा से बच रही है, जबकि जनता उनके जवाब की अपेक्षा कर रही है।
सुबह से ही कांग्रेस, डीएमके, तृणमूल कांग्रेस, राजद, वाम दलों, समाजवादी पार्टी और कई अन्य विपक्षी दलों के सांसद संसद परिसर में जमा होने लगे। नेताओं ने हाथों में तख्तियां और संविधान की प्रस्तावना से जुड़ी प्रतियां लेकर लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की मांग उठाई। उनका कहना है कि महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक मंदी, किसानों की समस्याएं, सीमा सुरक्षा और सामाजिक तनाव जैसे गंभीर सवालों पर सरकार की चुप्पी चिंताजनक है।
कई विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि संसद में प्रश्नकाल और शून्यकाल के दौरान महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने की अनुमति नहीं दी जा रही। उनका दावा है कि सरकार संसद की कार्यवाही को नियंत्रित कर विपक्ष की आवाज़ दबाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “अगर सदन में बोलने का मौका नहीं मिलेगा, तो हमें जनता के बीच आकर अपनी बात रखनी ही पड़ेगी। लोकतंत्र संवाद से चलता है, एकतरफा फैसलों से नहीं।”
विपक्ष का यह भी कहना है कि प्रधानमंत्री को सदन में आकर देश के मौजूदा हालात पर स्पष्ट बयान देना चाहिए, क्योंकि अनेक मुद्दों पर सरकार की चुप्पी जनता में असमंजस पैदा कर रही है। नेताओं ने कहा कि राष्ट्रीय चिंताओं पर प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति संसदीय परंपराओं के विपरीत है।
इस बीच, सरकार के सूत्रों का कहना है कि विपक्ष बिना कारण विवाद खड़ा कर रहा है। उनका दावा है कि संबंधित मंत्री सदन में हर मुद्दे पर विस्तृत जवाब दे रहे हैं और सरकार चर्चा से नहीं भाग रही। लेकिन सरकार की इस दलील को विपक्ष ने ख़ारिज करते हुए कहा कि “मंत्री नहीं, प्रधानमंत्री को देश के सामने जवाब देना चाहिए।”
प्रदर्शन के दौरान विपक्षी दलों ने एकता का प्रदर्शन करते हुए चेतावनी दी कि जब तक सरकार संसद में सार्थक चर्चा के लिए तैयार नहीं होती, उनका विरोध जारी रहेगा। इस घटनाक्रम ने संकेत दिया कि शीतकालीन सत्र में सरकार और विपक्ष के बीच टकराव और गहरा सकता है, जिससे आने वाले दिनों में संसद की सुचारू कार्यवाही प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई है।