यूक्रेन युद्ध एक बार फिर वैश्विक चिंता का विषय बन गया है। इस बार चर्चा का केंद्र बना है रूस और उत्तर कोरिया का मिलकर विकसित किया गया मिसाइल तंत्र, जिसने अमेरिका के 'पैट्रियट एयर डिफेंस सिस्टम' की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हाल ही में यूक्रेनी क्षेत्रों पर हुए मिसाइल हमलों में रूसी और उत्तर कोरियाई तकनीक का इस्तेमाल हुआ, जिससे भारी तबाही मची और अमेरिका की ओर से भेजे गए रक्षा कवच विफल साबित हुए।
क्या है मामला?
रूस द्वारा यूक्रेन के सैन्य और रणनीतिक ठिकानों पर हाल ही में किए गए मिसाइल हमलों में अत्याधुनिक और सटीक निशाना साधने वाले हथियारों का उपयोग किया गया। इन हमलों में उत्तर कोरिया से मिली मिसाइल तकनीक और हथियारों की सहायता ली गई। इन मिसाइलों ने अमेरिकी पैट्रियट सिस्टम को चकमा देते हुए यूक्रेनी रक्षा ढांचे को भारी नुकसान पहुंचाया।
यूक्रेन को अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा भेजे गए 'पैट्रियट एयर डिफेंस सिस्टम' को अब तक अत्याधुनिक और अचूक माना जाता रहा है। लेकिन इन हालिया हमलों में यह सिस्टम रूसी-उत्तर कोरियाई मिसाइलों को न तो समय रहते पहचान सका और न ही उन्हें रोक पाया।
किम-पुतिन का नया ब्रह्मास्त्र?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूस और उत्तर कोरिया के बीच बीते कुछ महीनों में सैन्य तकनीक साझा करने की प्रक्रिया तेज हुई है। उत्तर कोरिया ने रूस को ऐसी मिसाइलें और तकनीक उपलब्ध कराई हैं जो लो-एल्टिट्यूड और हाई-स्पीड में चलती हैं, जिससे मौजूदा रक्षा प्रणाली उन्हें ट्रैक नहीं कर पाती। ये मिसाइलें रडार की पकड़ से बचने के लिए ज़िगज़ैग पैटर्न में उड़ान भरती हैं।
किम जोंग उन और व्लादिमीर पुतिन के बीच बढ़ती सामरिक साझेदारी ने पश्चिमी देशों की चिंता को और गहरा कर दिया है। जहां एक ओर रूस को उत्तर कोरिया से सैन्य आपूर्ति मिल रही है, वहीं उत्तर कोरिया को रूस से उपग्रह प्रक्षेपण तकनीक और ऊर्जा सहयोग की संभावना दिख रही है।
वैश्विक रणनीति पर असर
इस नई स्थिति ने अमेरिका और नाटो को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार के लिए मजबूर कर दिया है। यूक्रेन में 'पैट्रियट' की असफलता यह संकेत देती है कि पारंपरिक वायु रक्षा प्रणाली अब नई पीढ़ी की मिसाइलों के सामने पर्याप्त नहीं रह गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में एयर डिफेंस टेक्नोलॉजी में बड़े बदलाव की आवश्यकता पड़ेगी।
रूस-उत्तर कोरिया का यह मिलिट्री गठबंधन जहां यूक्रेन युद्ध के परिदृश्य को नई दिशा दे रहा है, वहीं अमेरिकी रक्षा प्रतिष्ठान की क्षमताओं पर भी सवाल खड़े कर रहा है। इस घटनाक्रम ने वैश्विक शक्ति संतुलन और सुरक्षा नीति के नए अध्याय की शुरुआत कर दी है।