अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल ही में दिया गया एक बयान—"अगर यूक्रेन युद्ध जल्द नहीं रुका तो तीसरा विश्व युद्ध हो सकता है"—अब अंतरराष्ट्रीय विवाद का कारण बनता जा रहा है। ट्रंप के इस बयान पर रूस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के एक प्रमुख सलाहकार ने अमेरिका को खुली चेतावनी दे दी है। रूस ने इसे भड़काऊ और अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए ख़तरनाक करार दिया है।
ट्रंप का बयान और वैश्विक प्रतिक्रिया
डोनाल्ड ट्रंप ने एक चुनावी रैली के दौरान कहा था कि यदि रूस-यूक्रेन युद्ध को जल्द रोका नहीं गया, तो दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ सकती है। उन्होंने यह भी दावा किया कि अगर वह सत्ता में होते, तो यह युद्ध कभी शुरू ही नहीं होता। ट्रंप के इस बयान को रूस ने 'राजनीतिक हथकंडा' और 'अशांत माहौल को भड़काने वाला' बताया है।
पुतिन के करीबी सलाहकार की कड़ी प्रतिक्रिया
रूसी सुरक्षा परिषद के सचिव और पुतिन के करीबी सहयोगी निकोलाई पत्रुशेव ने ट्रंप के बयान पर जवाब देते हुए कहा कि "अमेरिका को यह नहीं भूलना चाहिए कि रूस परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र है और हम किसी भी आक्रामकता का जवाब देने में सक्षम हैं।" उन्होंने अमेरिका को चेतावनी दी कि ऐसे बयान न सिर्फ युद्ध की संभावनाएं बढ़ाते हैं, बल्कि वैश्विक स्थिरता को खतरे में डालते हैं।
बढ़ते तनाव और संभावित प्रभाव
यह बयानबाज़ी ऐसे समय में सामने आई है जब रूस-यूक्रेन युद्ध अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है और पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका और नाटो, लगातार यूक्रेन को सैन्य सहायता प्रदान कर रहे हैं। ट्रंप द्वारा दिए गए बयान से एक बार फिर यह बहस छिड़ गई है कि क्या पश्चिमी देशों की भूमिका वास्तव में युद्ध को लंबा खींच रही है और क्या यह एक बड़े संघर्ष की भूमिका तैयार कर रही है।
अमेरिकी प्रतिक्रिया और विश्लेषकों की राय
हालांकि व्हाइट हाउस ने ट्रंप के बयान से दूरी बनाते हुए कहा कि यह पूर्व राष्ट्रपति का निजी मत है, लेकिन अमेरिकी सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे वक्त में जब वैश्विक कूटनीति अत्यंत नाजुक दौर में है, इस तरह की टिप्पणियां तनाव और भ्रम को बढ़ा सकती हैं।
डोनाल्ड ट्रंप के बयान और रूस की प्रतिक्रिया ने यह साफ कर दिया है कि वैश्विक मंच पर शब्दों की ताकत को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। युद्ध की संभावनाओं के बीच राजनैतिक बयानबाज़ी यदि सीमाओं को लांघती है, तो यह केवल देशों के बीच नहीं, बल्कि वैश्विक नागरिकों की सुरक्षा पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देती है। ऐसे समय में संयम और संवाद ही स्थिरता की कुंजी हो सकते हैं।